रविवार, 22 अक्तूबर 2023

खंडेला का इतिहास भाग -25

खंडेला की फतेहपुर युद्ध मे बागी भूमिका





गतांक से आगे- 
कल्याणपुराँ दादिया के ठाकुर और नरसिंह के भाइयो ने मराठों में मिलकर जयपुर को दबाने की कोशिश की लेकिन परिणाम नही निकला। थॉमस जो मराठी सेना का तोपची था उसने फतेहपुर पर अधिकार कर लिया।इस युद्ध के लिए रोड़ा राम ख्वास के नेतृव में आई जयपुर की सेना ने फतेहपुर से 8 मील दूर पड़ाव डाला।18 फरवरी 1798 में जयपुर ने थॉमस की सेना पर आक्रमण किया। थॉमस की सेना जरूर छोटी थी लेकिन उसका संचालन बड़ा ही उम्दा था जिससे जयपुर को पीछे धकेल दिया गया।

तब रोड़ाराम ने मध्य पार्श्व में 6000 योद्धाओ की टुकड़ी को आक्रमण करने का आदेश दिया। थॉमस ने फिर से छर्रों की बौछार करके जयपुरी सेना को पीछे धकेला और जयपुर की 24 पाउंड की दो तोपे छीन ली। तब चौमू के ठाकुर रणजीत सिंह नाथावत के नेतृत्व में जयपुर अश्व सेना ने भयंकर वेग से थॉमस पर धावा बोला।मराठो का रिसाला जो थॉमस की मदद कर रहा था वह जयपुर के इस धावे से भाग छूटा।थॉमस के पास केवल एक तोप रह गयी। उसने तोप को छर्रो से भर लिया व बचे हुए 150 सैनिको के साथ धैर्यपूर्वक डटा रहा।जब शत्रु 40 गज से कम दूरी पर आए तो तीन वार छर्रे अपनी तोप से चलाये और बन्दूक से गोलियों की वर्षा की, इससे शत्रु का वेग टूट गया।

चोमू के बहादुर को छर्रे लगे और पहाड़ सिंह खंगारोत मारे गए।उस दिन लगातार रक्त पात होता रहा।राजपूतो के 200 सैनिक काम आए और थॉमस के 300 मारे गए।परन्तु दौलत राव सिंधिया के आदेश से सन्धि हो गयी।थॉमस अपने सैनिकों को बचाते हुए हांसी चला गया।इस सेना में बाग सिंह जो खण्डेला राजा के भाई थे उन्हें सफलता नह मिली उल्टा जयपुर के कोप का भाजन बने। लेकिन बाघ सिंह और श्याम सिंह के 500 अश्वरोही सेना ने जयपुर की सेना को लूट लिया और खण्डेला -रैवासा पर पुनः अधिकार कर लिया।
इस समय बाघ सिंह काम से बाहर आया हुआ था तब छोटे पाने के राजा के भाई हणुत सिंह ने प्राचीर से गढ़ में आकर हमला करके गढ़ को अपने कब्जे में लिया। उस लड़ाई में बाघ सिंह का छोटा भाई लक्ष्मण सिंग काम आया। फिर जब बाघ सिंह आया तो हणुत सिंह को बाहर निकाल दिया और खण्डेला पर पुनः कब्जा कर लिया। फिर विक्रमी 1860 में सवाई प्रताप सिंह जयपुर के देहांत हो गया और 17 वर्ष की उम्र में जगत सिंह राजा बना।

जब जगत सिंह ने खण्डेला पर कर उगाई का कार्य कठिन और त्वरित किया तो सारे गिरधरदासोतो ने इक्कठा होकर आक्रमण किया और जगराम को लूट लिया जो जयपुर  का मंत्री था। जिस प्रकार जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह को राजा बनाने के लिए मारवाड़ के राठोड़ो में दुर्गादास और सोनांग चंपावत जी ने किया वही अब खण्डेला वाटी में बाघ सिंह और उसके साथी कर रहे थे। उन्हीने छापामार प्रणाली में युद्ध करके जयपुर को पूरे तरीके से तोड़ दिया।
इसी प्रकार एक मौका आया जब समस्त शेखावाटी की जरूरत जयपुर को पड़ी,उंसके पीछे भी बड़ा कारण है अगले हिस्से में बताएंगे।
#क्रमशः

