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बुधवार, 28 अप्रैल 2021

प्राणवायु-जीवनदायिनी हवा

प्राणवायु- जीवनदायिनी हवा



मत कर शैतानियां ,ये परेशानी का जमाना है
कर ले थोड़ा रहम खुद पर, फिर वही समां रहने वाला है।
होता है कभी- कभी वक्त भी बेईमान,थोड़ा रख सब्र
फिर वही मौसम, पुराना रहने वाला है।

गुनाहों की सजा कहे या आदमी की फितरत,
आखिर पूरी दुनियां को परेशानी है।
थोड़ा रुक जा, रहने दे सब कामों को,
करेगा अगर शैतानी, तो ये प्रकृति के साथ बेमानी है।।

कहा करते थे बुजुर्ग भी, कर ले इज्जत प्रकृति की,
पर तूने अपना ही स्वार्थ कमाया।
जरूरतें तो कर ली पूरी तूने, लेकिन
प्रकृति का सम्मान पूरा गंवाया।।

हंसता था तू लोगों पर जब,पानी को बंद बोतल में बेचा।
पर किसी दिन प्राणवायु भी बिकेगी ,ये कभी न सोचा।
आखिर कब तक ऐसा ही चलता जाएगा?
एक दिन तो पलटवार होगा, तूने ऐसा क्यों नही सोचा?

अभी भी वक्त है, कुछ न ज्यादा बिगड़ा,
सुधर जा और सुन ले प्रकृति की पुकार।
वरना आने वाली पीढियां भी दोष देंगी,
और जीना ही उनका हो जाएगा दुस्वार।।

खुदा जब बांट रहा था मुफ्त में इसको,
तो तूने कीमत इसकी नही पहचानी।
साक्षात प्रकोप चल अब  रहा इसका,
अब तो बचा ले प्राणवायु जीवनदायिनी।।

सप्रेम विनती-दोस्तों प्रकृति के महत्व को समझे, ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगाएं , ये अपने नही तो अपनी आने वाली पीढ़ियों के हित मे ही लगाएं।
वातावरण को शुद्ध करने हेतु प्रयास करे।
धन्यवाद।




बुधवार, 2 सितंबर 2020

मजदूर

              ( श्रमिक की व्यथा - सांझा संग्रह में प्रकाशित)     


                                

कैसा ये अभिशापित सा जीवन मिला,
यहां हर कोई अपने से बड़ा मिला।
लगे रहो दिन भर मेहनत को,
फिर भी कोई प्रशंसक न मिला।

भारत निर्माण को लगा हूँ,
होकर तरबतर पसीने से।
परवाह नही किसी को भी,
मेरे जीवन के अंधेरे से।

न कोई मुकम्मल पता ठिकाना है,
जीने का बस परिवार ही एक बहाना है।
सभ्य समाज मे है फिर भी कितने फोड़े,
चलाते रहते है लोग आत्मा पर हथोड़े।

कुछ तो बेबस और लाचार हूं,
परेशानी के आगे जो मजबूर हूं।
करने को तो कोशिश करता मैं भी हूँ,
पर कर न पाता मैं, जितना करना चाहता हूँ।

कुछ तो है इतने कठोर कि,
मेरी मेहनत भी उनको कम लगती है।
कर लूं चाहे लाख जतन मैं उनके लिए,
हर एक कीमत उनको गहरी लगती है।

कुछ मीठे सपने लेकर मैं, भी शहर में आया,
लेकिन देख मरती आत्मा को, यह शहर मुझे न भाया।
पर कुछ लाचारी और मजबुरी थी मेरी,
कई आंखे रोज शाम को इंतजार में थी मेरी।

लोगों के उज्जवल सपने को जीते-जीते,
जीवन मैने सारा गुजार दिया।
आखिर सहते-सहते सब कुछ,
मजबूरी और मजदूरी में जीवन सारा हार गया।

कोई न जाने व्यथा मेरी, दर- दर भटकता जाता हूँ,
फिर भी करके दृढ़ निश्चय,आगे बढ़ता जाता हूँ।
बिना सोचे कल की, मैं सिर्फ आज में जीता हूँ,
आखिर मजबूर हूँ मैं, इसलिए मजदूर कहलाता हूँ।

