सोमवार, 29 नवंबर 2021

खण्डेला का इतिहास भाग-11

राजा गिरधर दास खण्डेला



गतांक से आगे-
राजा रायसल के बाद खण्डेला की गद्दी पर उनके छोटे पुत्र गिरधर दास जी बैठे।
गिरधर जी और राव तिरमल जी सहोदर भाई थे। इनको राजगद्दी मिलने के कई कारण रहे है।राजा रायसल के ज्येष्ठ पुत्र लाडख़ान के माधोदास आदि पुत्रो ने अपने पितामह रायसल के जीवन काल मे उंसके विरुद्ध विद्रोह करके उनके मन को खिन्न कर दिया था।तभी से राजा रायसल अपने राज्य हेतु किसी सुयोग्य और आज्ञाकारी पुत्र को राजा बनाने की मनः स्थिति बना चुके थे।

राजा गिरदर के अभियानों में अमरचम्पू के विरुद्ध लड़े गए युद्ध मे हरावल में थे और वीरता से युद्ध किया और विजयी हुए। तब रायसल ने अपने मन को पक्का करते हुए निर्णय ले लिया था। ऐसा सम्भव हो कि रायसल ने जहाँगीर को अपनी मनः स्थिति बतायी हो तभी जहाँगीर ने खण्डेला का राजा उसे घोषित कर दिया था। दक्षिण के अन्य अभियानों में भी गिरधर थे उनको 800 जात और 800 सवारों का मनसब प्राप्त था।

बिलोचो के विद्रोह को राजा गिरदर द्वारा दबाया गया और अंत में बादशाह ने उन्हें दक्षिण में सूबेदार बनाकर रायसल की जगह भेज दिया था।
अमरसर के पाटवी राव जी ने आकर गिरधर को टीका दिया।किंतु राजा गिरधर अपनी उच्च स्थिति का आनन्द ज्यादा समय तक नही भोग सके।
जहाँगीरनामा में लिखा है कि-जब राजा गिरधर दक्षिण में नियुक्त थे तब,
शहजादा परवेज के नोकर बारह गाँव के सय्यद कबीर के एक सय्यद ने अपनी तलवार उजली करने के लिए सिकलीगर को दी थी।उसकी दुकान राजा गिरधर की हवेली के पास थी। सय्यद दूसरे दिन तलवार लेने आया, तो मजदूरी की बात पर झगड़ा हो गया। अब सय्यद के नोकरों ने सिकलीगर की पिटाई कर दी।