शुक्रवार, 8 सितंबर 2023

कीचक वध

कीचक वध





राजा कमल नयन के ,अपना अज्ञातवास वो बिताते है,
छाले पड़ जाते काया म,अर भीमसेन वल्लभ बन जातेहै।
विपदा आती एक दिन जब, दरबार मे 
पहलवान अजितसिंह भीमसेन पर गुर्राते है।।

बात बिगड़ जाती जब दोनो  की,
दोनो कुश्ती पर अड जाते है।
कंक बने युधिष्ठिर जब वल्ल्भ को समझाते है,
लेकिन भीमसेन उसे बड़ी चुनौती जो बतलाते है।।

युद्ध होता है दोनो का जब 
सुनकर द्रोपदि आती है।
कहती है रानी सुलक्षणा को, कि 
जोश पहलवानो मे भरकर आती है।

देखा द्रोपदी ने एकटक,एक कोने मे डोलकर,
कहती है हे पहलवान! सुन ले अपने कान खोलकर।
जे हार गया तु इस जुद्ध मे, तो चूड़ी तोड़ गिरा दूंगी,
कर दूंगी सब न्योछावर,खुद की चिता बना ल्यूंगी।।

देकर धोबी पछाड़ पहलवान को,
भीमसेन भुजा फड़काते है।
और उसे परलोक का पहुंचाने का,
पक्का विधान, वो अब चाहते है।।

देख भीमसेन की दुविधा,
द्वारकधीश मंद-मंद मुस्काते है।
लेते है हाथ एक लकड़ी की कटिका,
करके दो टुकड़े, भिन्न- भिन्न दिशा फिकवाते है।

देख कन्हैया की चालाकी,
अब भीमसेन मुस्काते है।
और योद्धा के पग पर पग रखकर,
किचक मार गिराते है ।।

 थे योद्धा माता कुंती के बलशाली बेटे,
और पवन पुत्र के जो अंश कहलाते है।
जोड़ कवित महाभारत का ये अद्भुत,
कवि आंनद आपको हर्षित हो सुनाते है।

आनंद सिंह "अमन"





गुरुवार, 24 अगस्त 2023

एहसास

एहसास


फोटो- फाइल शिवाजी महाराज


आज नही  तो कल होगा,
गलती का एहसास मगर होगा।
लेकिन जब भी होगा,
या तो माफ़ी की भड़क उठेगी।।
या ये भी ना हो पायेगा।

खुद पर काबू होगा।
दिल मे एक आग उठेगी।
उठेगी एक ज्वाला जो,
जो जलती जाएगी तब तक,
उम्र के आखिरी पड़ाव तक।

लेकिन मानस  जिंदा रहेगा हर बार,
कचोटेगा उसी अंतर्मन को बार -बार,
क्यूकी  उसे हार नही है, स्वीकार,
फिर जब सब काबू से बहार हो जायेगा,
एक -एक मन हर बार छलता जायेगा,

बहुत बार उस पिछड़े को उठाने का मन होगा,
लेकिन अब उसके बस मे कुछ ना होगा,
होगा वो लाचार और बहुत पछताएगा।
चाहत तो बदलेगी उसकी लेकिन कुछ ना हो पायेगा

अरे ! वो तो जीवन मे कुछ न कुछ कर लेगा,
खुद को वह, ईश्वर को समर्पित कर देगा।
निकलेगा उसका भी उपाय जब,
उसकी मेहनत के कर्मो का फल आएगा।

पर क्या तुम्हारे कर्म तुम्हे बचा पाएंगे?
क्या खुद को माफ़ तुम कर पाएंगे?
आज ये लगता है तुमको,बात छोटी है,
मगर क्या इसके कर्मो का हिसाब लगा पाएंगे?

-आनंद-




मंगलवार, 8 अगस्त 2023

यार पुराने ला दो तुम

यार पुराने ला दो तुम..




वही  यार पुराने ला दो तुम,
मैं कुछ कह  लूंगा, कुछ सुन लूंगा।।
सुनकर गलत भी अनसुना मैं कर दूंगा ।
बस यार पुराने ला दो तुम।।

वजहें रही जो भी हर एक को माफी मांगूँगा, 
कर दूंगा  सब खर्चा मैं ,
और किस्से सुनूंगा कुछ उनके, कुछ मेरे सुनाऊंगा
बस यार पुराने ला दो तुम।।

नही रहा जाता बिन उनकी मीठी यादो के,
बातो के मतवालो और अमिट  मुस्कान वालों के।
एक चाई पे चर्चा होती है मैं चर्चा पे चाई बुला दूंगा 
बस यार पुराने ला दो तुम।

ला दो मेरे अल्हड़ सपने और इतराती हंसी को,
ला दो मेरे उन अरमानो और प्यारी खुशी को,
उन खेलो और खेलो मे नाराजी को
कुछ भी करो बस यार पुराने ला दो तुम

एक बार मुझे बचपन को दोहराना है
उनके साथ एक लम्हा और बिताना है
जीना है उस पल को वापस और हर बात बताना है
बस यार पुराने ला दो तुम।।

वापस तो कुछ आता नही समय वो
लेकिन खुद को तसल्ली मैं दे दूंगा 
उस लम्हें मे पूरी जिंदगी जी लूंगा
बस यार पुराने ला दो तुम

आनंद 🙏

शुक्रवार, 21 जुलाई 2023

गोल टेबल आलो गोधम

 गोळ टेबल आलो गोधम


                     चित्र- प्रतिकात्मक




गोल टेबल आलो गोधम , मेटो नी भरतार।
मानो बात थे म्हारा, साँवलिया सिरदार।।
दारु जेड़ा नशा इन दुनियाँ मे, कर राख्या थे हजार।
इज्जत पिसा और काया, सगळा गया बेकार।।

बाबुड़ी का ब्याव मे, मांडी थे जद गोल- गोल टेबल ।
लाग्यो सफेदपोश कपड़ो अर,खोली भांत भांत की बोतल,

पहलो प्यालो लेवता, वाह वाह सा थे करवायी।
ढोली न भी अपनी धुन,राग सब एक साथ मिलाई।

प्याला लेता लेता, एक घड़ी या भी आयी।
जद दूसर का बण्या जाम मे, बर्फ जार मिलाई।।

बर्फ बिचारी मिलती मिलती आन दुहाई फेरी।
खल खल भरता प्याळा गट गट गळा म गेरी।।

बढ़का  की बतलावता बन्ना, बढ़का की करी बढ़ाई।
रमता रमता मनवारी प्यालों,टेबल जाय गुड़ाई।।

हां सा ना सा करता हुक्म, अब भुण्डा भुण्डा बतालावे है
मान सम्मान को बेरो कोनी,आखा कपड़ा खोल घुमावे है

इनका अब मैं काई बतावा, बारात तमाशा देखे है।
इयान काई करो कवरसा, टाबरिया भी देखे है।।

आय कोई भला मानस,  बाबोसा न ले जाय जिमा दे है
अर जिम्या पाछे तक, घरी ले जाय सुवा दे है।।

अब कोई काम सरा सु, मोकलो निपट जावे है।
अर पाछे कोई जान जिमी, अर पाछी डेरे जावे है।।

मिनख तो हुला बे सगळा भी,
जो बिना दारु बरात जिमावे है।
मिलनी फिरनी सब नेच्छाई सु,
 सगळी रीत निभावे है।।

थांसु एक अर्ज करे आनंद, ई प्रथा न ओठी थे मोड़ो।
आछी आवबगत करो सगळा की, ई दारु न थे छोड़ो।।







रविवार, 14 मई 2023

खंडेला का इतिहास भाग -24

खंडेला राजाओं द्वारा कर अवहेलना




गतांक से आगे-

इस बार मराठो को कर देकर सामन्तों ने खण्डेला को छुड़ा लिया था लेकिन इसके बाद भी दुर्भाग्य ने खण्डेला को चैन की सांस नही लेने दी।इस समय नरसिंह दास और इंद्र सिंह के बेटे प्रताप सिंह खण्डेला के राजा थे। इस समय जयपुर में सवाई प्रताप सिंह का शासन था और उसने कर उगाने के लिए शेखावाटी की तरफ सेनाएं मोड़ दी थी। जयपुर में ख़ुसलिराम बोहरा को जेल में डालकर उसकी जगह दौलतराम हल्दिया को मंत्री बन दिया गया था। इसी दौलतराम ने अपने भाई बख्शीराम को फौजदार बनाकर खण्डेला में भेज दिया। लेकिन खण्डेला ने कभी भी आसानी से कर नही दिया था चाहे वे मुगल हो या मराठा या जयपुर शासन।


