शनिवार, 29 अप्रैल 2023

खंडेला का इतिहास भाग -22

राजा उदयसिंह और जयपुर से युद्ध




गतांक से आगे-
राजा उदय सिंह जब जाट विद्रोह में सेना के पृष्ठ भाग से वापस आ गए तो जयपुर राजा सवाई जय सिंह बहुत नाराज हुए और उन्होंने वाजिद खाँ के नेतृत्व में एक टुकड़ी खण्डेला पर आक्रमण हेतु भेज दी।स्वाभिमानी उदय सिंह ने एक माह तक जयपुर की टुकड़ी का सामना किया,अंत मे किले में अनाज और पानी की कमी आ गयी। फिर भी उन्होंने न आत्मसमर्पण किया और न ही जय सिंह की अधीनता स्वीकार की और किला छोड़कर अपने ससुराल बड़ू चले गए। 

उनके पुत्र कुंवर सवाई सिंह ने जयपुर की अधीनता स्वीकार कर ली,तब जय सिंह ने खण्डेला को अपने अधीन कर कुंवर सवाई सिंह को वहाँ का शासक बना दिया। कुछ समय बाद मौका देखकर उदय सिंह ने लाड़खानियो की सहायता से खण्डेला पर अधिकार कर लिया और अपने पुत्र को खण्डेला से बाहर निकाल दिया लेकिन उनका पुत्र सवाई सिंग अपने ही पिता का विद्रोही बन बैठा और जयपुर की सेना लेकर वापस खण्डेला दुर्ग पर आक्रमण कर दिया और अपने पिता को वहाँ से भगा दिया। उदयसिंह वापस अपने ससुराल गए और उनका विक्रमी 1791 में देहांत हो गया। बड़ू में उनकी स्मृति में चबूतरा बना है।

अब उदयसिंह का पुत्र सवाई सिंह राजा बन गया था लेकिन खण्डेला की राजनीति का पतन तो पिछली पीढ़ी से शुरू हो चुका था जब खण्डेला दो भागों में बंट गया था। आधे खण्डेला पर छोटे भाई और आधे पर बड़े भाई का राज था लेकिन इसी वजह से आये दिन आपस मे झगड़े होते रहते थे और जयपुर तो चाहता ही यही था।

सवाई सिंह खण्डेला का राजा तो बना लेकिन जयपुर के सवाई सिंह के अधीन होकर जिससे उसे 64000 रुपये वार्षिक कर भी देना पड़ा और कालान्तर में यह कर स्थायी हो चुका था जिससे जयपुर हर साल लेता था। कर देकर राजा बने तो फिर क्या राजा बने लेकिन गद्दी की होड़ मची हुई थी और खण्डेला का राजस्व दो भागों में बंट गया था आमद उतनी थी नही। दूसरी तरफ फतेह सिंह के पुत्र छोटा पाना के राजा बनकर खण्डेला में डटे हुए थे।धीरे-धीरे यह कर जयपुर द्वारा बढा चढ़ा कर लिया गया।विक्रमी 1784 तक खण्डेला 75000 रुपये वार्षिक देता था।
सवाई सिंह के बाद खण्डेला का राजा उनका पुत्र वृन्दावनदास बना जिसके समय कर 80000 रुपये हो चुका था और अधीनता में काम भी जयपुर के आदेश अनुसार करना पड़ता था। इसके समय छोटे पाना के राजा धीरजसिंह के पुत्र इंद्र सिंह थे उनमें भी बैर भाव बना रहा।

वृन्दावनदास ने ब्राह्मणो पर कर बढ़ा दिया जिसके विद्रोह हुए ।और ब्राह्मणों ने वृन्दावनदास की बहुत बदनामी की।और कहा जाता है कि उन्होंने अपने पाप मिटाने के लिए कई भूमि दान दिए। और अपना राज्य पुत्र गोविंद सिंह को दे दिया व खुद सन्यास धारण कर लिया।विक्रमी 1864 में जयपुर-जोधपुर की लड़ाई में काम आए।

