रविवार, 15 सितंबर 2019

सावन और तुम

सावन और तुम


 शांत जल सी मधुर आवाज है तेरी
कल-कल करता मधुर संगीत,
दोनों ऐसे मिले है जैसे,
है जन्मों के मीत।

अच्छा लगता तो बहुत है साथ तुम्हारा,
पर होता है ऐसा कहाँ हर-बार,
सोचे जिसको ये मन बावरा,
लगता है जो प्रीत का त्योंहार।

पारदर्शी-सा,सीधा-सादा मन मेरा,
उतना ही दुर्लभ है ये प्यार,
कैसे जतन करूँ मैं अब,
लाखों जतन भी लगते है बेकार।

शीश झुका के सजदा करूँ,
करूँ मैं  हर-दिन, हर-रात,
फिर भी क्यूँ नही प्रभू सुने,
ये मेरी करुण पुकार।

प्रेम-रंग तेरा चढ़ा है ऐसा, 
लगे जैसे बूंदों की  बौछार,
फिर ऊपर से ठहरा ये,
सावन का महीना और बारिश की फुहार।

अब तो आजा मेरे प्यारे माही,
मन-मोर पपीहा बोले ये हर बार,
क्यूं करे देरी अब एक पल भी,
नही होता मुझसे, ये बैरी इंतजार।

आता है ये साल में केवल एक बार,
मिलन का है ये प्यारा-सा त्योंहार,
है ये सावन की मीठी-सी पुकार।

लेखन- आनन्द

बुधवार, 11 सितंबर 2019

रुठा हमसफर


रुठा हमसफर

Pic- गूगल साभार

यूँ न रूठा करो हमसे,
 हमे तो मनाना भी नही आता।
यूँ न उलझा करो,
हमे सुलझाना भी  नही आता।
एक तेरे प्यार की थपकी ,
से ही तो आया है ये गुरूर।
इस गुरूर को न तोड़ो,
 फिर वापस बनाना भी हमे नही आता।

प्यार करते है तुम्हें बेशुमार,
 हमे बताना नही आता।
जताते तो खूब है इस दुनियां में 
अपने प्यार को,
कम्बखत हमे तो ,
ये जताना भी नही आता।
रूठा न करो तुम हमसे,
हमे तो मनाना भी नही आता ।

बात करते है तुमसे 
ताकि हमे प्रेरणा मिल सके ,
आगे बढ़ते रहने की,
वरना हमे तो आपको इतनी रात को
 सताना भी नही आता।

बैठकर सोचते है कभी कभी तो,
कि कह दे सब 
दिल की बातें तुमसे,
लेकिन सामने आते ही आपके,
इन लफ्जों को आपसे टकराना ही नही आता।
इसीलिए कहते है हम तुमसे कि,
रूठा न करो तुम हमसे,
हमे तो मनाना भी नही आता।

न जाने क्यों गायब,
हो जाती है सारी बाते,
जब भी आपसे करना चाहते है गुफ्तगू
इन बातों का खेल भी तो देखो,
इन्हें भी आपसे रूबरू,
 होना भी तो नही आता।

हुआ है आजकल कुछ ऐसा
की हर वक्त जुबां पर,
 होता है नाम आपका,
भले हो कॉफी की गर्म भाप,
या हो भले ही किसी पुराने तरानों की धुन,
ये प्यार ही तो है जानाँ,
बस यूँ समझ लो
इस प्यार को तो इम्तेहान देना भी नही आता।
रुठा न करो तुम हमसे,
हमें तो मनाना भी नही आता

लेखन- आनन्द

अपील- सभी प्रेमी- प्रेमिकाओं से सादर निवेदन है कि हमेशा अपने साथी का सहयोग करें और एक प्यार-भरी जिन्दगी व्यतीत करें। तकरार हर किसी के बीच मे होती है, पर उसे वापस जोड़े और एक स्वस्थ जीवन का निर्वाह करें।

                                        









रविवार, 1 सितंबर 2019

बचपन का जमाना

बचपन का जमाना

Pic-facebook

याद है मुझे वो बचपन का जमाना
पूरे दिन खेलना और खिलाना,
न फिक्र थी कुछ करने की
बस सोचते थे सिर्फ खेल खिलौनों की

बारिश आते ही नहाने जाते थे,
गीली मिट्टी के घर जो बनाते थे,
क्या पता था एक दिन ये
हकीकत  बन जाएगी,
वही घर असलियत में अब
बनाने की बारी आएगी।

आज भी याद है
वो साथ मे सबके मेले जाना
और जिद्द करके वहाँ से लाया गया खिलौना
अब तो बस यही एक दुनियां थी
जिसमे मैं और मेरी मस्तियां थी,

सुबह उठते ही आंगन में
जो शोर-गुल जो करते थे।
आज खामोश हूँ, सोचता हूँ ,कहाँ गया मेरा
प्यारा सा बचपन,
जिसमे खूब मस्तियां करते थे।

अब तो थोड़े बड़े हुए क्या
स्कूल भी जाना पड़ता था,
समय की पाबंदी फिर भी नही,
लेकिन पढ़ना भी तो पड़ता था,

बेसब्री से रहता है अब तो इंतजार,
की कब आये  प्यारा-सा रविवार,
यह टेलीविज़न का जो था अनुपम त्यौहार,
सुबह होते ही नहा धोकर बैठे जाते थे,
 क्योंकि रंगोली और चित्रहार जो आते थे।

अब तो खुश थे हम सब,
क्योंकि जूनियर जी, जो आने वाला था,
उसके बाद तो शक्तिमान भी बड़ा निराला था,
क्योंकि खत्म होते ही इसके,
कुछ छोटी मगर मोटी बातें
आती थी,
जो रोजमर्रा की अच्छी
बाते सिखलाती थी,

आइसक्रीम की भी
अपनी ही एक कहानी थी
बजती थी दोपहर में जब भी बेल,
आवाज़ बड़ी जानी पहचानी थी,
सुनते ही घर से दौड़े आते थे
पचास पैसे भी जिद करके
लाते थे,
और वो बर्फ का गोला खाकर
भी खुश हो जाते थे,

याद है मुझे वो बचपन का जमाना,
जहाँ न कोई फूटबाल
 और न कोई  क्रिकेट का
था दीवाना,
रोज शाम को आइस-पाइस खेलते थे,
साथ ही पापा की डांट भी झेलते थे,

शाम होते ही खाना खाकर,
दादी के पास सोना,
और उनकी सुनाई कहानी
का कभी खत्म न होना,
छुट्टियां होते ही हम नानी के घर जाते थे,
सुना है अब तो बचपन मे,
बच्चे दादी के घर भी जाते है।

ये दुर्भाग्य ही तो है इस बचपन का,
जिसमे न कोई नानी और न कोई दादी है,
बचपन गया जिसमें न कोई आजादी है,
जिसमे सतोलिया और कंचे बिना खेल कहाँ पूरा है,
तभी तो आज का बचपन अभी अधूरा है।

अपील- बच्चों को अपने बालपन को अच्छे से जीने दे और एक बच्चे के सर्वांगीण विकास में भागीदार बनें और उन्हें अपना बचपन जीने दे, कलात्मक शैली का विकास करते हुए।


  लेखन- आनन्द








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