शनिवार, 9 अक्तूबर 2021

शेखावाटी का इतिहास भाग-8

                   शेखावतों के भीष्म पितामह





गतांक से आगे-

अंतिम भाग में हमने कहा था कि शेखाजी की इहलीला समाप्त होने के बाद, शासन का जिम्मा सबसे छोटे पुत्र रायमल को सौंप दिया गया था। शेखावत वंश में अब देखने वाली बात यह रहती है कि यहाँ केवल बड़े पुत्र को राजा नही बनाया जाता ,केवल इसलिए कि वह बड़ा है यहाँ अन्य परिस्थितियों और योग्यताओं को जान समझकर भी राजा किसी योग्य युवराज को बनाया जाता रहा है।
आमेर प्रसाशन ने भी यह कई बार किया है और कुछ बार तो उत्तराधिकार युद्ध का भी सामना करना पड़ा है।

रायमल जी के राजा बनने के पीछे भी एक किस्सा है जो दुर्गा जी के बलिदान और अपने पितृभक्त होने का प्रमाण देता है।

शेखाजी का पांचवा विवाह चौबारा के चौहान वंश में हुआ।आज के अलवर का पश्चिम भाग मेवात कहलाता था, उसमे चौहान वंश के बहुत से गाँव थे। वे खुद को राठ कहते थे और उनके नाम पे वह पूरा "राठ क्षेत्र"कहलाता था। जनश्रुति है कि एक बार चौबारा के शासक स्योभरमजी की पुत्री ने शेखाजी की वीरता और कीर्ति पर मन्त्र मुग्ध होकर उनके साथ विवाह की हठ पकड़ ली।किंतु उंसके पिता स्योभरमजी को यह रिश्ता मंजूर नही था क्योंकि उन्होंने चार विवाह पहले से कर लिए थे और उन रानियों से उनके कई पुत्र थे।जिनमें से दुर्गा जी पहले से राजकुमार के पद पर सुशोभित थे और राजा बनने योग्य  भी थे। अब यह सब सुनकर राव शेखाजी भी असमंजस में थे क्या करे या क्या न करे?
चौहान राजकुमारी के हठ और उसके पिता शेखाजी के असमंजस को देखते हुए, पितृभक्त दुर्गाजी खुद चौबारा गए और स्योभरमजी से राजकुमारी की इच्छा अनुसार शेखाजी के साथ उसका विवाह कर देने का अनुरोध किया। 
शेखावतों का भीष्म इसलिए कहा गया कि महाभारत काल मे राजकुमार देवव्रत ऐसी प्रतिज्ञा करता है जब राजकुमारी सत्यवती से उनके पिता, राजा शांतनु विवाह करना चाहते है लेकिन सत्यवती के पिता चाहते है कि जब सत्यवती को पुत्र हो तो अगला राजा वही बने। तब वो भीष्म से प्रतिज्ञा करवाते है और भीष्म एक पल में दो कठोर प्रतिज्ञा करता है । एक तो  कि वह राजा नही बनेगा और दूसरा कि आजीवन विवाह नही करेगा ताकि आने वाली पीढियां उस पद का दावा नही कर सके। आज के काल जो कि शेखाजी का समय था उसमें वैसी एक प्रतिज्ञा करना भी बहुत बड़ी चीज थी। अतः "शेखावतों का भीष्म "भी दुर्गा जी को कह सकते है । इस तरह का एक किस्सा मेवाड़ प्रशासन में भी होता है।

अब चौहान सामन्तों को समस्या ये थी कि अगर ये शादी हो गई तो उनके भांजे को राजा बनने का मौका नही मिलेगा और सारे चौहान चाहते थे कि शेखावत राज्य का राजा उनका भांजा ही बने इसलिए उन्होंने दुर्गाजी के सामने अपनी शर्त रख दी।सबसे बड़ी बात दुर्गाजी ने सहर्ष उनकी शर्त स्वीकार भी कर ली।
और दुर्गाजी से प्रतिज्ञा करवाई कि-अगर इस रानी से शेखाजी को कोई पुत्र होगा तो वे उसके लिए अपनी राजगद्दी त्याग देंगे। पितृभक्त दुर्गाजी के असाधारण त्याग से शेखाजी का विवाह चौबारा के चौहान वंश में हुआ। उसी रानी की कोख से राजा रायमल का जन्म हुआ।
इस वाकये के बाद दुर्गाजी को "शेखावतों का भीष्म पितामह" भी कहा गया,जिन्होंने अपने पिता  और राजकुमारी की हठ के आगे राजगद्दी तक का त्याग कर दिया और दुर्गा जी के वंशज "टकणेत"शेखावत कहलाते है जो कि दुर्गाजी की मां टांक रानी के नाम से जुड़ा है।और नगरगढ  "गढ़- टकणेत" इनके नाम से प्रसिद्ध है और इनके अधिकार में रहा व यह गढ़ आज भी शेखवाटी की शान है। टकणेत शेखावतों के  ठिकाने आज भी कायम है- जैसे रेटा,पलसाना, गोवटी, तिहावली,खंडेलसर आदि बहुत  से गाँव सीकर, झुंझुनू और चुरू में बसे है।
#क्रमशः

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