इसलिए गिरधर जी के लोगो ने सिकलीगर का पक्ष लेकर सय्यद के लोगो को पीटा। दो -तीन बारह गाँव के सय्यद उधर रहते थे, वे हल्ला सुनकर सय्यद की सहायता को दौड़े आये और बड़ी लड़ाई छिड़ गयीं।तीर व तलवार चलाने की नोबत आ गयी। सय्यद कबीर खबर पाकर 40 घुड़सवारों के साथ वहाँ पहुचा। राजा गिरदर और उनके भाई बन्द हिन्दू अचारनुसार वस्त्र (युद्ध वस्त्र)उतार कर भोजन कर रहे थे।
राजाजी ने कबीर को आया देखकर कर अपने आदमियों को अंदर बुलाकर किवाड़ बन्द कर लिए ताकि झगड़ा बढ़े नही। सय्यद कबीर किवाड़ जलाकर अंदर घुस गया और लड़ाई हो गयी। राजाजी अपने 26 नोकरों सहित मारे गए, 40 आदमी घायल हुए और 4 सय्यद मारे गए।
फिर सय्यद राजाजी की घुड़साल के घोड़े लेकर अपने घर चला गया।राजा गिरधर की इस प्रकार मारे जाने की खबर सुनकर राजपूतो का खून खोल उठा।उन्होंने अपने डेरो से सेना लेकर निकल पड़े और सय्यद पर चढ़ाई कर दी।उधर तमाम सय्यद किले के निचले मैदान में आ गए। खबर पाकर महावत खान वहां पहुँच गया उसे मामला समझते देर न लगी। वह तसल्ली देकर सय्यद को किले में छोड़ आया और राजपूतों को तस्सली देकर घर भेजा। दूसरे दिन महावत खान राजा गिरधर के पुत्रों को आश्वासन दिया कि सय्यद कबीर को पकड़ लिया जाएगा । और अगले ही दिन कबीर को पकड़ लिया गया और कैद कर दिया गया लेकिन राजपूतो को उनकी कैद पर भरोसा नही था क्योंकि दोनो के मिले होने का डर था । कुछ दिनों बाद गिरधरदास के 5 विश्वस्त लोगों ने मौका पाकर कबीर सय्यद को मौत की नींद सुला दी जिसका महावत खान को पहले से डर था। यह घटना पोष मास की विक्रमी 1680 की है।
इस प्रकार खण्डेला का अगला राजा उनके बड़े पुत्र द्वारकादास को बनाया गया तथा बाकी भाइयो को जागीरों में निवास करना पड़ा।
 भाइयो में -
1.द्वारकादास
2.किशन सिंह
3.हरिसिंह
4.गोकल
5.गोरधन
6.सूरसिंह
किशन सिंह जी बादशाही सेवा में अपने भाई के साथ चले गए और उनके भी तीन पुत्र हुए जो- जय सिंह ,अखै सिंह और महासिंह थे जिनके वंशज बावड़ी, केरपुरा और पलसाना में आज भी भूमिधारक होकर निवास करते है और लेखक खुद भी गिरधरदासोत रायसलोत शेखावत है जो गाँव केरपुरा मे निवास करते है।
बाकी खण्डेला के आस पड़ोस के गांव जैसे - दान्ता, रलावता, खुङ, ठिकरिया, बावड़ी, डूकिया, केरपुरा, गुरारा,दुदवा, राजपुरा आदि अनेक गाँवो में गिरधर जी के शेखावत निवास करते है।
#क्रमशः

शनिवार, 27 नवंबर 2021

खण्डेला का इतिहास भाग-10

राव तिर्मल जी और सीकर प्रशासन




गतांक से आगे-
यदि खण्डेला इतिहास की बात की जाए तो राजा रायसल के पुत्रो में आगे बढ़ा इतिहास केवल तिरमल जी, भोजराज जी, और गिरधर जी का ही ज्यादा मिलता है क्योंकि इनके वंशजो ने लोकतंत्र की स्थापना तक तिरमल जी के वंशजो ने सीकर(वीर भान का बास),भोजराज के वंशजो ने उदयपुरवाटी व खेतड़ी और गिरधर के वंशजो ने खण्डेला पर आजादी तक शासन किया। इन तीनों का विस्तृत इतिहास आगे के भाग में पढेंगे।
रायसल जी के दूसरे पुत्र थे राव तिरमल जी , जिनके वंशज "राव जी के शेखावत" कहलाते है। नागौर व कासली का परगना इनके पास था। बादशाह अकबर ने तिरमल जी को राव की पदवी प्रदान की थी।
तिरमल जी और गिरधर जी सहोदर भाई थे। राव तिरमल जी के नाम से ज्यादा उनके राव की पदवी प्रसिद्ध हुई।

सीकर के राव राजा और उनके वंशज तिरमल जी के वंशज होने के कारण ही राव जी कहलाते थे। नैणसी की ख्यात में इनका नाम "तिर्मण राय"मिलता है। जोधपुर महाराजा शूर सिंह ने खण्डेला जाकर तिरमल की पुत्री से विवाह किया था।राव तिरमल जी के पुत्रों में गंगाराम, बनिछोड़, जसकरण और आसकरण थे। 
आमेर के राजा मिर्जा मान सिंह के पुत्र कुंवर जगत सिंह को फिर कालान्तर में नागौर का पट्टा दिया गया और तिरमल जी कासली आ गए। इसके बाद कायमखानी नवाबो से फतेहपुर छीन लिया और दूसरी तरफ से राज्य विस्तार करना शुरू कर दिया। जब मराठों ने जयपुर महाराजा ईश्वरी सिंह पर आक्रमण किया तो गंगाधर तांत्या का दमन  भी ईश्वरी सिंह की तरफ से राव तिरमल द्वारा  किया गया।इन्होंने शेखावाटी प्रसिद्ध युद्धों में से एक "बगरू का युद्ध" मे ईश्वरी सिंह की सेना के हरावल भाग का नेतृत्व किया और आमेर को जीत दिलाई, लेकिन इसी युद्ध मे शरीर पर अनेक घाव लग जाने से राव तिरमल जी वीरगति को प्राप्त हुए।

