गोळ टेबल आलो गोधम
चित्र- प्रतिकात्मक
गोल टेबल आलो गोधम , मेटो नी भरतार।
मानो बात थे म्हारा, साँवलिया सिरदार।।
दारु जेड़ा नशा इन दुनियाँ मे, कर राख्या थे हजार।
इज्जत पिसा और काया, सगळा गया बेकार।।
बाबुड़ी का ब्याव मे, मांडी थे जद गोल- गोल टेबल ।
लाग्यो सफेदपोश कपड़ो अर,खोली भांत भांत की बोतल,
पहलो प्यालो लेवता, वाह वाह सा थे करवायी।
ढोली न भी अपनी धुन,राग सब एक साथ मिलाई।
प्याला लेता लेता, एक घड़ी या भी आयी।
जद दूसर का बण्या जाम मे, बर्फ जार मिलाई।।
बर्फ बिचारी मिलती मिलती आन दुहाई फेरी।
खल खल भरता प्याळा गट गट गळा म गेरी।।
बढ़का की बतलावता बन्ना, बढ़का की करी बढ़ाई।
रमता रमता मनवारी प्यालों,टेबल जाय गुड़ाई।।
हां सा ना सा करता हुक्म, अब भुण्डा भुण्डा बतालावे है
मान सम्मान को बेरो कोनी,आखा कपड़ा खोल घुमावे है
इनका अब मैं काई बतावा, बारात तमाशा देखे है।
इयान काई करो कवरसा, टाबरिया भी देखे है।।
आय कोई भला मानस, बाबोसा न ले जाय जिमा दे है
अर जिम्या पाछे तक, घरी ले जाय सुवा दे है।।
अब कोई काम सरा सु, मोकलो निपट जावे है।
अर पाछे कोई जान जिमी, अर पाछी डेरे जावे है।।
मिनख तो हुला बे सगळा भी,
जो बिना दारु बरात जिमावे है।
मिलनी फिरनी सब नेच्छाई सु,
सगळी रीत निभावे है।।
थांसु एक अर्ज करे आनंद, ई प्रथा न ओठी थे मोड़ो।
आछी आवबगत करो सगळा की, ई दारु न थे छोड़ो।।
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