सावन और तुम
शांत जल सी मधुर आवाज है तेरी
कल-कल करता मधुर संगीत,
दोनों ऐसे मिले है जैसे,
है जन्मों के मीत।
अच्छा लगता तो बहुत है साथ तुम्हारा,
पर होता है ऐसा कहाँ हर-बार,
सोचे जिसको ये मन बावरा,
लगता है जो प्रीत का त्योंहार।
पारदर्शी-सा,सीधा-सादा मन मेरा,
उतना ही दुर्लभ है ये प्यार,
कैसे जतन करूँ मैं अब,
लाखों जतन भी लगते है बेकार।
शीश झुका के सजदा करूँ,
करूँ मैं हर-दिन, हर-रात,
फिर भी क्यूँ नही प्रभू सुने,
ये मेरी करुण पुकार।
प्रेम-रंग तेरा चढ़ा है ऐसा,
लगे जैसे बूंदों की बौछार,
फिर ऊपर से ठहरा ये,
सावन का महीना और बारिश की फुहार।
अब तो आजा मेरे प्यारे माही,
मन-मोर पपीहा बोले ये हर बार,
क्यूं करे देरी अब एक पल भी,
नही होता मुझसे, ये बैरी इंतजार।
नही होता मुझसे, ये बैरी इंतजार।
आता है ये साल में केवल एक बार,
मिलन का है ये प्यारा-सा त्योंहार,
है ये सावन की मीठी-सी पुकार।
लेखन- आनन्द