सरणाल का युद्ध और रायसल का फैसला
गतांक से आगे-
सरणाल का युद्ध-
बादशाह ने 4 जुलाई 1572 के दिन फतेहपुर सीकरी से गुजरात विजय के लिए प्रस्थान किया।गुजरात मे उन दिनों मिर्जा बन्धुओ का उपद्रव जोर पकड़ रहा था।
गुजरात पहुँचकर बादशाह ने पाटन विजय कर लिया और आमेर के कुंवर मान सिंह को आगे बढ़ाया,जिसने अहमदाबाद के किले पर अधिकार कर लिया।बादशाह ने उसी वक्त अलग-अलग सैनिक दस्ते को अलग-अलग जगह फैला दिया जहाँ उपद्रव हो रहा था। शिविर में तब बादशाह के पास केवल 40 विश्वस्त योद्धा थे जिसमें रायसल शेखावत,जयमल कच्छवाह, मथुरादास आदि सरदार थे।
तभी सूचना मिली कि इब्राहिम हुसैन मिर्जा अपनी सेना के साथ सरणाल के पास पड़ाव डाले हुए है। यह सुनते ही बादशाह ने उन 40 मारका योद्धाओ के साथ द्रुत गति से चल पड़ा। सूर्यास्त के समय वह कालिन्द्री नदी के तट तक पहुँच गया। नदी के दूसरी तरफ सरणाल का किला दिख रहा था।वहीं पर उसे एक ब्राह्मण द्वारा सूचना मिली कि इब्राहिम मिर्जा एक बड़ी सेना के साथ वहाँ मौजूद है।
बादशाह असमंजस में था कि क्या करे अब? तभी सौभाग्य से राजा भगवंतदास, कुंवर मान सिंह, भोपत भारमलोत, बूंदी का भोज हाड़ा, शाहकुली मरहम, सयैद खान, आदि उमराव भी आ गए और बादशाह के पास 200 सवारों का जमघट हो गया।
बूंदी के भोज हाड़ा ने निवेदन किया कि आक्रमण सुबह किया जाए ताकि बाकी सेना भी पहुंच जाएगी और विजय आसान होगी।
अब बादशाह अकबर भी केवल पूरे मुगल सल्तनत में एक मात्र निडर और साहसी था जितना तो उसके पहले और बाद में आई पीढियां भी नही थी लेकिन फिर भी निर्णय सूझ-बूझ से लेना था।
तभी रायसल शेखावत ने कहा कि - अगर आक्रमण सुबह करते है तो बेशक सेना अपने पास आ जायेगी लेकिन मिर्जा की 1000 की सेना को आराम और युद्ध तैयारी का समय मिल जाएगा ,इसलिए क्यों न औचक आक्रमण किया जाए ताकि पूरे दिन की लूट-पाट से थकी सेना ज्यादा देर टिक नही पाएगी।
अकबर को रायसल शेखावत का प्रस्ताव अच्छा लगा और उसे विश्वास था कि अपने 200 योद्धा,मिर्जा के 1000 पर भारी पड़ेंगे। बादशाह ने आदेश दिया कि तुरन्त आक्रमण किया जाए और हरावल का नेतृत्व कुंवर मान सिंह को दिया गया व अग्रिम पंक्ति के योद्धाओ में भोपत कछवाह,भोज हाड़ा, भगवंतदास आदि थे और रायसल समेत 5 योद्धा बादशाह के बाएं पार्श्व में थे और 5 दाएं पार्श्व में थे।
मान सिंह आमेर भी बहुत प्रशिक्षित योद्धा थे जिन्होंने बहुत सारे युद्ध अभियान किये थे और उनके पास तो अनुभव ही बहुत हो गया था फिर ये तो 1000 योद्धा थे उन्होंने प्रबल वेग से आक्रमण किया, तुमुल युद्ध शुरू हुआ।
उसी मुठभेड़ में भोपत कछवाह जो अग्रिम पंक्ति में था युद्ध करता हुआ मारा गया। मिर्जा के थके हुए लड़ाके बादशाह की सेना के सामने नही टिक सके और मिर्जा खुद भी जब कुछ नही सूझ रहा था तो रात के अंधेरे में भाग खड़ा हुआ और उसकी सेना छिन्न-भिन्न हो गयी।
सरणाल का युद्ध 23 दिसंबर 1572 को समाप्त हुआ। वहाँ से आगे बढ़कर बादशाह ने सूरत पर अधिकार किया।26 फरवरी 1573 को सूरत पर अधिकार हो गया।इस प्रकार पाटन, सरणाल तथा सूरत के युद्धों में रायसल शेखावत अग्रिम योद्धा रहे जिनकी बातें बादशाह अकबर को भी अच्छी लगती थी क्योंकि रायसल शेखावत भी नीति सम्मत बाते करते थे ,इसमे भले ही मंत्री देविदास जैसे विद्वान व्यक्ति की सलाह हो या उनका सिखाया नीति ज्ञान। इस युद्ध मे रायसल शेखावत ने युद्ध तो लड़ा ही ,साथ मे उनके द्वारा लिए फैसले ने बादशाह को और भी प्रभावित किया।
रायसल के इन तीनों युद्धों का वर्णन मआसिरुलमरा में किया गया है।
#क्रमशः-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें