शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

यादें तेरी

यादें तेरी
Pic- गूगल साभार

जिन्दगी की उधेड़बुन में,
न जाने क्यों 
भूल जाता हूँ तुम्हारी यादों को,
यादों के उन तमाम वादों को।

एक बिखरी सी सुबह जब 
सोकर जागता हूँ,
तुम्हारी एक झीनी सी तस्वीर,
नजर जो आती है,

आती है उसी के साथ वो 
गर्म कॉफ़ी और लजीज नाश्ता,
और नाश्ते के साथ नेक इरादों को।

तुम होती तो हो उस पल में,
पर पोहे में सिर्फ मूंगफली के दाने सी,
जो चाहिए मुझे पोहे से भी ज्यादा,
मैं क्यों भूल जाता हूँ उन हसीन लम्हों को,

जिनमें खाने से ज्यादा,
चाहिए उपस्थिति तुम्हारी,
बस वही एक एहसास मुझे,
चाहिए हर पल और हर क्षण में।

जिन्दगी की उधेड़बुन में ,
न जाने क्यों भूल जाता हूँ तुम्हें,
मानता हूं गुनहगार तो हूँ मैं 
आपकी तन्हाई का,

पर सजा दो तुम मुझे प्यार से,
है कुबूल सब जख्म,
लेकिन चाहिए सभी आपके साथ मे,
उन खुशनुमा लम्हों की याद में।

हर पल आपकी यादों का,
ही तो मुझपे साया है,
आपके साथ बीते हर एक पल को,
इस दिल ने खुद संजोया है।

-आनन्द-
विशेष- जाने अनजाने में या फिर जिंदगी की व्यस्तताओं में हम कितनी ही बार अपनी जिंदगी में उन हसीन और अच्छे पलों को खो देते है। अतः इन छोटे-छोटे पलों का भरपूर तरीके से जिये।

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2019

नेताजी, भई नेताजी (बाल कविता)

नेता जी,भई नेताजी


Pic-गूगल साभार

नेताजी भाई नेता जी
कहते इनको नेता जी,
इंसानियत मर गयी इनकी जीते जी,
जितना चाहो रोज खिलाओ,
भरता न इनका पेटा जी,

आता है जब वक्त चुनावों का,
करते ये नौटंकी जी,
जाते सारे गाँव-गाँव और,
करते झूठे कसमें-वादे जी।

जीत जाते जब ये चुनाव ,
समझते खुद को राजा जी,
आते न एक दिन भी जनता में,
करते अपने मन का सोचा जी,

देश का ये बजट बनाते,
खुद का ईमान बेच खाते जी,
बनवा लिए बंगले और मकान विदेशों में,
इनकी जनता भरती खोटे जी,
नेता जी, भई नेता जी।

जब आये बारी पुलिस के पकड़ने की,
कार्यालय में छुप जाते जी,
फिर कोशिश करते 
कानून से सौदेबाजी की,
जब भी न बनती बात तो ये,
कर लेते ये विनती जी,
नेता जी, भाई नेता जी,

औलादें इनकी बैठे- बैठे,
 करोड़पति कहलाती जी,
बाकी जनता चाहे तरसे एक -एक दाने को,
वो ना है इनकी कोई विपदा जी।

खुद न करते कोई काम और मेहनत,
बैठे रहते ठाले जी,
फिर भी आता पैसा और ,
करते रहते घोटाले जी,

नेता जी भाई नेताजी,
सरकार अब बदल गयी और 
जनता को भी समझ आ गया 
काम आपका खोटा जी,
नेता जी भाई ,नेताजी।

-आनन्द-

अपील- यह एक हास्य और व्यंग्य की एक मिली जुली कविता है इसका किसी से व्यक्तिगत भावना को ठेस पहुँचाना नही अपितु समस्त जनता को जागृत करना है। 




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