आगे आने वाली इनकी पीढ़ी में जगत सिंह और दीप सिंह अच्छे वीर हुए जिन्होंने एक और शेखावाटी के प्रसिद्ध युद्ध "हरिपुरा का युद्ध" मे खण्डेला के राजा केशरी सिंह की तरफ से विक्रमी 1754 में लड़े।
इनकी प्रमुख जागीरों में दूजोद, श्यामगढ़, बलारां, बठोठ, पाटोदा, सरवड़ी, जुलियासर, तिडोकी बड़ी, गड़ोदा आदि गाँव हुए।
इनका विस्तृत इतिहास आगे के हिस्सों में पढेंगे इनकी पूरी एक शाखा चली जिसने आजादी तक शासन किया सीकर में और लोकतंत्र तक सीकर इनके हाथ मे था।
इसके बाद खण्डेला,सीकर,और उदयपुर-खेतड़ी का भाग आता है, पहले कोनसा पढ़ा जाए?
#क्रमशः-

सोमवार, 22 नवंबर 2021

खण्डेला का इतिहास भाग-9

लाडखानी शेखावत और उनका धैर्य




गतांक से आगे-
राजा रायसल के 12 पुत्र थे जिनमें 7 का वंश आगे बढ़ा बाकी के कोई औलाद नही थी। जिनमें लाल सिंह, ताज सिंह, तिरमाल, भोजराज, परसराम, गिरधर, हरिराम जी।
रायसल जी के बाद गिरधर जी को खण्डेला का राजा बनाया गया तथा बाकी भाइयों को जागीरे दी गयी।
लालसिंह (लाडखानी)-घाटवा से लामयां तक की पट्टी।
तिरमल जी-नागौर -कासली पट्टी
भोजराज-उदयपुर
गिरधर-खण्डेला
परसराम-12 गाँवो के साथ बाय का ठिकाना
तेजसिंह-डीडवाना और झाड़ोद पट्टी के गाँव
हरिराम-मूंडरू के साथ अन्य पड़ोसी गाँव।

1.लाडखानी- रायसल जी के ज्येष्ठ पुत्र थे। बादशाह उन्हें लाडखान कहकर पुकारता था तो उनका नाम लाडखान पड़ गया फिर आगे जाकर लाडखानी शेखावत कहलाये।

युवावस्था में पहुचते ही लाडखान जी हुजूरी सेवको और साथियों की कुसंगति में भांग, अफीम, गांजा के सेवन में पड़ गए।नशे ने उन्हें आलसी बना दिया परिणामतः वो कुशल राजा न बन सके।कभी खण्डेला तो कभी रैवासा रहते हुए उन्होंने अपना आराम का समय व्यतीत किया।खण्डेला की बहियों से पता चलता है कि लाडखान बहुत ही धैर्य शील और धर्मवान व्यक्ति थे। साधु महात्माओ की सेवा की तरफ अधिक रुझान था। अपने समय के प्रसिद्ध सन्त दादू दयाल के भक्त थे।