इस समय सीकर का शासक देवी सिंह का पुत्र लक्ष्मण सिंह था। जब जयपुर का कारवां खण्डेला पहुचा तो वहाँ नरसिंह दास कुछ कर देने की स्थिति में नही था।वह खण्डेला छोड़कर गोविंदगढ़ किले में चला गया। नन्दराम मंत्री जयपुर ने छोटे पाने के राजा प्रताप सिंह को प्रलोभन दिया कि अगर उसने बकाया कर दे दिया तो खण्डेला का पूरा राज्य उंसके नाम कर दिया जाएगा।उससे कुछ कर लेकर नन्दराम मंत्री जयपुर ने रैवासा कस्बे पर प्रताप सिंह का कब्जा करवा दिया। यही समाचार नरसिंह को भेज दिया गया कि अगर इसने बकाया कर नही दिया तो उसका बड़ा पाना खण्डेला का राज्य प्रताप सिंह को दे दिया जाएगा। इसके लिए समोद के रावल इंद्र सिंग को भेजा गया। इस समय समोद राजा इंद्र सिंह ने नरसिंह के प्रति  सहानुभूति  दिखाई जिसका हर्जाना समोद को भुगतना पड़ा और समोद की जागीर जब्त हो गयी।


इस समय नन्दराम को शेखावाटी से भागना पड़ा क्योंकि उसका भाई दौलतराम मंत्री कालख की गढ़ी युद्ध मे मारा गया था। और महाराजा जयपुर के पास नन्दराम के अनुचित कर उगाने की सूचना पर जयपुर राजा ने रोड़ाराम को भेजा ताकि नन्दराम को गिरफ्तार किया जा सके। इस कारण नन्दराम मेवात की ओर भाग गया। उपरोक्त कारणों से खण्डेला का कर जमा ही नही हुआ। अब जयपुर ने एक और कर्मचारी को कर हेतु खण्डेला भेजा लेकिन नन्दराम के अत्याचारो से पीड़ित जनता ने इसे भी मार-मार कर वापस जयपुर भेज दिया। उक्त कार्यवाही से नाराज होकर प्रताप सिंह जयपुर ने खण्डेला को खालसा करने और दोनों राजाओ को बन्दी बनाने आशाराम भंडारी को भेजा। उसने बिना युद्ध किये ही छल-बल से दोनों राजाओ को बन्दी बना लिया।500 अश्वरोही दल के बीच दोनो को जयपुर लालचंद काला के पास भेज दिया।मियां की चौकी में दोनों राजाओ को कैद किया गया और अंततः जयगढ़ में ले जाया गया। विक्रमी 1854 में खण्डेला को खालसा कर दिया गया और खण्डेला व रैवासा में जयपुर की सैन्य टुकड़ियां तैनात कर दी गयी। 


आशाराम भंडारी ने युक्ति से खण्डेला के जागीरदारों का कर सीधा जयपुर में जमा करने और उनकी जागिर की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेकर गया इससे यहाँ असन्तोष की भावना ही नही आई। लेकिन नरसिंह दास के भाई जो कल्याणपुराँ दादिया के ठाकुर थे, बागी बन गए।

और इसी समय मोके का फायदा उठाकर बागी भाइयो ने फतेहपुर के युद्ध में जयपुर के खिलाफ विद्रोह कर दिया।

