रविवार, 13 दिसंबर 2020

जिंदगी - एक अनहोना सफर

.                   Pic- कैमरा

गजब जुल्म ढाये जा रही है जिंदगी 
और खाये जा रहे है हम,
कितने खा लिए, कितने खाने बाकी है,
फिर भी नही होते ये कम।

गम की नैया पर सवार है ,
होते रहते हर पल ये सितम।
दिल करता है टूटकर रोने को,
पर आँखों मे अश्रु हो जाते है कम।

देखने को अच्छा लगता है ये नीला आशमाँ,
पर पीछे के अंधेरे को कोई न जानता।
पूछते है लोग सिर्फ कितना कमा लेते हो,
कैसे कमाता हूँ कोई ये नही जानता।

मुस्कुराहट ही अच्छी लगती है दुनियां को,
कोई इसके पीछे का रहस्य नही जानता।
सब मानते रिश्तों में मुझे अपना,
पर कोई दिल से मुझे अपना नही मानता।

ये जिंदगी है जनाब, राहें नही होती आसान
सिर्फ सोच कर ही रह जाता हूँ हैरान।
अब हर किसी की जी हुज़ूरी करनी पड़ती है,
हो जाये अगर गलती तो डाट भी झेलनी पड़ती है।

                     -आनन्द


गुरुवार, 19 नवंबर 2020

मन का परिंदा

मन का परिंदा

फ़ोटो- फेसबुक


क्यों नफरतों के दौर में जीता है,
क्यों बंदिशों  में बंधा रहता है।
खोल दे खुद के पंखों को, और 
देख आसमाँ में एक परिंदा भी रहता है।

माना कि नही हो सकती उसकी बराबरी,
मगर मन के परिंदे को आजाद करके तो देख।
हो न जाये चिंताओं के बादल दूर अब,
थोड़ा अपने मन के अभ्यास को करके तो देख।

मुश्किलें तो बहुत है इस अनजान सफर में,
मगर कोई हल सोच कर तो देख।
होता है इसका भी समाधान मन के किसी कोने में,
थोड़ा स्मृतियों पर जोर देकर तो देख।

हताशा भी होती है एक विकट समस्या,
जिसने न जाने कितनों के रास्तों को रोका है
बस थोड़ा उत्साहित होकर, सोच
    फिर सफलता भी आखिर एक हवा का झौका है।

                           

                                              -आनन्द

गुरुवार, 8 अक्टूबर 2020

सेना का एक जवान




                                      फ़ोटो-फेसबुक


राहों में बारूद बिछा, दिल मे एक इंसान,
कैसे समझाऊ इसे, सामने है जो शैतान।

लोगों को देने में लगा, एक नई सी शुरुआत,
करने में लगे फिर, बस सब मेरी ही बात।

आशिष दे या न दे, हूँ मैं भी इंसान,
करता क्या आखिर, रह गया सेना में एक जवान।।

जम्मू हो या हो रेतीला रेगिस्तान,
कोई पहुँचे या नही, पहुँचे वही जवान।

करने को खड़ा, दुश्मन से दो- दो हाथ,
भले न हो उसके अपने लोगों का साथ।

देश सेवा ही सर्वोपरि, सबसे ऊपर त्याग,
सलाम उसके जज्बे को, काबिल था उसका राग।

देने को कुछ नही परिवार को, सिर्फ है फख्र से सर ऊंचा,
दुश्मन को झुका दे, कर दे मस्तक उसका नीचा।

आखिर में कुछ हो न हो, पेंशन लेकर आता है,
आजीवन फिर उसी सहारे, स्वाभिमानी से जीता है।

टिप्पणी- वायु योद्धाओं को स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

बुधवार, 2 सितंबर 2020

मजदूर

              ( श्रमिक की व्यथा - सांझा संग्रह में प्रकाशित)     


                                

कैसा ये अभिशापित सा जीवन मिला,
यहां हर कोई अपने से बड़ा मिला।
लगे रहो दिन भर मेहनत को,
फिर भी कोई प्रशंसक न मिला।

भारत निर्माण को लगा हूँ,
होकर तरबतर पसीने से।
परवाह नही किसी को भी,
मेरे जीवन के अंधेरे से।

न कोई मुकम्मल पता ठिकाना है,
जीने का बस परिवार ही एक बहाना है।
सभ्य समाज मे है फिर भी कितने फोड़े,
चलाते रहते है लोग आत्मा पर हथोड़े।

कुछ तो बेबस और लाचार हूं,
परेशानी के आगे जो मजबूर हूं।
करने को तो कोशिश करता मैं भी हूँ,
पर कर न पाता मैं, जितना करना चाहता हूँ।

कुछ तो है इतने कठोर कि,
मेरी मेहनत भी उनको कम लगती है।
कर लूं चाहे लाख जतन मैं उनके लिए,
हर एक कीमत उनको गहरी लगती है।

कुछ मीठे सपने लेकर मैं, भी शहर में आया,
लेकिन देख मरती आत्मा को, यह शहर मुझे न भाया।
पर कुछ लाचारी और मजबुरी थी मेरी,
कई आंखे रोज शाम को इंतजार में थी मेरी।

लोगों के उज्जवल सपने को जीते-जीते,
जीवन मैने सारा गुजार दिया।
आखिर सहते-सहते सब कुछ,
मजबूरी और मजदूरी में जीवन सारा हार गया।

कोई न जाने व्यथा मेरी, दर- दर भटकता जाता हूँ,
फिर भी करके दृढ़ निश्चय,आगे बढ़ता जाता हूँ।
बिना सोचे कल की, मैं सिर्फ आज में जीता हूँ,
आखिर मजबूर हूँ मैं, इसलिए मजदूर कहलाता हूँ।

आनन्द

रविवार, 2 अगस्त 2020

एक मजबूत किसान

                  फ़ोटो- गूगल साभार


उठा मस्तक बादलों की तरफ, 
करता अर्जी एक किसान।
कुछ दो या न दो ,पर दे दो, 
बस बारिश रूपी वरदान।।

सूर्योदय में निकलता हूँ घर से,
लिये हाथ मे हल और बैलों की जोड़ी।
मेहनत में न है कोई कमी बस,
मौसम और कालाबाज़ारी ने कमर है तोड़ी।।

सोचो तो मैं सबके लिए अन्न उगाता हूँ,
उसी चक्र में जीता और मरता हूँ।
लोगों को भले न हो फिक्र मेरी,
लेकिन फिर भी मैं लाख कोशिशें करता हूँ।

धोती- अंगौछे में निकला पूरा जीवन,
न मुझे कोई पेंट- कमीज की आस है।
दो रोटी लाता मैं , दो कांदे संग,
झेवन होता यही हमेशा, एक केतली छाछ है।

चिंता सताती हर -पल, साहूकारी ब्याज की,
फसल खराब हो जाए भले ही गेहूं और प्याज़ की।
खरीददार कोई न मिलता,खाद्यान सड़ता जाता है,
आखिर कम कीमत में, सारा बेचना पड़ जाता है।

बच्चें पल -पल मन मसोसकर रह जाते है।
लेकिन फिर मुझसे कुछ न कह पाते है।।
जीवन को सुंदर बनाने की कोशिश में, 
जीवन सारा बीत गया।
मैं जीतूं या न जीतूं, भाग्य मेरा जीत गया।।

                  - आनन्द



सोमवार, 20 जुलाई 2020

ग्यारवीं का इश्क़




Pic- fb

ग्यारवीं के इश्क़ की क्या कहूँ,
 लाजवाब था वो भी जमाना,
इसके बादशाह थे हम लेकिन,
रानी का दिल था शायद अनजाना।

सुबह आते थे क्लासरूम में,
हसरत थी पास बैठने की,
पर वो मोटा भी क्या अजीब था,
दो पन्ने पढ़कर, पास उसके बैठ जाता था।

अजी, बैठ भी क्या जाता था,
हमे तो हिलने तक नही देता था,
रुतबा था क्योंकि कक्षा प्रधान जो था,
लेकिन हमसे भी वो बड़ा परेशान था,

पढ़ते हम भी थे केमिस्ट्री उसकी ही तरह,
बस हमारी में थोड़ा मीठा सोडा जो था,
वो नमक की तरह बना देता था क्लासरूम को,
प्यार की पिंगो को लवणों से बचा जो रखा था।

अजीबोगरीब हालत थी उस वक्त,
कोई भी नही बताता था इसका हल।
और बाकी तो सब ठीक था,लेकिन
मास्टर जी बस कहते थे हमें इंग्रेजी में डल।


ख्वाइश तो थी परोस दुं उसे आज,
लंचबॉक्स के साथ,सारी पिछली बातें।
पर  डर था कही कह न दे ये मास्टर जी को,
जो हमने फेंके थे उसकी ओर सत्ते पे सत्ते।

जवां उम्र थी, सपने भी बड़े हसीन थे,
क्या पता हकीकत भी कुछ और सकती थी,
डाले थे फूल तो हमने भी कॉपी में,
पर बैरन खोलेगी नही, हमे ये बात कहाँ जचती थी।

