शनिवार, 20 नवंबर 2021

खण्डेला का इतिहास भाग-8

राजा रायसल और उनके ठिकाने



गतांक से आगे-
इसी समय तंवरावाटी में उपद्रव हुआ तो खुद रायसल शेखावत ने अपने पुत्र भोजराज जो कि छोटी उम्र में ही शासन प्रभार संभालने लग गए थे उनको उपद्रवियों के दमन हेतु भेज दिया और कहा कि- इस क्षेत्र को अपने राज्य में मिला लिया जाए।भोजराज ने सेना तैयार की और पाटन पर आक्रमण कर दिया।इस पाटण विजय के बाद रायसल ने पुत्र भोजराज को शाबाशी दी।

इसी समय की एक खबर तरेपना काळ की आती है जिसमे भोजराज खण्डेला का शासन प्रभार देख रहे थे उसी समय यहाँ की जनता को रोजगार देने हेतु होद गाँव मे तालाब खुदवाया गया जिसे "भोजसागर" नाम दिया गया। यह अकाल विक्रमी1653 में पड़ा था यह तालाब आज भी होद गाँव विद्यमान है। इसका विस्तृत वर्णन पीछे के किस्से(किस्सा-7) में उपलब्ध है।
दिल्ली सल्तनत के उत्तराधिकार के  प्रश्न पर भी रायसल शेखावत न जहाँगीर का साथ दिया जो कि आमेर के राजा मान सिंह को कतई पसन्द नही था क्योंकि मान सिंह खुशरो को गद्दी दिलाना चाहते थे। इसमे रायसल के स्वामिभक्त सरदार रामदास कछवाह की अग्रणी भूमिका रही जो रायसल के पास एक तनका (दो पैसे भर चांदी मिलाकर जो तांबे का सिक्का तैयार किया जाता है तनका कहलाता है) दैनिक वेतन पर नोकर था, रायसल की सिफारिश पर रामदास को बादशाह ने शाही सेवा में रखा।
जब जहाँगीर गद्दी पर बैठा तो उसने रायसल शेखावत को दक्षिण के अभियान पर भेज दिया और बुरहानपुर जो आज के मध्यप्रदेश और राजस्थान की सीमा पर पड़ता है वहां का सूबेदार नियुक्त कर दिया गया।
यहाँ 1672 विक्रमी में रायसल की स्वभाविक मृत्यु से इहलीला समाप्त हुई जिसमें अलग-अलग इतिहासकारों के अलग-अलग मत मिलते है।

केशरी सिंह समर से उक्त कथन की पुष्टि होती है-

"सुन्यो मरण रायसल को, जहाँगीर अवनीस।
करे गिरदरदास को, कुंजर धर बकसीस।।"

रायसल शेखावत ने चार परगने अपने दम पर जीत लिए थे -खण्डेला, उदयपुर, कासली और रैवासा। तंवरो की बत्तीसी के नाम से प्रसिद्ध 32 गाँव में से 9 गाँव और डीडवाना के पास झाड़ोद पट्टी के 12 गाँव रायसल के स्वर्गवास तक रायसल शेखावत के कब्जे में और जुड़ गए थे।
रायसल शेखावत के  राज्य का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी खूब था जहां एक ओर उदयपुर में मालकेतु पर्वत, लोहागर्ल, किरोड़ी और सकराय माता तीर्थ थे वही रैवासा में हर्ष पर्वत शिव मंदिर और सिद्ध शक्ति पीठ  जीण माता स्थल थे।

कासली परगने के निचे 84 गाँव होने की वजह से यह "कासली की चौरासी" के नाम से प्रसिद्ध था। इसी भांति उदयपुर का परगना" पैंतालिसा" के नाम से प्रसिद्ध था क्योंकि 45 गाँव इसके नींचे थे।

राजा रायसल के इष्ट-
रायसल गोपीनाथ के उपासक थे,उन्होंने वृन्दावन में गोपीनाथ जी के मन्दिर का निर्माण करवाया। उक्त मन्दिर में भोग व पूजा निमित राजा रायसल ने अपने खण्डेला परगने के गाँव "सेवळी" की 13000 बीगा कृषि भूमि मन्दिर को अर्पण की थी। भूमि अर्पण के उक्त दस्तावेज खण्डेला बड़ा पाना की पट्टा बही में उल्लेखित है।
लोकमान्यता के अनुसार लोहागर्ल तीर्थ के पवित्र जलाशय सूरज कुंड के समीप गोपीनाथ मन्दिर भी रायसल शेखावत का बनाया हुआ है।

राजा रायसल ने चारण और कवियों को भी खूब दान दिया । चारण कवियों को सासण गाँव प्रदान किया।अलुनाथ कविया के वंशज किसना कविया को रायसल ने चेलासी गांव दिया और भगवंतदास ने चिड़ासरा गाँव दिया।

दियो चिडासरो भगवंतदास,आमेर भूप किय जस उजास।
दूसर चेलासी देसुदान, महिपाल रायसल कियो मान।।

इसी क्रम में गोपाल भांड को लोसल गाँव रायसल शेखावत ने दिया।
रायसल जी के कुल 12 पुत्र थे जिनमें 7 की वंशबेल बढ़ी। और राजा सबसे छोटे पुत्र गिरधरदास को राजा बनाया गया और बाकी भाइयों को जागिर दी गयी।
अगले अंक में हम रायसल शेखावत की अगली पीढ़ियों के इतिहास  और साथ ही साथ सीकर, उदयपुर, खेतड़ी का उत्थान पढेंगे।
#क्रमशः-

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