आनन्द

रविवार, 7 जून 2020

कोरोना के कर्मवीर

देश मे है फैली एक महामारी, जिसका नाम है कोरोना।
इस संकट से पार है अगर पाना, तो हाथ लगातार धोना।

जरा ध्यान करो उन लोगों का भी,जो घर पर भी न रुक पाते है।
और पीकर चाय घर के  बाहर से वापस अस्पताल आ जाते है।।
पता है उनको कि खतरा है उनको भी संक्रमण का,
फिर भी वो लगे आपकी सेवा में,न एक पल और गवांते है।।

वक्त की कैसी विडंबना है ये,
सफाई वाले भी पूरा साथ निभाते है।
और कैसी समस्या है ये अब,
अपनो से भी न मिल पाते है।

शर्म करो अब कुछ तो हे मानव,
क्यों धरती के भगवान को सताते हो।
नही आने वाला अब मंदिर वाला,
क्यों मानव सेवा में बाधा पहुँचाते हो?

पुलिस भला क्यों तुमको पीटे,
बन्द करो ये औछी हरकत और डॉक्टर पे थूक के छीटें।
आखिर में यही भगवान काम अब आएगा,
आन पड़ी इस अटल विपदा से यही बचाएगा।

परमार्थ इसी में हम सबका अब, साथ इनका देना है।
आया संकट देश पर, इसको दूर भगाना है।
करो सेवा लोगो की तुम, अगर ये भी न कर पाते हो,
तो बैठे रहो घर मे कुछ दिन, क्यों इन योद्धाओं को सताते हो?

कोरोना के कर्मवीरों को मेरा करबद्ध नमस्कार है,
अंत मेरी सबसे यही गुहार है,
बन्द करो सब प्रपंच और दकियानूसी,
इसमें ही हम सबका उपकार है।
 -आनन्द






रविवार, 10 मई 2020

कोरोना -एक महामारी

भारतवर्ष से उज्जवल देश मे
आया एक विकट तूफान,
कर सके कोई कुछ भी,
सब चिकित्सक भी हैरान।

रहना था और सामना भी करना था,
लक्ष्य भी अटल,लोगों को बचाना था।
करो जतन करके जुगाड़ कुछ भी,
आखिर वतन को जो बचाना था।

रहता है धरती पर भी एक भगवान,
जिसकी लीला ऐसी निराली,
और प्रयास बड़ा अथक और अटल
खुद देख भगवान बजाए ताली।

सफाईकर्मी को भी अब तो गर्व था,
उनके उत्साह से लगता यह भी पर्व था।
गौरव ज्वाला में स्वयंसेवक दल, पुलिस का बडा सहायक था,
देख कोशिश भारत की, भारत बना विश्व मे महानायक था।

जनता से मेरी यही एक अंतिम गुहार है,
करो प्रयास ऐसा कि देश बचे, यही बड़ा उपकार है।
भागा है मानव हर बार, अर्थ कमाने को,
वक्त है अब केवल देश बचाने को।

-आनन्द

रविवार, 3 मई 2020

मैं हूँ मेहनतकश मजदूर


मैं हूँ मजदूर


सही कहा साब आपने,
मैं हूँ मेहनतकश मजदूर,
कहने को तो दिल का राजा,
पर करने को हर काम, हूँ मैं मजबूर।

धन-दौलत का लालच नही मुझे,
दो वक्त की रोटी को हूँ मोहताज।
देख कर न करियो अचरज,
सबको कहता मैं महाराज।

तपती दोपहरी में भी न रुकता हूँ,
दुनियां का हर काम मैं करता हूँ ।
भले न मिले मुझे पूरी मजदूरी,
फिर भी न रखता मैं किसी से दूरी।

रोज सवेरे निकलता मैं, सांझ की रोटी को,
कोई टोकता,कोई रोकता,आदत मेरी खोटी को।
पी लेता हूँ दो बीड़ी,भुलाने को पेट की प्यास
दुर्बल हूँ भले ही तन से,पर मन में रहती एक आस।

एक दिन तो आएगा अपना भी
मैं कमाल ये कर जाऊंगा।
जान लगा दांव पर खुद की 
बच्चों को सम्बल मैं बनाऊंगा।

सही कहा साब आपने,
हूँ मैं मेहनतकश मजदूर।
पाने को दो वक्त की रोटी को,
पलायन करता मैं दूर-दूर।