ये ग्यारवीं का इश्क़ था जनाब,
लिखे थे जी तोड़, जो शब्द उस पहले प्रेम-पत्र में,
बस वही दबे के दबे रह गए ,
और बारवीं तक आते- आते हम कही और,
और वो किसी और के हो गए।

आनन्द
इंजीनियर की कलम से



सोमवार, 6 जुलाई 2020

आरज़ू

 आरज़ू
Pic-fb

न जाने क्यों तुझसे इतना लगाव है,
लगता है अब तू ही मेरी मंजिल है
और तू ही बस आखिरी पड़ाव है,

सीखना था जो सीख लिया अब मैने,
बस अब दिल को न और कोई चाहत है,
मिली तुम एक तरफ़ तो अब मुझे,
बाकी रही न कोई और ख्वाईश है।

पहुँच ही गया हूँ मैं भटकता हुआ आखिर,
अब यही बस मेरा आखिरी मकां है।
बस अब और न भागना अंधेरो से,
अब तो बस तू ही आखिरी पड़ाव है।

लगा था जिस खोज में ,अब तलक,
पूरी जो तेरे मिलन से हुई है।
हुआ है जो ये करिश्मा तो लगता है
 बरसो की तपस्या जो सफल हुई हैं।

न जाने क्यों दिल को तुझसे इतना लगाव है,
देखे तो पहले भी थे हमने चश्मों-चिराग पर,
तेरा आना कुछ अजीब और निराला था,
लगता है जैसे तुम सुबह की चाय, 
और मैं चाय का गर्म प्याला था।
आनन्द
(इंजीनियर की कलम से)






रविवार, 7 जून 2020

कोरोना के कर्मवीर

देश मे है फैली एक महामारी, जिसका नाम है कोरोना।
इस संकट से पार है अगर पाना, तो हाथ लगातार धोना।

जरा ध्यान करो उन लोगों का भी,जो घर पर भी न रुक पाते है।
और पीकर चाय घर के  बाहर से वापस अस्पताल आ जाते है।।
पता है उनको कि खतरा है उनको भी संक्रमण का,
फिर भी वो लगे आपकी सेवा में,न एक पल और गवांते है।।

वक्त की कैसी विडंबना है ये,
सफाई वाले भी पूरा साथ निभाते है।
और कैसी समस्या है ये अब,
अपनो से भी न मिल पाते है।

शर्म करो अब कुछ तो हे मानव,
क्यों धरती के भगवान को सताते हो।
नही आने वाला अब मंदिर वाला,
क्यों मानव सेवा में बाधा पहुँचाते हो?

पुलिस भला क्यों तुमको पीटे,
बन्द करो ये औछी हरकत और डॉक्टर पे थूक के छीटें।
आखिर में यही भगवान काम अब आएगा,
आन पड़ी इस अटल विपदा से यही बचाएगा।

परमार्थ इसी में हम सबका अब, साथ इनका देना है।
आया संकट देश पर, इसको दूर भगाना है।
करो सेवा लोगो की तुम, अगर ये भी न कर पाते हो,
तो बैठे रहो घर मे कुछ दिन, क्यों इन योद्धाओं को सताते हो?

कोरोना के कर्मवीरों को मेरा करबद्ध नमस्कार है,
अंत मेरी सबसे यही गुहार है,
बन्द करो सब प्रपंच और दकियानूसी,
इसमें ही हम सबका उपकार है।
 -आनन्द






रविवार, 10 मई 2020

कोरोना -एक महामारी

भारतवर्ष से उज्जवल देश मे
आया एक विकट तूफान,
कर सके कोई कुछ भी,
सब चिकित्सक भी हैरान।

रहना था और सामना भी करना था,
लक्ष्य भी अटल,लोगों को बचाना था।
करो जतन करके जुगाड़ कुछ भी,
आखिर वतन को जो बचाना था।

रहता है धरती पर भी एक भगवान,
जिसकी लीला ऐसी निराली,
और प्रयास बड़ा अथक और अटल
खुद देख भगवान बजाए ताली।

सफाईकर्मी को भी अब तो गर्व था,
उनके उत्साह से लगता यह भी पर्व था।
गौरव ज्वाला में स्वयंसेवक दल, पुलिस का बडा सहायक था,
देख कोशिश भारत की, भारत बना विश्व मे महानायक था।

जनता से मेरी यही एक अंतिम गुहार है,
करो प्रयास ऐसा कि देश बचे, यही बड़ा उपकार है।
भागा है मानव हर बार, अर्थ कमाने को,
वक्त है अब केवल देश बचाने को।