आगे के भाग में फतेहपुर युद्ध का वर्णन किया जाएगा।

#क्रमशः

सोमवार, 8 मई 2023

खंडेला का इतिहास भाग -23

राजा नरसिंगदास खंडेला पर मराठा आक्रमण




गतांक से आगे-
अब खण्डेला की राजगद्दी पर नरसिंह विराजमान थे और बाकी भाइयों को अलग-अलग गाँवो की जागीर मिली।खण्डेला ठिकाने का पुनः मिलने के बाद नरसिंह 18 साल जीवित रहा,किंतु यह समय उंसके लिए सही नही रहा।दुर्भाग्य ने उसका साथ कभी नही छोड़ा।अल्पायु,अपरिपक्व, खजाना खाली, अच्छे कर्मचारियों का अभाव, और सैन्य बल की कमी हमेशा रही। उसी समय सीकर का शेखावत शासक अपने राज्य विस्तार में लगा था और एक एक करके खण्डेला के गाँवो को अपने कब्जे में कर रहा था। कासली, बलारां, मंगलूणा,कूदन, आदि ठिकाने राव तिर्मल जी वालो ने कब्जे कर लिए।लोहागर्ल के आस पास के गाँव पिपराली,खोह, गुंगारा आदि भी अपने कब्जे में ले लिए।
खोह गाँव की भीमलीं पर्वत पर एक सुदृढ़ दुर्ग बनाकर उसे "रघुनाथगढ़" नाम दिया गया और बाद में उंसके पास बसे गाँव खोह का नाम रघुनाथगढ़ ही पड़ गया जो सीकर की सबसे ऊंची चोटी होने का गौरव भी रखता है।यह रघुनाथ गढ़ आज खण्डेला-उदयपुर वाटी रोड पर स्थित है और गढ़ भी क्षत-विक्षत अरावली की पहाड़ी पर खड़ा है। इस प्रकार देवी सिंह ने 28 से अधिक गांव जो खण्डेला के थे अपने कब्जे में ले लिए।

नरसिंह दास के समय ही खण्डेला पर मराठों का आक्रमण हो गया।ग्वालियर का मराठा शासक माधवराव सिंदिया जो शाह आलम द्वितीय का रीजेंट था,विक्रमी1844 में लड़े गए "तुंगा के युद्ध" में जयपुर-जोधपुर की सयुंक्त सेनाओं से करारी मात खाकर, युद्ध से पलायन कर गया।तीन साल बाद सेना सुदृढ़ करके वापस जोधपुर जयपुर पर आक्रमण किया। उसकी प्रशिक्षित कवायदी सेना और तोपखाने के साथ उंसके सेनापति डिबायन ने तंवरावाटी के पाटण कस्बे  के पास पहाड़ियों से घिरे मैदान में जोधपुर की घुड़सवार सेना, जयपुर के दादू पन्थियों की सेना,और मिर्जा इस्माइल बेग की घुड़सावर सेना को अपने तोपखाने के प्रभाव से भागने पर बाध्य कर दिया। यह पाटन का युद्ध 20 जून 1790 में  हुआ था ।तत्पश्चात जनरल डिबायन मुख्य मराठा सेना के साथ अजमेर पर अधिकार करने उधर गया और बाकी दल शेखावतों से कर संग्रह हेतु शेखावाटी में प्रवेश कर गए।

पाटण के समीप बबाई दुर्ग को लूट लिया गया इसके बाद खण्डेला की तरफ बढ़े और होद गाँव मे मराठों ने डेरे डाल लिए जहां सेना और पशुओं के लिए पानी की उत्तम व्यवस्था थी जो पहले भोजराज द्वारा बनाया भोजसगर तलाब पानी से भरा था। वहां से एक पंडित को खण्डेला दुर्ग में भेजा गया और कहलवाया गया कि 20000 रुपए दण्ड स्वरूप अदा करो वरना कस्बा लूट लिया जाएगा। खण्डेला के दोनों राजाओ की तरफ से विश्वस्त भाइयो के दो व्यक्तियों को दण्ड के रुपयों की राशि नियत करने हेतु मराठो के शिविर भेजा गया उनके नाम दलेल सिंह और नवलसिंह था।बातचीत के बाद दोनों सरदारों में दण्ड की राशि प्रबन्ध हेतु वापस खण्डेला नगर में जाने को कहा और तक के लिए जामनी कर्मचारियों को वहां छोड़ने की बात कही। लेकिन मराठा अधिकारी ने जब तक पैसे नही आ जाये तब तक दोनों को जाने नही दिया। दलेल सिंह ने अपने सेवक से हुक्का लिया और पीने लगा। एक मराठा सैनिक उंसके हाथ से हुक्का छीन लिया और फेंक दिया।क्रोध से भरा दलेल सिंह अपनी तलवार म्यान से निकाली और सैनिक का सर काट दिया,इतने में एक मराठा सेना अधिकारी ने गोली मारकर दलेल सिंह को मौत के घाट उतार दिया। उनके साथ गए लोग वही मराठा विद्रोह में मारे गए। नरसिंह दास को छोटी आयु ध्यान रखकर कही भेज दिया गया। उस काल में अन्य पाने में इंद्र सिंह मौजूद था। वह बातचीत का परिणाम जानने हेतु मराठा शिविर की तरफ जा रहा था।जब नजदीक पहुँच देखा तो उसके आदमियों को मार दिया गया था। साथ के लोगो ने उसे वापस खण्डेला जाने की राय दी किंतु उंसके क्षत्रित्व ने इसे जाने नही दिया।