गोविंद सिंह भी कुछ खास नही कर पाए लेकिन इनके समय मे मुगल सेनापति नजफ़ खाँ नारनोल से शेखावाटी प्रदेश में लूट मचाता हुआ पहुँच गया और थोई व श्रीमाधोपुर को लूट लिया और रींगस तक पहुँच गया। शेखावतों ने राव देवीसिंह के नेतृत्व में कस्बा खाटू श्याम के पास मुगलो से भीषण युद्ध लड़ा। इसमे खूड़ के ठाकुर बख्त सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए। ऐसे इतिहास प्रसिद्ध युद्ध मे खण्डेला के दोनों राजाओ के भाग न लेने  से पता चलता है कि वो आपसी गृह क्लेश से ही बाहर न निकले थे जबकि खण्डेला बडे पाने के राजा वृन्दावन दास ने फतेहपुर के युद्ध मे सेना भेजी थी।

राजा गोविंद सिंह खण्डेला,अपने ठिकाने के गाँवो की कृषि उपज निरीक्षण हेतु वह गाँव के दौरे पर था,यात्रा में एक दिन उंसके तम्बाखू के हुक्के का चिलमपोश जो सोने का बना था वह गायब हो गया।उंसके साथ के सभी सेवकों की बिस्तरबन्धी की जांच की गई तो वह किसी खेजडोलिया शेखावत के बिस्तर में मिला। फिर गोविंद सिंह ने उसे खरी खोटी सुनाई। फिर एक दिन शिश्यूँ के दुर्ग में सोते हुए गोविंद सिंह की हत्या उस युवक द्वारा कर दी गयी। इनके छह पुत्र थे जिसमें बड़े पुत्र नरसिंह को राजा बनाया गया।
#क्रमशः

गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

खंडेला का इतिहास भाग -21

राजा उदय सिंह और बाघोरा हत्याकांड




गतांक से आगे-
इसके बाद का खण्डेला राज्य आपसी फूट और भाईचारे की कमी से जूझता रहा और आपसी बैर भाव मे ही लगा रहा।
उदय सिंह एक चौधरी की मदद से खण्डेला पहुँचे और पीछे से राजा केसरी के वीरगति प्राप्त होने का संकेत मिला तो उनकी रानियां उनके साथ सती हो गयी और उदय सिंह खण्डेला के राजा बनाये गए। इन वक्त भी केसरीसिंह समर का लेखक खण्डेला राजदरबार में उपस्थित था।

इसके बाद विक्रमी 1763 में औरँगबाद में औरंगजेब की मृत्यु हो गयी। उधर कासली के राव दीप सिंह खण्डेला के मृत राजा केसरीसिंह के भाई फतेह सिंह के पुत्र धीरजसिंह को राजा बनाने और उदयसिंह से उसका 2/5 भाग वापस लेने की बात कही।जयपुर के सवाई जय सिंह द्वितीय की मदद से उदय सिंह के भतीजे धीरज सिंह को उंसके पिता का 2/5 भाग खण्डेला पुनः प्राप्त हो गया और 3/5भाग पर उदय सिंह राज कर रहे थे। यह सुलह तो हो गयी थी लेकिन आपसी लड़ाइयां फिर भी चलती रही।
बाजोर की लड़ाई भी इसी खण्डेला राजगद्दी के बाबत हुई थी जिसमे उदय सिंह की सेना हार गई थी और धीरज सिंह को पहले रानोली के कई गाँवो का राजा बना दिया गया था फिर जयसिंह जयपुर की मदद से सुलह हो गयी।
इधर मुगल दरबार मे औरंगजेब के बाद बहादुर शाह और उंसके बाद जहांदार शाह व इसके बाद फरुखसियर राजा बन गए थे।जिन्होंने उदय सिंह को दक्षिण न भेजकर यही पास की चौकी पर तैनात कर दिया था तथा 1000 जात और 700 सवार के मनसब को बढ़ाकर 1500 जात और 800 सवार कर दिया था जिससे उदय सिंह थोड़ा समृद्ध हुए।

