शनिवार, 30 मार्च 2019

फौजी है भाई मेरा।

                     - सप्रेम विनती-

       (विशेष- सहित्यनामा पत्रिका के sept में प्रकाशित)
फौजी है भाई मेरा, जरा साथ निभाना इसका,
ये दुनियां बड़ी गोल है, यहाँ कोई न किसी का।

वैसे तो सीमा पर इसने, तनाव बहुत से झेले है,
लेकिन फिर भी इसके जीवन में, हर पल संकट के रेले हैं।

एक अच्छा हमसफर चुना है तुम्हें, भगवान ने इसका,
फौजी है भाई मेरा, जरा साथ निभाना इसका।

यूँ ही नही मिल जाता हर- कोई किसी को राहों में,
विनती है भगवान महफूज़ रखे,आपको इसकी बाहों में।

दिखने में इसने भी, साधारण सा जीवन है बिताया,
किस्मत अच्छी है मेरी जो, मैने इसके जैसा दोस्त है पाया

जगह बदलना फितरत नही इसकी, फिर भी ज़िंदगी लोहारों  सी,
छवि ही ऐसी बन गयी इसकी, सीमा के प्रबल पहरेदारों सी।

सीमा पर पहले वार न करता, नेक करम है ऐसा इसका,
दुश्मन फिर भी ध्यान न देता,कि ये भी कुछ तो होगा किसी का


जीवन के इस चक्र में, तुम्हें हर काम में आगे आना है,
जीवन भर अडिग रह-कर ,साथ जो इसका निभाना है।

                                  
                                  लेखन-आनन्द
                                  इंजीनियर की कलम से -
                                   

मंगलवार, 26 मार्च 2019

कॉलेज के दिन

                         -कॉलेज के दिन-                          (प्रकाशित-काव्य प्रभा)

याद आती हैं मुझे , कॉलेज की वो हर बातें
दिन में क्लास और हॉस्टल की हसीन रातें,

मैश का वो खाना अब, लगता घर से भी न्यारा था
रहने वाला वहाँ हर कोई भाई से भी प्यारा था,

रीसस होते ही सारे कैंटीन में आते थे
एक दूसरे के टिफिन को , पल में चट कर जाते थे

देकर चकमा टीचर को , कभी-कभी बंक भी कर जाते थे
होस्टल आना कैंसिल करके, मूवी देखने जाते थे,

याद आती है मुझे , कॉलेज की वो हर  बातें
दिन की मस्तियाँ और सुकून भरी रातें,

जैसे-तैसे करके 2 बजे वापस हॉस्टल आते थे,
खाके खाना अब, गहरी नींद में सो जाते थे।

उठाकर बैट शाम को, ग्राउंड पर चले आते थे,
बिना किसी सिग्नल के, सारे वहाँ इक्कठे हो जाते थे,

अँधेरा हुआ, निकलो यहाँ से, कहके  पीटीआई हमपे चिल्लाता था
पर कौन सुने उसकी, जब तक हर कोई थक न जाता था,

बहुत याद आती है मुझे, कॉलेज की वो बातें
दिन की क्लास और वाई- फाई के साथ जागती रातें,

आदतें तो बहुत थी पर, शायद  ये सबसे निराली थी
खेलकर आते ही, संगम पर तैयार स्पेशल चाय की प्याली थी,

बैठकर थड़ी पर चाय पीना, तो बस एक बहाना था
कर लेते थे गुफ्तगू एक दूजे से, वो भी एक जमाना था

थी उम्मीद की पट जाए कोई, इस आस में gt जाते थे
खाकर प्रसाद रोज, बैरंग ही लौट आते थे,

बहुत याद आती है मुझे , कॉलेज की वो बातें,
दिन की नींद और एग्जाम डेज की डरावनी रातें,

असाइन्मेंट कॉपी करना, तो था टैलेंट हमारा,
पर कोशिश थी, बिना कॉपी किये रह न जाए कोई बिचारा।

याद आती है मुझे कॉलेज की वो बातें,
जहां दिन में क्लास और थकान भरी रातें।
                               
                              
                               इंजीनियर की कलम से- आनन्द
                               Memoriable batch _2013-16
                              MBM ENGG. COLLEGE
                              JODHPUR

                

रविवार, 24 मार्च 2019

जब सामने तुम आती हो,

                   -जब सामने तुम आती हो

Pic-गूगल साभार

दिल बहल सा जाता है,
 जब सामने तुम आती हो,
आते ही हल्की सी 
मंद मुस्कान जो बिखराती हो।