वह लड़ना निश्चित कर चुका था और शिविर की तरफ बढ गया और लड़ते-लड़ते बहुत से मराठा सैनिको को मौत की नींद सुला गया। इस आक्रमण के बाद खण्डेला नरसिंह और दूसरे पाने में इंदरसिंह के पुत्र प्रताप सिंह के पास बना रहा और मराठो को निश्चित कर देना ही सामन्तों ने उचित समझा और उनसे खण्डेला को मुक्त कराया।
#क्रमशः

शनिवार, 29 अप्रैल 2023

खंडेला का इतिहास भाग -22

राजा उदयसिंह और जयपुर से युद्ध




गतांक से आगे-
राजा उदय सिंह जब जाट विद्रोह में सेना के पृष्ठ भाग से वापस आ गए तो जयपुर राजा सवाई जय सिंह बहुत नाराज हुए और उन्होंने वाजिद खाँ के नेतृत्व में एक टुकड़ी खण्डेला पर आक्रमण हेतु भेज दी।स्वाभिमानी उदय सिंह ने एक माह तक जयपुर की टुकड़ी का सामना किया,अंत मे किले में अनाज और पानी की कमी आ गयी। फिर भी उन्होंने न आत्मसमर्पण किया और न ही जय सिंह की अधीनता स्वीकार की और किला छोड़कर अपने ससुराल बड़ू चले गए। 

उनके पुत्र कुंवर सवाई सिंह ने जयपुर की अधीनता स्वीकार कर ली,तब जय सिंह ने खण्डेला को अपने अधीन कर कुंवर सवाई सिंह को वहाँ का शासक बना दिया। कुछ समय बाद मौका देखकर उदय सिंह ने लाड़खानियो की सहायता से खण्डेला पर अधिकार कर लिया और अपने पुत्र को खण्डेला से बाहर निकाल दिया लेकिन उनका पुत्र सवाई सिंग अपने ही पिता का विद्रोही बन बैठा और जयपुर की सेना लेकर वापस खण्डेला दुर्ग पर आक्रमण कर दिया और अपने पिता को वहाँ से भगा दिया। उदयसिंह वापस अपने ससुराल गए और उनका विक्रमी 1791 में देहांत हो गया। बड़ू में उनकी स्मृति में चबूतरा बना है।

अब उदयसिंह का पुत्र सवाई सिंह राजा बन गया था लेकिन खण्डेला की राजनीति का पतन तो पिछली पीढ़ी से शुरू हो चुका था जब खण्डेला दो भागों में बंट गया था। आधे खण्डेला पर छोटे भाई और आधे पर बड़े भाई का राज था लेकिन इसी वजह से आये दिन आपस मे झगड़े होते रहते थे और जयपुर तो चाहता ही यही था।

सवाई सिंह खण्डेला का राजा तो बना लेकिन जयपुर के सवाई सिंह के अधीन होकर जिससे उसे 64000 रुपये वार्षिक कर भी देना पड़ा और कालान्तर में यह कर स्थायी हो चुका था जिससे जयपुर हर साल लेता था। कर देकर राजा बने तो फिर क्या राजा बने लेकिन गद्दी की होड़ मची हुई थी और खण्डेला का राजस्व दो भागों में बंट गया था आमद उतनी थी नही। दूसरी तरफ फतेह सिंह के पुत्र छोटा पाना के राजा बनकर खण्डेला में डटे हुए थे।धीरे-धीरे यह कर जयपुर द्वारा बढा चढ़ा कर लिया गया।विक्रमी 1784 तक खण्डेला 75000 रुपये वार्षिक देता था।
सवाई सिंह के बाद खण्डेला का राजा उनका पुत्र वृन्दावनदास बना जिसके समय कर 80000 रुपये हो चुका था और अधीनता में काम भी जयपुर के आदेश अनुसार करना पड़ता था। इसके समय छोटे पाना के राजा धीरजसिंह के पुत्र इंद्र सिंह थे उनमें भी बैर भाव बना रहा।