मनसब प्राप्त होने के बाद उदय सिंह ने खण्डेला के बाहर एक दुर्ग का निर्माण किया जिसे कालांतर में उदयगढ़ या उदलगड कहा गया।यह निर्माण विक्रमी 1771 में किया गया। इसके दोनो कोनों पर दो विशाल बुर्ज बनी हुई है।इसके मध्य चौक में शिवालय बनाया गया और बीच मे बड़ा सा दरवाजा बना हैं। इस किले के अवशेष आज भी खण्डेला में विद्यमान है।

इस समय मुगल दरबार मे दो गुट बन गए थे एक बादशाह का और दूसरा सैय्यद बन्धुओ का।
उदयसिंह खण्डेला और अजित सिंह जोधपुर सैय्यद बन्धु के गुट में थे अतः उनका संकेत पाकर जाट विद्रोह में गयी सेना की पृष्ठ भाग से वापस उदय सिंह खण्डेला लौट आये जिससे सवाई जय सिंह खण्डेला से रुष्ट हो गए।

बाघोरा हत्याकांड
फतेहपुर के कायमखानी नवाब के साथ मिलकर सैयद बन्धुओ के इशारे पर उदयसिंह खण्डेला ने सवाई जयसिंह के समर्थक भोजराजोत के खिलाफ 1776 विक्रमी में षड़यँत्र रचा। नवाब ने उदयपुर के पास बाघोरा में पड़ाव डाला और उदयपुर के  शेखावत सामन्तों को बुलाया। वहां पहुँचने पर एक तम्बू में उनका स्वागत किया गया।और उसी तम्बू में बिछी दरियों के नीचे काफी बारूद बिछा दिया गया था। उस बारूद को आग लगा दी गयी और जो बच निकला उसे बाहर निकलते ही मौत के घाट उतार दिया गया। उक्त कांड में उदयपुर वाटी के 12 मुख्य सरदार मारे गए। शेखावत शार्दूल सिंह जगरामोत बच निकला और अपने भाइयों के खून का बदला लेने को आतुर था।
बाघोरा में जब यह सब हो रहा था उसी समय खण्डेला में केड के ठाकुर गोपालसिंह पर हमला हो रहा था जिसे उदयसिंह खण्डेला ने भोज में शामिल होने हेतु बुलाया था। उसे शराब में विष मिलाकर पिलाया गया और उस पर हमला किया गया।लेकिन उसके साथ गए वीर योद्धा उदोजी और भुदोजी जो उसके ख़्वासवाल भाई थे लड़ते हुए रथ में डालकर गोपाल सिंह को गुहाला लाये और उनका उपचार किया गया।
#क्रमशः

शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023

21 वी सदी और मैं

21 वीं सदी और मैं




जैसे एक तिमिर को हटाने के लिए सूरज को आना पड़ता है,
धरती की सुगबुगाहट मिटाने मेघो को आना पड़ता है।
आना पड़ता है जैसे मयूर को, बरसाती नाच दिखाने को,
उसी तरह इस अल्हड़ मन को भी,जिम्मेदारी का बोझ उठाना पड़ता है।


उठता हुँ जब पांच बजे तो खुद को फिट, मैं रखता हुँ,
निवर्त होकर दिनचर्या से, आजीविका के लिए जाता हुँ।
जब हो जाता है जुगाड़ इसका, तो थक हार कर आता हुँ,
आते ही खाकर दो रोटी ,बिछोने पे पसर जाता हुँ।


खो जाता हुँ पसरकर, आने वाले कल के संघर्ष मे,
बीत गया जो बात गयी वो,जैसा भी था उसके हर्ष मे ।
बस् यही सोचते -सोचते,आँख मेरी लग जाती है
कोयल देती आवाज उठो,फिर नई सुबह हो जाती है


जीवन की इस आपा- धापी मे, वक्त गुजरता जाता है
जीना हो जब खुद के लिए,तब यही प्रश्न उठ आता है
कैसे होगा इस 21 वी सदी मे जीवन यापन, 
जब हाथ ही  हाथ को निगलता जाता है।

                                            -आनंद


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