-आनन्द

रविवार, 3 मई 2020

मैं हूँ मेहनतकश मजदूर


मैं हूँ मजदूर


सही कहा साब आपने,
मैं हूँ मेहनतकश मजदूर,
कहने को तो दिल का राजा,
पर करने को हर काम, हूँ मैं मजबूर।

धन-दौलत का लालच नही मुझे,
दो वक्त की रोटी को हूँ मोहताज।
देख कर न करियो अचरज,
सबको कहता मैं महाराज।

तपती दोपहरी में भी न रुकता हूँ,
दुनियां का हर काम मैं करता हूँ ।
भले न मिले मुझे पूरी मजदूरी,
फिर भी न रखता मैं किसी से दूरी।

रोज सवेरे निकलता मैं, सांझ की रोटी को,
कोई टोकता,कोई रोकता,आदत मेरी खोटी को।
पी लेता हूँ दो बीड़ी,भुलाने को पेट की प्यास
दुर्बल हूँ भले ही तन से,पर मन में रहती एक आस।

एक दिन तो आएगा अपना भी
मैं कमाल ये कर जाऊंगा।
जान लगा दांव पर खुद की 
बच्चों को सम्बल मैं बनाऊंगा।

सही कहा साब आपने,
हूँ मैं मेहनतकश मजदूर।
पाने को दो वक्त की रोटी को,
पलायन करता मैं दूर-दूर।

लेकिन इसके बाद भी मैं,ना चोरी-डकैती करता हूँ
मेहनत से मिले भले ही दो पैसे,ईमानदारी से जीता हूँ।
गर्व से कहता हूं मैं मजदूरी करता हूँ,
लेकिन फिर भी स्वाभिमान से जीता हूँ।

-आनन्द

विनम्र अपील- दोस्तों, पेट तो अपना हर कोई भरता है लेकिन आपसे अनुरोध है कि अगर आपके आस- पास कोई ऐसा परिवार रहता है तो उसका साथ दे और उसे महसूस न होने दे कि वो किसी गरीब तबके से है।
मानव हित जैसी परिस्थितियां अपने देश मे अभी चल रही है , ऐसे लोगो का ध्यान रखे उन्हें सपोर्ट करे।
जय हिंद, जय भारत।


बुधवार, 15 अप्रैल 2020

कोरोना के असली योद्धा



कोरोना के असली योद्धा


Pic- fb 

देश मे फैला है एक संकट जिसका नाम है कोरोना,
सत्ता की बहस को छोड़ो मेरे यारों।
इसका तो चिरकाल से ही चला आ रहा, यूं ही रोना-धोना।

ध्यान करो जरा उन फरिश्तों का भी,
जिनके खुद के भी कुछ सपने है।
बेपरवाह होकर लगे है जनसेवा में,
उनके भी तो कई अपने है।

कहती होगी वो माँ भी अपने बेटे से,
कुछ दिन छुट्टी लेले अपने पेशे से।
अवज्ञा करके भी, वो आपकी सेवा में आता है,
बचाने को तुम्हे वह, खुद इस बला से लड़ जाता है।

मजबूरी तो  देखो ,अपने बच्चों को एक
आलिंगन भी न दे पाते है।
कैसी विपदा आन पड़ी है जो,
अपनो से न मिल पाते है।

ये वही योद्धा है जो आपकी सेवा में ,
एक पल भी न और गवांते है।
अब तो सुधरो तुम हे मानुस!
सोचो, क्यों इनकी मेहनत को भी हम जाया करते है।

मांगा ही क्या है इन लोगो ने तुमसे!
खाली रहना ही तो है अपने घर मे।
संकट है कट जाएगा एक दिन यह भी,
क्यों रहते हो खुद भी इस डर में।

है तुम्हारा भी कुछ कर्तव्य इस घड़ी में,
क्यों इनकी सेवा का अनुचित लाभ उठाते हो।
बन्द करो सब प्रपंच और मिलना- जुलना कुछ दिन,
क्यों इनको भी तुम बाधा पहुँचाते हो?

