गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

खण्डेला का इतिहास भाग-13

द्वारकादास शेखावत (दलथम्बन)का शौर्य




गतांक से आगे-
इसी समय का एक और किस्सा है जिसमे द्वारकादास को दक्षिण की चौकी पर तैनात किया जाता है जहाँ उनके साथ राव रतन हाड़ा को भी तैनाती दी जाती है।
इसके पहले (हरियाणा व अलवर के पास का क्षेत्र)के मेवात में खानजादा विद्रोह हुआ जिसमें पूरे पड़ोसी क्षेत्र में अव्यवस्था फैल गयी थी उसका दमन करने के लिए द्वारकादास अपनी सेना लेकर निकले और उनके विद्रोह का दमन किया लेकिन यह कार्य बड़ा दुष्कर था क्योंकि मेवात के विद्रोह दुर्गम पर्वतों में आक्रमण करके छिप जाते थे।फिर भी द्वारकादास ने उनके गढ़ी और खुफिया ठिकानों को ध्वस्त कर दिया था।
मेवात के खानजादा कोटला के यादव क्षत्रिय  वंशज थे जिन्हें बाद में इस्लाम कबूल करवाया गया था, इनके वंशज आज भी मेवात क्षेत्र में निवासरत है।यह कार्य फिरोजशाह तुगलक के शासनकाल में हुआ था। यह विद्रोह अगर नही दबाया जाता तो शायद आज नक्शा कुछ अलग होता।

नूरजहाँ के चाल बाजी के  कारण शहजादा खुर्रम को यह लगने लगा कि अगला राजा उसको नही बनाया जाएगा इसलिए वह विद्रोह करके दिल्ली से भाग दक्षिण की तरफ भाग आया, जबकि दक्षिण की सूबेदारी द्वारकादास शेखावत, राव रतन हाड़ा, माधो सिंह कछवाह, जैत सिंह राठौड़ आदि योद्धाओ के पास थी। खुर्रम ने अब्दुल्ला खा और शाहकुली खान को आक्रमण हेतु भेजा लेकिन सामने इतने सारे राजपूत योद्धा थे उंसके सिपहसालार से क्या ही हार मानते। बताया जाता है कि अब्दुल्ला तो एक तीर के बाद ही ऐसा गायब हुआ की नजर तक नही आया और शाहकुली खान ने बहादुरी से लड़ाई की लेकिन वह हार गया। शहजादा खुर्रम अपनी टुकड़ी के साथ पीछे था लेकिन वह आसानी से बन्दी बनाया जा सकता था लेकिन राव रतन हाड़ा चाहते थे कि यही अगला बादशाह बने इसलिए उसे भगा दिया गया क्योंकि नूरजहाँ जिसे राजा बनाना चाहती थी वह किसी सूरत से राजा बनने लायक नही था  और इसके लिए द्वारकादास और माधो सिंह को खुर्रम से बात करने भेजा गया था। ऐसा वर्णन वंश भास्कर में दिया गया है।

विक्रमी 1684 में जहाँगीर की मृत्यु हो गयी और उसका पुत्र खुर्रम शाहजहाँ के नाम से राजा बना जिसने दक्षिण में नियुक्त सभी सरदारों के मनसब में दुगनी वृद्धि कर दी। इसके बाद शाहजहाँ इन पांच सरदारों से सलाह मशविरा बिना कोई निर्णय नही लेता था। राजस्थान के महान इतिहासकार ओझा जी लिखते है कि द्वारकादास का 1500जात और 1000 सवार का मनसब था।

#खानजहां_का_विद्रोह
जब शाहजहाँ नया बादशाह बन गया तो खानजहां नाखुश था जिसे नूरजहाँ राजा बनाना चाहती थी। वह फिर शाहजहाँ की तरह विद्रोह बनकर दिल्ली से दक्षिण निकल गया क्योंकि उसको डर था कि उसका कत्ल करवा दिया जाएगा। इसलिए शाहजहाँ ने भी उंसके पीछे उसे मारने हेतु योद्धा भेजे लेकिन वह किसी को हाथ नही लगा और निजामशाही शासन में शरण ले ली।वह वहां से बालाघाट व बुन्देलखण्ड में सेंध मारता रहा।
जब द्वारकादास से सहायता ली गयी तो द्वारकादास अपनी टुकड़ी के साथ गाँव मे पहुँचे और छापामार युद्ध शुरू हुआ । थोड़ी देर बाद खानजहां  ने द्वारकादास को द्वंद युद्ध हेतु ललकारा कि शेरेमर्द है तू सुना है।
अगर वाकई ऐसा है तो बाहर निकल ।चूहों की तरह बिल में क्या घुस रखा है।द्वारकादास जी बाहर निकले और चुनोती स्वीकार की। जब आपसी भिड़ंत हुई तो द्वारकादास शेखावत ने अपने बरछे(सांग) के एक प्रहार से उंसके वक्षस्थल को विदीर्ण कर दिया लेकिन धराशाही होते हुए खान ने तलवार के प्रहार से राजा का शिरच्छेदन कर दिया और दोनों योद्धा एक साथ धरती पर गिरे। ऐसे बताया जाता है कि शीश कटने के बाद उनका धड़ भी लड़ता रहा था।इस लड़ाई में उनका भतीजा मान सिंह भी 34 योद्धाओ के साथ गाँव की रक्षा हेतु शहीद हो गया।
1.एक पुराना दोहा है जो "केसरी सिंह समर"  में लिखा है,यह बताता है-

"द्वार सेल घमोड़ियो, खानीजहाँ उर खण्ड।
पड़ते खान पीछाटियो, राजा सीस दुरण्ड।।"

2.प्रसिद्धअंग्रेज  इतिहासकार कर्नल टॉड ने लिखा है कि -फरिस्ता ने खानीजहाँ की जीवनी में खान का द्वारकादास के हाथ से और द्वारकादास का खान के हाथ से मारे जाने का विवरण ही लिखा था।

3. महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण ने "वंश भास्कर'"में लिखा-

"पृतना सह बुरानपुर, पत्तो पहुँ जसपीन।
कूर्म द्वारकादास कँह, कटकईस तँहक़ीन।।"

अर्थात सेना के बुरहान पुर पहुचने पर द्वराकादास को सेनापति बनाया और वह अल्प योद्धाओ के साथ भी भीषण युद्ध किया।
द्वारकादास को #दलथम्बन (सेना को रोकने वाला) की उपाधि शायद इसीलिए दी गयी थी। द्वारकादास भगवान नृसिंह के भक्त थे।

भूमिदान- इस युद्ध के 27 दिन पहले द्वारकादास ने धर्मपुरा दक्षिण में गंगादास मिश्र के पुत्र छितर मिश्र को पट्टा दिया जिसमें खण्डेला कस्बे की 101 बीगा भूमि प्रदान की।(खण्डेला छोटा पाना दस्तावेज)
#क्रमशः

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