लाडा फौजां लाडखान सिरदार सहट्टा।
कल्हण दे कल्याण दे भगी पांव ओहहट्टा।।

इससे सिद्ध होता है कि लाडखान और उनके पुत्र कल्याणदास बहुत ही वीर थे और अग्रिम पंक्ति में युद्ध करते थे। धोळी के सीमा युद्ध मे वो मानसिंह के खिलाफ लड़े थे। लाडखान जिस चीज के लिए प्रसिद्ध थे वह है उनका धैर्य और सहनशीलता व भाइयों के प्रति प्रेम।
एक किस्सा है उनके धैर्य का -
एक बार खण्डेला में भयंकर अकाल पड़ा ,जनता अन्न के दाने -दाने को तरस गयी। तब राजा रायसल जी थे लेकिन शासन प्रभार तब भोजराज जी देखा करते थे। तब रायसल जी सहमति से भोजराज ने जनता की सहायता हेतु अकाल राहत योजना के तहत एक तालाब खुदवाना शुरू किया जिसमें मजदूरों को भगर(अन्न) दिया जाता था। तब रोज बैलगाड़ियों पर अन्न के बोरे लादकर होद गाँव की तरफ लाते थे और मजदूरों को बांट देते थे।
कल्याणदास को लगा कि ऐसे तो पूरे राज दरबार के अन्न भंडार खाली हो जायेगे ,काका ऐसे क्यों कर रहे है। वह गुस्से में ही खण्डेला दुर्ग में पहुँच गया और भोजराज जी से बात ज्यादा बढ़ गयी। तब उसी क्रोध में भोजराज न कल्याणदास को मौत के घाट उतार दिया।
तभी तो कहा गया है-
"भोज भगर के कारणे ,मारयो भँवर कल्याण।"

अब कल्याणदास के बाकी भाई अपने काका भोजराज से बदला लेने पर उतारू हो गए। अपने बाकी सभी पुत्रो को लाडखान ने समझाया और शांत किया लेकिन जब नही माने तो  बोले- "अगर कल्याण तुम्हारा भाई था तो अब भोजराज भी तो मेरा भाई है। मैं अपना जीवन देकर भी भोजराज की रक्षा करूँगा।"
कल्याण ने अपने पितामह की आज्ञा की अवहेलना की तो उसे उसका नाम दण्ड मिल गया।पिता के ऐसे वचनों  ने बाकी भाइयों के क्रोध को शांत कर दिया और वे सभी लाडखान की आज्ञा का उल्लंघन नह कर सके।

लाडखान जी घाटवा के अलावा लोहागर्ल भी रहा करते थे जहां उन्होंने प्रतिहार कालीन वराह मन्दिर जीर्णोद्धार करवाया व गोपीनाथ जी अनन्य भक्त थे। अपने अंतिम समय मे वे वृन्दावन चले गए और वही उनकी इहलीला समाप्त हुई।
उनके पुत्र 11 थे जिनमें 5 निसन्तान थे बाकी 6 के वंशज आज भी लाडखानी कहलाते है
1.सुन्दरदास जी
2 आसकरण जी
3 जगरूप जी
4 केशरी सिंह जी
5 हरिसिंह जी
6 माधोदास जी
 और ठाकुरवास, सुदरासन, बरड़वा, भीमोद, दयालपुरा, नीमास, खूड़ी, चाचिवाद, लामयां, रोलाना, लुनियावास, दौलतपुरा आदि गाँवो में निवास करते है।
खाचरियावास इनका प्रमुख ठिकाना निकल जहाँ सम्मानीय "भैरुं सिंह जी शेखावत" भारत देश के उप-राष्ट्रपति हुए वो भी एक लाडखानी शेखावत थे
#क्रमशः-।

शनिवार, 20 नवंबर 2021

खण्डेला का इतिहास भाग-8

राजा रायसल और उनके ठिकाने



गतांक से आगे-
इसी समय तंवरावाटी में उपद्रव हुआ तो खुद रायसल शेखावत ने अपने पुत्र भोजराज जो कि छोटी उम्र में ही शासन प्रभार संभालने लग गए थे उनको उपद्रवियों के दमन हेतु भेज दिया और कहा कि- इस क्षेत्र को अपने राज्य में मिला लिया जाए।भोजराज ने सेना तैयार की और पाटन पर आक्रमण कर दिया।इस पाटण विजय के बाद रायसल ने पुत्र भोजराज को शाबाशी दी।