लेकिन इसके बाद भी मैं,ना चोरी-डकैती करता हूँ
मेहनत से मिले भले ही दो पैसे,ईमानदारी से जीता हूँ।
गर्व से कहता हूं मैं मजदूरी करता हूँ,
लेकिन फिर भी स्वाभिमान से जीता हूँ।

-आनन्द

विनम्र अपील- दोस्तों, पेट तो अपना हर कोई भरता है लेकिन आपसे अनुरोध है कि अगर आपके आस- पास कोई ऐसा परिवार रहता है तो उसका साथ दे और उसे महसूस न होने दे कि वो किसी गरीब तबके से है।
मानव हित जैसी परिस्थितियां अपने देश मे अभी चल रही है , ऐसे लोगो का ध्यान रखे उन्हें सपोर्ट करे।
जय हिंद, जय भारत।


बुधवार, 15 अप्रैल 2020

कोरोना के असली योद्धा



कोरोना के असली योद्धा


Pic- fb 

देश मे फैला है एक संकट जिसका नाम है कोरोना,
सत्ता की बहस को छोड़ो मेरे यारों।
इसका तो चिरकाल से ही चला आ रहा, यूं ही रोना-धोना।

ध्यान करो जरा उन फरिश्तों का भी,
जिनके खुद के भी कुछ सपने है।
बेपरवाह होकर लगे है जनसेवा में,
उनके भी तो कई अपने है।

कहती होगी वो माँ भी अपने बेटे से,
कुछ दिन छुट्टी लेले अपने पेशे से।
अवज्ञा करके भी, वो आपकी सेवा में आता है,
बचाने को तुम्हे वह, खुद इस बला से लड़ जाता है।

मजबूरी तो  देखो ,अपने बच्चों को एक
आलिंगन भी न दे पाते है।
कैसी विपदा आन पड़ी है जो,
अपनो से न मिल पाते है।

ये वही योद्धा है जो आपकी सेवा में ,
एक पल भी न और गवांते है।
अब तो सुधरो तुम हे मानुस!
सोचो, क्यों इनकी मेहनत को भी हम जाया करते है।

मांगा ही क्या है इन लोगो ने तुमसे!
खाली रहना ही तो है अपने घर मे।
संकट है कट जाएगा एक दिन यह भी,
क्यों रहते हो खुद भी इस डर में।

है तुम्हारा भी कुछ कर्तव्य इस घड़ी में,
क्यों इनकी सेवा का अनुचित लाभ उठाते हो।
बन्द करो सब प्रपंच और मिलना- जुलना कुछ दिन,
क्यों इनको भी तुम बाधा पहुँचाते हो?

कुछ ऐसे भी है जिनको नींद नसीब नही ,
दिन और रातों में।
चौराहे पर लगती ड्यूटी,इस इस भीषण गर्मी,
और बारिश की छाटों में।

उनको कोई लाभ नही आपकी पिटाई में,
लगे हुए है वो तो केवल आप सबकी भलाई में।
न खाने की सुध है, न रहने का कोई ठिकाना,
लक्ष्य है इनका इस संकट को पार लगाना।

कहता है आनंद तुमसे ये, सुनो जरा तुम ध्यान से,
साथ इन्ही का दो तुम, पूरे तन-मन-धन और मान से।
माहौल बना दो कुछ ऐसा की, मिसाल बनो इस संसार मे,
मानव की सेवा मानव करे, गौरव रहे अपना सिर्फ इस प्यार में।

-आनन्द

अपील- सभी लोगों से मेरा विनम्र निवेदन है कि - पुलिस और मेडिकल कर्मचारियों का दिल से साथ दे और उन्हें मनोबल प्रदान करे इस संकट की घड़ी में ताकि वो इससे पार पा सके।
और कुछ नियम खुद भी बना ले।
1 ज्यादा से ज्यादा हाथ धोये।
2 अल्कोहल वाले सेनेटाइजर से हाथ साफ करें।
3 कम से कम घर से बाहर निकले।
4 अपने साथ के सभी लोगो का ध्यान रखे।
5 हो सके जितनी पुलिस और चिकित्सा विभाग की मदद करे।