वृन्दावनदास ने ब्राह्मणो पर कर बढ़ा दिया जिसके विद्रोह हुए ।और ब्राह्मणों ने वृन्दावनदास की बहुत बदनामी की।और कहा जाता है कि उन्होंने अपने पाप मिटाने के लिए कई भूमि दान दिए। और अपना राज्य पुत्र गोविंद सिंह को दे दिया व खुद सन्यास धारण कर लिया।विक्रमी 1864 में जयपुर-जोधपुर की लड़ाई में काम आए।

गोविंद सिंह भी कुछ खास नही कर पाए लेकिन इनके समय मे मुगल सेनापति नजफ़ खाँ नारनोल से शेखावाटी प्रदेश में लूट मचाता हुआ पहुँच गया और थोई व श्रीमाधोपुर को लूट लिया और रींगस तक पहुँच गया। शेखावतों ने राव देवीसिंह के नेतृत्व में कस्बा खाटू श्याम के पास मुगलो से भीषण युद्ध लड़ा। इसमे खूड़ के ठाकुर बख्त सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए। ऐसे इतिहास प्रसिद्ध युद्ध मे खण्डेला के दोनों राजाओ के भाग न लेने  से पता चलता है कि वो आपसी गृह क्लेश से ही बाहर न निकले थे जबकि खण्डेला बडे पाने के राजा वृन्दावन दास ने फतेहपुर के युद्ध मे सेना भेजी थी।

राजा गोविंद सिंह खण्डेला,अपने ठिकाने के गाँवो की कृषि उपज निरीक्षण हेतु वह गाँव के दौरे पर था,यात्रा में एक दिन उंसके तम्बाखू के हुक्के का चिलमपोश जो सोने का बना था वह गायब हो गया।उंसके साथ के सभी सेवकों की बिस्तरबन्धी की जांच की गई तो वह किसी खेजडोलिया शेखावत के बिस्तर में मिला। फिर गोविंद सिंह ने उसे खरी खोटी सुनाई। फिर एक दिन शिश्यूँ के दुर्ग में सोते हुए गोविंद सिंह की हत्या उस युवक द्वारा कर दी गयी। इनके छह पुत्र थे जिसमें बड़े पुत्र नरसिंह को राजा बनाया गया।
#क्रमशः

गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

खंडेला का इतिहास भाग -21

राजा उदय सिंह और बाघोरा हत्याकांड




गतांक से आगे-
इसके बाद का खण्डेला राज्य आपसी फूट और भाईचारे की कमी से जूझता रहा और आपसी बैर भाव मे ही लगा रहा।
उदय सिंह एक चौधरी की मदद से खण्डेला पहुँचे और पीछे से राजा केसरी के वीरगति प्राप्त होने का संकेत मिला तो उनकी रानियां उनके साथ सती हो गयी और उदय सिंह खण्डेला के राजा बनाये गए। इन वक्त भी केसरीसिंह समर का लेखक खण्डेला राजदरबार में उपस्थित था।

इसके बाद विक्रमी 1763 में औरँगबाद में औरंगजेब की मृत्यु हो गयी। उधर कासली के राव दीप सिंह खण्डेला के मृत राजा केसरीसिंह के भाई फतेह सिंह के पुत्र धीरजसिंह को राजा बनाने और उदयसिंह से उसका 2/5 भाग वापस लेने की बात कही।जयपुर के सवाई जय सिंह द्वितीय की मदद से उदय सिंह के भतीजे धीरज सिंह को उंसके पिता का 2/5 भाग खण्डेला पुनः प्राप्त हो गया और 3/5भाग पर उदय सिंह राज कर रहे थे। यह सुलह तो हो गयी थी लेकिन आपसी लड़ाइयां फिर भी चलती रही।
बाजोर की लड़ाई भी इसी खण्डेला राजगद्दी के बाबत हुई थी जिसमे उदय सिंह की सेना हार गई थी और धीरज सिंह को पहले रानोली के कई गाँवो का राजा बना दिया गया था फिर जयसिंह जयपुर की मदद से सुलह हो गयी।
इधर मुगल दरबार मे औरंगजेब के बाद बहादुर शाह और उंसके बाद जहांदार शाह व इसके बाद फरुखसियर राजा बन गए थे।जिन्होंने उदय सिंह को दक्षिण न भेजकर यही पास की चौकी पर तैनात कर दिया था तथा 1000 जात और 700 सवार के मनसब को बढ़ाकर 1500 जात और 800 सवार कर दिया था जिससे उदय सिंह थोड़ा समृद्ध हुए।