इसी समय की एक खबर तरेपना काळ की आती है जिसमे भोजराज खण्डेला का शासन प्रभार देख रहे थे उसी समय यहाँ की जनता को रोजगार देने हेतु होद गाँव मे तालाब खुदवाया गया जिसे "भोजसागर" नाम दिया गया। यह अकाल विक्रमी1653 में पड़ा था यह तालाब आज भी होद गाँव विद्यमान है। इसका विस्तृत वर्णन पीछे के किस्से(किस्सा-7) में उपलब्ध है।
दिल्ली सल्तनत के उत्तराधिकार के  प्रश्न पर भी रायसल शेखावत न जहाँगीर का साथ दिया जो कि आमेर के राजा मान सिंह को कतई पसन्द नही था क्योंकि मान सिंह खुशरो को गद्दी दिलाना चाहते थे। इसमे रायसल के स्वामिभक्त सरदार रामदास कछवाह की अग्रणी भूमिका रही जो रायसल के पास एक तनका (दो पैसे भर चांदी मिलाकर जो तांबे का सिक्का तैयार किया जाता है तनका कहलाता है) दैनिक वेतन पर नोकर था, रायसल की सिफारिश पर रामदास को बादशाह ने शाही सेवा में रखा।
जब जहाँगीर गद्दी पर बैठा तो उसने रायसल शेखावत को दक्षिण के अभियान पर भेज दिया और बुरहानपुर जो आज के मध्यप्रदेश और राजस्थान की सीमा पर पड़ता है वहां का सूबेदार नियुक्त कर दिया गया।
यहाँ 1672 विक्रमी में रायसल की स्वभाविक मृत्यु से इहलीला समाप्त हुई जिसमें अलग-अलग इतिहासकारों के अलग-अलग मत मिलते है।

केशरी सिंह समर से उक्त कथन की पुष्टि होती है-

"सुन्यो मरण रायसल को, जहाँगीर अवनीस।
करे गिरदरदास को, कुंजर धर बकसीस।।"

रायसल शेखावत ने चार परगने अपने दम पर जीत लिए थे -खण्डेला, उदयपुर, कासली और रैवासा। तंवरो की बत्तीसी के नाम से प्रसिद्ध 32 गाँव में से 9 गाँव और डीडवाना के पास झाड़ोद पट्टी के 12 गाँव रायसल के स्वर्गवास तक रायसल शेखावत के कब्जे में और जुड़ गए थे।
रायसल शेखावत के  राज्य का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी खूब था जहां एक ओर उदयपुर में मालकेतु पर्वत, लोहागर्ल, किरोड़ी और सकराय माता तीर्थ थे वही रैवासा में हर्ष पर्वत शिव मंदिर और सिद्ध शक्ति पीठ  जीण माता स्थल थे।

कासली परगने के निचे 84 गाँव होने की वजह से यह "कासली की चौरासी" के नाम से प्रसिद्ध था। इसी भांति उदयपुर का परगना" पैंतालिसा" के नाम से प्रसिद्ध था क्योंकि 45 गाँव इसके नींचे थे।

राजा रायसल के इष्ट-
रायसल गोपीनाथ के उपासक थे,उन्होंने वृन्दावन में गोपीनाथ जी के मन्दिर का निर्माण करवाया। उक्त मन्दिर में भोग व पूजा निमित राजा रायसल ने अपने खण्डेला परगने के गाँव "सेवळी" की 13000 बीगा कृषि भूमि मन्दिर को अर्पण की थी। भूमि अर्पण के उक्त दस्तावेज खण्डेला बड़ा पाना की पट्टा बही में उल्लेखित है।
लोकमान्यता के अनुसार लोहागर्ल तीर्थ के पवित्र जलाशय सूरज कुंड के समीप गोपीनाथ मन्दिर भी रायसल शेखावत का बनाया हुआ है।

राजा रायसल ने चारण और कवियों को भी खूब दान दिया । चारण कवियों को सासण गाँव प्रदान किया।अलुनाथ कविया के वंशज किसना कविया को रायसल ने चेलासी गांव दिया और भगवंतदास ने चिड़ासरा गाँव दिया।

दियो चिडासरो भगवंतदास,आमेर भूप किय जस उजास।
दूसर चेलासी देसुदान, महिपाल रायसल कियो मान।।

इसी क्रम में गोपाल भांड को लोसल गाँव रायसल शेखावत ने दिया।
रायसल जी के कुल 12 पुत्र थे जिनमें 7 की वंशबेल बढ़ी। और राजा सबसे छोटे पुत्र गिरधरदास को राजा बनाया गया और बाकी भाइयों को जागिर दी गयी।
अगले अंक में हम रायसल शेखावत की अगली पीढ़ियों के इतिहास  और साथ ही साथ सीकर, उदयपुर, खेतड़ी का उत्थान पढेंगे।
#क्रमशः-