जय हिंद, जय भारत।





शनिवार, 30 मार्च 2019

फौजी है भाई मेरा।

                     - सप्रेम विनती-

       (विशेष- सहित्यनामा पत्रिका के sept में प्रकाशित)
फौजी है भाई मेरा, जरा साथ निभाना इसका,
ये दुनियां बड़ी गोल है, यहाँ कोई न किसी का।

वैसे तो सीमा पर इसने, तनाव बहुत से झेले है,
लेकिन फिर भी इसके जीवन में, हर पल संकट के रेले हैं।

एक अच्छा हमसफर चुना है तुम्हें, भगवान ने इसका,
फौजी है भाई मेरा, जरा साथ निभाना इसका।

यूँ ही नही मिल जाता हर- कोई किसी को राहों में,
विनती है भगवान महफूज़ रखे,आपको इसकी बाहों में।

दिखने में इसने भी, साधारण सा जीवन है बिताया,
किस्मत अच्छी है मेरी जो, मैने इसके जैसा दोस्त है पाया

जगह बदलना फितरत नही इसकी, फिर भी ज़िंदगी लोहारों  सी,
छवि ही ऐसी बन गयी इसकी, सीमा के प्रबल पहरेदारों सी।

सीमा पर पहले वार न करता, नेक करम है ऐसा इसका,
दुश्मन फिर भी ध्यान न देता,कि ये भी कुछ तो होगा किसी का


जीवन के इस चक्र में, तुम्हें हर काम में आगे आना है,
जीवन भर अडिग रह-कर ,साथ जो इसका निभाना है।

                                  
                                  लेखन-आनन्द
                                  इंजीनियर की कलम से -
                                   

शुक्रवार, 22 मार्च 2019

तभी तो फौजी कहलाता हूँ(अक्षय-गौरव में प्रकाशित)

           तभी तो फौजी कहलाता हूँ



सुबह 4 बजे उठकर दिनचर्या में ढल जाता हूँ,
यारों तभी तो मै फौजी कहलाता हूँ।।

होती है छुट्टी चंद दिनों की,उसमे सदियों जी जाता हुँ,
और 5 साल की बेटी को चॉकलेट देकर बहलाता हुँ।
करके वादा माँ बाप से सुबह जल्दी घर से निकल आता हुँ,
यारों तभी तो मैं फौजी कहलाता हुँ ।।

अब तो सीमा पर ही होता है मेरा साँझ सवेरा,
औऱ बंकर ही लगता है मुझे घर मेरा,
यूं तो सीमा पर कहने को सब मेरे भाई हैं,
लेकिन सामने वाले बड़े क्रूर औऱ आततायी है,
लगी चोट को मै अब खुद ही सहलाता हुँ,
यारों तभी तो मैं फौजी कहलाता हुँ।।

कुछ लोग जो फौज को इतना गंदा कहते हो,
कयूँ भारत माँ के रखवालो पर इल्ज़ाम लगाते हो,
एक दिन तो डटकर देखो सीमा पर तुम,
देखे कितना तुम टिक पाते हो,
और ना हो तुमसे जब ये तो,
कयूँ सेना पर कालिख लगाते हो।
देश सेवा के एक आर्डर पे अब मैं चला आता हूँ,
यारों तभी तो शायद में फौजी कहलाता हूँ।।

जम्मू की सर्दी और राजस्थान की गर्मी को हंसते हंसते सह जाता हूँ,
वेतन मिलता है थोड़ा सा , लेकिन फिर भी मैं काम चलाता हूँ।
हर कॉल पे अगले महीने आने की, झूठी दिलासा दिलाता हूँ,
तुम्हें पता नही यारों, तभी तो मैं फौजी कहलाता हूँ।

केरला की बाढ़ हो या हो उत्तराखंड का भू-स्खलन
सबमे हँसते-हँसते शामिल हो जाता हूँ,
भारत माँ की रक्षा को आतुर, अब ना एक पल और गवाता हूँ
चारों ओर भाईचारे और अमन ,शांति के लिये
सबका साथ निभाता हूँ
तुम्हें पता नही यारों, तभी तो फौजी कहलाता हूँ।


       जय हिंद , जय भारत, जय माँ भारती।।।



                                        लेखन-आनन्द
                                       इंजीनियर की कलम से-
                                       
                                



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