शनिवार, 2 अक्टूबर 2021

शेखावाटी का इतिहास भाग-3

#शेखाजी_का_जन्म_भाग2

गतांक से आगे
-एक जागीरदार का यूँ गायें चराते हुए जंगलो में फिरना उनके सेवकों को अच्छा नही लग रहा था उन्होंने बहुत मनाया लेकिन जब व्रत वाली बात बताई मोकल जी ने अपने सेवकों को तो , सेवक मान गए ।
एक दिन मोकल जी अपनी दिनचर्या के अनुसार गायें चराते हुए जंगल मे विचरण कर रहे थे। और ऐसे करते -करते गायों के साथ वे अरड़की नामक स्थान पर पहुँच गए। वहां ककेडे के वृक्ष की थोड़ी सी छाया के नीचे अद्बुत दृश्य देखकर ठिठक गए।उनके पैर अनायास ही रुक गए। आंखे खुली की खुली ही रह गयी। दोपहर की उस चिलचिलाती धूप में उस छोटी सी छाया में एक धवल वस्त्रधारी मुस्लिम फकीर गाढ़ी निद्रा में लेटे थे। उनकी निद्रा में विघ्न न पड़े इसलिए वो दूर- दूर गायें चराते रहे और उस फकीर पर दृष्टि जमाये रखे।

कुछ समय बाद जब फकीर की नींद खुली तो स्वयं उंसके पास जाकर विनम्र भाव से अभिवादन किया। उनके हाव- भाव देखकर फकीर समझ गया कि ये अवश्य कोई राजसी पुरूष है कोई ग्वाला या चरवाहा तो नही। फकीर ने सीधा ही पूछ लिया- इतने लोगों के होते हुए आप स्वयं गायें क्यों चराते है महाराज?
अब मोकल जी फकीर की मुख मण्डल की आभा से प्रभावित हो चुके थे और सोच रहे थे ये तो बड़े फकीर है इनको मेरी दशा के बारे में मालूम है। मोकल जी तुरन्त बोले- बाबा, मुझे संतान की कमी है। किसी वृन्दावन के सन्त महाराज ने कहा था कि - तुम गायें चराने का व्रत धारण करो तब कुछ बन सकता है अब मैं ये गायें इसीलिए चराता हूँ।

ये फकीर भी कोई साधारण फकीर नही थे वे महान फकीर शेख बुरहान चिश्ती थे। मोकल जी की इस व्यथा को सुनकर फकीर द्रवित हो गए और फिर मोकल जी अपने व्रत का पालन और निष्ठा देखकर फकीर भी प्रभावित हो गए। अंत मे फकीर ने बोला- अल्लाह ताला ने चाहा तो तुम्हे अवश्य पुत्र प्राप्त होगा और पुत्र को साधारण नही बल्कि वीर प्रतापी और असाधारण शूरवीर योद्धा होगा।

अब फकीर शेख बुरहान चिश्ती की बातें सुनकर मोकलजी के हृदय को शांति मिली।उन्होंने फकीर से वही रहने का आग्रह किया। साधु संत फकीर किसी जाति धर्म के भेदभाव को महत्व नही देते बल्कि आस्था वाले सच्चे हृदय को पहचान लेते है।उसी प्रकार शेख बुरहान चिश्ती ने मोकल जी की बात को स्वीकार कर लिया।

जंगल मे अरड़की के उसी ककेडे की शीतल छाया वाले स्थान पर फकीर का मठ बनवा दिया जो अब चिल्ला शेख बुरहान के नाम से प्रसिद्ध है। शेख का यह तकिया नाण अमरसर से कोई डेढ़ दो मील दूर दक्षिण पूर्व कोण में चौतरफा नालों से खण्डित एक टीले पर बना हुआ है। तकिये के बाहर विशाल पेड़ो का झुरमुट है।

उसी शेख की वाणी के फलित होने पर मोकल के घर पुत्र की प्राप्ति हुई और निर्बाण जी रानी को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ। क्षत्रिय राजपूतों की इस प्रसिद्ध शाखा  के जन्मदाता बनने बाले इस नर रत्न का नाम उसी फकीर शेख बुरहान के नाम पर शेखा रख दिया गया। इससे राव मोकल जी को अपार खुशी हुई औऱ 12 वर्ष तक अपने बालक की चंचल क्रीड़ाओं को निहारते रहे। वि. सं.1502 में मोकल जी इस संसार से विदा हो गए।
कुछ लोग शेखा जी का जन्म स्थल बरवाड़ा को भी मानते है उनका कहना है कि-
#अर्क_बार_दशमी_विजय_क्वार_सुकल_सीध_काम
#जिण_दिन_सेखो_जलमियों_बरवाड़े_बरियाम
#क्रमशः

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