मनसब प्राप्त होने के बाद उदय सिंह ने खण्डेला के बाहर एक दुर्ग का निर्माण किया जिसे कालांतर में उदयगढ़ या उदलगड कहा गया।यह निर्माण विक्रमी 1771 में किया गया। इसके दोनो कोनों पर दो विशाल बुर्ज बनी हुई है।इसके मध्य चौक में शिवालय बनाया गया और बीच मे बड़ा सा दरवाजा बना हैं। इस किले के अवशेष आज भी खण्डेला में विद्यमान है।

इस समय मुगल दरबार मे दो गुट बन गए थे एक बादशाह का और दूसरा सैय्यद बन्धुओ का।
उदयसिंह खण्डेला और अजित सिंह जोधपुर सैय्यद बन्धु के गुट में थे अतः उनका संकेत पाकर जाट विद्रोह में गयी सेना की पृष्ठ भाग से वापस उदय सिंह खण्डेला लौट आये जिससे सवाई जय सिंह खण्डेला से रुष्ट हो गए।

बाघोरा हत्याकांड
फतेहपुर के कायमखानी नवाब के साथ मिलकर सैयद बन्धुओ के इशारे पर उदयसिंह खण्डेला ने सवाई जयसिंह के समर्थक भोजराजोत के खिलाफ 1776 विक्रमी में षड़यँत्र रचा। नवाब ने उदयपुर के पास बाघोरा में पड़ाव डाला और उदयपुर के  शेखावत सामन्तों को बुलाया। वहां पहुँचने पर एक तम्बू में उनका स्वागत किया गया।और उसी तम्बू में बिछी दरियों के नीचे काफी बारूद बिछा दिया गया था। उस बारूद को आग लगा दी गयी और जो बच निकला उसे बाहर निकलते ही मौत के घाट उतार दिया गया। उक्त कांड में उदयपुर वाटी के 12 मुख्य सरदार मारे गए। शेखावत शार्दूल सिंह जगरामोत बच निकला और अपने भाइयों के खून का बदला लेने को आतुर था।
बाघोरा में जब यह सब हो रहा था उसी समय खण्डेला में केड के ठाकुर गोपालसिंह पर हमला हो रहा था जिसे उदयसिंह खण्डेला ने भोज में शामिल होने हेतु बुलाया था। उसे शराब में विष मिलाकर पिलाया गया और उस पर हमला किया गया।लेकिन उसके साथ गए वीर योद्धा उदोजी और भुदोजी जो उसके ख़्वासवाल भाई थे लड़ते हुए रथ में डालकर गोपाल सिंह को गुहाला लाये और उनका उपचार किया गया।
#क्रमशः

शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023

21 वी सदी और मैं

21 वीं सदी और मैं




जैसे एक तिमिर को हटाने के लिए सूरज को आना पड़ता है,
धरती की सुगबुगाहट मिटाने मेघो को आना पड़ता है।
आना पड़ता है जैसे मयूर को, बरसाती नाच दिखाने को,
उसी तरह इस अल्हड़ मन को भी,जिम्मेदारी का बोझ उठाना पड़ता है।


उठता हुँ जब पांच बजे तो खुद को फिट, मैं रखता हुँ,
निवर्त होकर दिनचर्या से, आजीविका के लिए जाता हुँ।
जब हो जाता है जुगाड़ इसका, तो थक हार कर आता हुँ,
आते ही खाकर दो रोटी ,बिछोने पे पसर जाता हुँ।


खो जाता हुँ पसरकर, आने वाले कल के संघर्ष मे,
बीत गया जो बात गयी वो,जैसा भी था उसके हर्ष मे ।
बस् यही सोचते -सोचते,आँख मेरी लग जाती है
कोयल देती आवाज उठो,फिर नई सुबह हो जाती है


जीवन की इस आपा- धापी मे, वक्त गुजरता जाता है
जीना हो जब खुद के लिए,तब यही प्रश्न उठ आता है
कैसे होगा इस 21 वी सदी मे जीवन यापन, 
जब हाथ ही  हाथ को निगलता जाता है।

                                            -आनंद


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