ये हंसी नहीं दर्पण है, 
मानो शुद्ध सपनों का,
जब हल्के से तुम 
बालों को सहलाती हो।।

आँखे तुम्हारी मछली सी,
चलती हो जैसे मानों हिरण,
तुम्हे औऱ कहूं क्या मैं, लगती हो
 जैसे सूरज की पहली किरण।

दोस्तों के साथ जो 
तुम इतना इठलाती हो,
दिल मचल सा जाता है ,
जब सामने तुम आती हो।।

नज़दीक से गुजरती हो तब तुम, 
धड़कन मेरी बढ़ सी जाती है,
निकल तो जाती हो तुम,
 पर याद तुम्हारी रह जाती है।

यूँ तो ठोस हृदय है मेरा, 
जाने फिर भी तुम पिघला जाती हो,
दिल खुश हो जाता है मेरा, 
जब सामने तुम आती हो।।

कमर तुम्हारी बल खाती सी, 
जब तुम चलती हो,
नींद तो आती है मुझको, 
पर सपनों में तुम रह जाती हो।

चाँद-समां चेहरे पे जो तिल है 
लगता तुमको साधारण सा,
पर तुम्हें पता नही शायद,
तुम इसीलिए दिल मे बस जाती हो।।

मैं कैसे कहूँ तुमसे 
क्या हाल होता है मेरा,
जब तुम आँखों से ओझल हो जाती हो।
बस यूँ समझ लो एक पल में 
सौ बार जी लेता हूं ,मैं
जब सामने तुम आती हो,
 जब सामने तुम आती हो।।
   
                                     -इंजीनियर की कलम से-आनन्द
                                      

शुक्रवार, 22 मार्च 2019

तभी तो फौजी कहलाता हूँ(अक्षय-गौरव में प्रकाशित)

           तभी तो फौजी कहलाता हूँ



सुबह 4 बजे उठकर दिनचर्या में ढल जाता हूँ,
यारों तभी तो मै फौजी कहलाता हूँ।।

होती है छुट्टी चंद दिनों की,उसमे सदियों जी जाता हुँ,
और 5 साल की बेटी को चॉकलेट देकर बहलाता हुँ।
करके वादा माँ बाप से सुबह जल्दी घर से निकल आता हुँ,
यारों तभी तो मैं फौजी कहलाता हुँ ।।

अब तो सीमा पर ही होता है मेरा साँझ सवेरा,
औऱ बंकर ही लगता है मुझे घर मेरा,
यूं तो सीमा पर कहने को सब मेरे भाई हैं,
लेकिन सामने वाले बड़े क्रूर औऱ आततायी है,
लगी चोट को मै अब खुद ही सहलाता हुँ,
यारों तभी तो मैं फौजी कहलाता हुँ।।

कुछ लोग जो फौज को इतना गंदा कहते हो,
कयूँ भारत माँ के रखवालो पर इल्ज़ाम लगाते हो,
एक दिन तो डटकर देखो सीमा पर तुम,
देखे कितना तुम टिक पाते हो,
और ना हो तुमसे जब ये तो,
कयूँ सेना पर कालिख लगाते हो।
देश सेवा के एक आर्डर पे अब मैं चला आता हूँ,
यारों तभी तो शायद में फौजी कहलाता हूँ।।

जम्मू की सर्दी और राजस्थान की गर्मी को हंसते हंसते सह जाता हूँ,
वेतन मिलता है थोड़ा सा , लेकिन फिर भी मैं काम चलाता हूँ।
हर कॉल पे अगले महीने आने की, झूठी दिलासा दिलाता हूँ,
तुम्हें पता नही यारों, तभी तो मैं फौजी कहलाता हूँ।

केरला की बाढ़ हो या हो उत्तराखंड का भू-स्खलन
सबमे हँसते-हँसते शामिल हो जाता हूँ,
भारत माँ की रक्षा को आतुर, अब ना एक पल और गवाता हूँ
चारों ओर भाईचारे और अमन ,शांति के लिये
सबका साथ निभाता हूँ
तुम्हें पता नही यारों, तभी तो फौजी कहलाता हूँ।


       जय हिंद , जय भारत, जय माँ भारती।।।



                                        लेखन-आनन्द
                                       इंजीनियर की कलम से-
                                       
                                



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