कुछ ऐसे भी है जिनको नींद नसीब नही ,
दिन और रातों में।
चौराहे पर लगती ड्यूटी,इस इस भीषण गर्मी,
और बारिश की छाटों में।

उनको कोई लाभ नही आपकी पिटाई में,
लगे हुए है वो तो केवल आप सबकी भलाई में।
न खाने की सुध है, न रहने का कोई ठिकाना,
लक्ष्य है इनका इस संकट को पार लगाना।

कहता है आनंद तुमसे ये, सुनो जरा तुम ध्यान से,
साथ इन्ही का दो तुम, पूरे तन-मन-धन और मान से।
माहौल बना दो कुछ ऐसा की, मिसाल बनो इस संसार मे,
मानव की सेवा मानव करे, गौरव रहे अपना सिर्फ इस प्यार में।

-आनन्द

अपील- सभी लोगों से मेरा विनम्र निवेदन है कि - पुलिस और मेडिकल कर्मचारियों का दिल से साथ दे और उन्हें मनोबल प्रदान करे इस संकट की घड़ी में ताकि वो इससे पार पा सके।
और कुछ नियम खुद भी बना ले।
1 ज्यादा से ज्यादा हाथ धोये।
2 अल्कोहल वाले सेनेटाइजर से हाथ साफ करें।
3 कम से कम घर से बाहर निकले।
4 अपने साथ के सभी लोगो का ध्यान रखे।
5 हो सके जितनी पुलिस और चिकित्सा विभाग की मदद करे।

जय हिंद, जय भारत।





शनिवार, 4 अप्रैल 2020

जीवन- विपदा


जीवन-विपदा
Pic- fb


काँटो की पथरीली सी राह है ये जीवन
कहाँ आसान होता है इसे जीना,
है ये एक मझधार फंसी नैया,
बनना पड़ता है यहाँ हर एक को खैवैया।

माना कि यह दलदल लगता है सारा,
पर हर विपदा का होता है एक किनारा,
हे मानव, जानो तुम इसका मर्म को,
और करते रहो अनवरत अपने कर्म को

निज लक्ष्य को रख मस्तक में,
तुम आगे बढ़ते जाओ,
आने वाली एक-एक विपदा को,
 तुम हर बार किनारे करते जाओ।

कोहरे की धुंधली पट्टी सी है बस ये,
इसे आगे बढ़कर ही हटा सकते हो,
और दृढ़ किये अपने लक्ष्य को,
तुम पल में साध्य बना सकते हो।

सप्रेम विनती- सभी भाइयों और बहनों से मेरी मार्मिक विनती है कि देश अभी एक ऐसे ही दौर से गुजर रहा है अतः इसमें जननायक का साथ दे, स्वयं और अपने परिवार के बुजर्गों व बच्चों का ख्याल रखे। घर से बाहर केवल अत्यावश्यक कार्य हेतु ही जाए।
देश के नागरिकों के लिए यह भी एक देश सेवा ही होगी।
धन्यवाद।
-आनन्द

रविवार, 15 मार्च 2020

जीने दो मुझे भी

जीने दो मुझे भी



साभार- गूगल

जीने दो मुझे भी,
अस्तित्त्व है जो मेरा ,खत्म न करो,
कोख में खत्म करने से तो डरो।

कोशिश होगी मेरी कि,

मैं नाम तुम्हारा रोशन कर दूंगी,
जीने की आजादी दो मुझे,
नाम ऊँचा ,आपका कर दूंगी।

विश्वास करो, मैं भी जीना चाहती हूं,

जीवन पथ पर, आगे बढ़ना चाहती हूं,
मुझे मारकर क्यों
पाप के भागी बनते हो,
दो जीवन और ऊंची शिक्षा,
फिर देखो कितने भाग्यशाली बनते हो,

जांच में पाए जाने पर मुझे,

 क्यों तुम इतना  डर जाते हो,
विश्वाश करो मुझ पर,
क्यों इतना कांप जाते हो।

  मेरा उज्जवल भाग्य , 

मैं खुद लेके आउंगी,
साथ मे आपकी भी बंद,
किस्मत चमका जाऊंगी,

मानती हूं कुछ दुश्मन है मेरे,

पर उनका अब क्या मैं करूँ,
लेकिन कुछ अपवादी तत्वों,
से अब आप क्यों डरो?

मुश्किल जीवन में अगर,

आगे आना है,
तो इन सब खतरों से,
डर को दूर भगाना है।

आखिर में, मेरी यही गुहार है,
मुझे पैदा तो करो,
मुझे इस जीवन से बड़ा प्यार है,

ये दुनियां से ना डरो,

ये दुनियां तो बेकार है।
आप तो खुश किस्मत हो,
मिला आपको ये अभिन्न उपहार है।

ऊपर वाला भी उनको देता है ये प्रसाद,।

जिनका हौसला भी खुद होता है फ़ौलाद।।

लेखन- आनंद

विनम्र अपील- 
कृपया बेटियों की भ्रूण हत्या करके, पाप के भागीदार न बने, उनको भी जीवनदान दे, और राष्ट्रहित व मानवता का परिचय दे।



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