बुधवार, 3 नवंबर 2021

खण्डेला का इतिहास भाग-7

गुजरात का दूसरा अभियान और रायसल का कौशल






गतांक से आगे-
गुजरात विजय करके बादशाह ने अपने धाय भाई मिर्जा अजीज कोका जो आजम खां के नाम स्व प्रसिद्ध था उसको गुजरात का सूबेदार बना कर अहमदाबाद किले में बैठा दिया। बादशाह अपनी सेना के साथ फतेहपुर सीकरी लौट आया।छह महीने में ही दुबारा गुजरात में उपद्रव भड़क उठा।मिर्जा बन्धु जो बचकर भाग गए थे वापस विद्रोह का झंडा उठा लिया था।

इख़्तियारूमुल्क गुजराती और ईडर के नारायणदास ने अहमदाबाद किले को घेर लिया। अजीज कोका अंदर घिर गया।बादशाह को जब खबर मिली तो रात देखी न दिन ।अपने चुने हुए उमरावों के साथ ऊंट पर सवार होकर 45 दिन का सफर 9 दिन में कर डाला, रविवार को रवाना हुआ बादशाह मंगलवार तक अजमेर पहुँच गया और शुक्र की दोपहर तक जालोर तथा वहां घोड़े के व्यापारियों से घोड़े लेकर अपने साथियों में बांट दिए। अगले बुध को साबरमती के किनारे बादशाह पहुँच गया और सामने फिर से मोहम्मद हुसैन मिर्जा लड़ने को तैयार खड़ा था।
युद्ध की आवाज आने लगी और तलवार हवा में एक एक कर गर्दन काट रही थी। मोहम्मद हुसैन मिर्जा भी खूब लड़ा आखिर घायल होकर भागने लगा तो भगवंतदास कच्छवाह के इशारे पर पकड़ लिया गया और उसका सर काट कर फेंक दिया ।

पिछले सरणाल के युद्ध मे भोपत कछवाह शाहमदद की तलवार से मारा गया था इस बार उसे भी पकड़ लिया गया और रायसल शेखावत ने इसे पकड़ कर बादशाह को सौप दिया आखिर रायसल भी इसी की तलाश में था जिसने अपने कछवाह योद्धा को मौत की नींद सुला दी थी। बादशाह ने उसे युद्ध करने का मौका दिया और कुछ झटपट के बाद एक भाला उंसके आर -पार कर दिया।इस युद्ध मे शाही सेना का एक अप्रतिम योद्धा राघवदास कछवाह भी मारा गया।

रायसल शेखावत के पराक्रम को चारण कवि "खेत सिंह गाडण " ने लिखा है कि-

"रण मझ खाग बजतां रासे, घड़ा कंवारी बरीबा घाई।
सुजड़े बीज सिलाव श्र्वन्ति, मोहम्मद मीर तणा दल माईं।।
साथी छोड़ गयो सूजा सुत, तिसियो लोह तरनि रिणताल।
दामणी चमकी झमकिते दुजड़े, बणियो गुजर घड़ा विचाळ।।
कूरम गो परिगह मेल्ही कल्हिवा,घड़ा कहर घुमन्ती घाण।
ब्रह्मांड उरांखींवती बिजळ, अहमदाबाद तणे आराण।।

अर्थात-भीषण युद्ध मे संघर्षरत शाही सेना में सबसे आगे बढ़ कर रायसल बिजली से चमकती तलवारों की झड़ी के मध्य मिर्जा की सेना से भिड़ गया। राव सूजा का पुत्र रायसल अहमदाबाद के रणांगण में गुजरात की सेना रूपी कंवारी का पाणिग्रहण करने की त्वरा में अपने युद्धरत साथियो (बारातियों)को भी पीछे छोड़कर उमंग से अकेला आगे बढ़ता चला गया।
अगले अंक में शाही तख्त के उत्तराधिकार और उस समय की घटनाओ का जिक्र किया  जाएगा।
#क्रमशः-

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