न जाने क्यों तुझसे इतना लगाव है,
लगता है अब तू ही मेरी मंजिल है
और तू ही बस आखिरी पड़ाव है,
सीखना था जो सीख लिया अब मैने,
बस अब दिल को न और कोई चाहत है,
मिली तुम एक तरफ़ तो अब मुझे,
बाकी रही न कोई और ख्वाईश है।
पहुँच ही गया हूँ मैं भटकता हुआ आखिर,
अब यही बस मेरा आखिरी मकां है।
बस अब और न भागना अंधेरो से,
अब तो बस तू ही आखिरी पड़ाव है।
लगा था जिस खोज में ,अब तलक,
पूरी जो तेरे मिलन से हुई है।
हुआ है जो ये करिश्मा तो लगता है
बरसो की तपस्या जो सफल हुई हैं।
बरसो की तपस्या जो सफल हुई हैं।
न जाने क्यों दिल को तुझसे इतना लगाव है,
देखे तो पहले भी थे हमने चश्मों-चिराग पर,
तेरा आना कुछ अजीब और निराला था,
लगता है जैसे तुम सुबह की चाय,
और मैं चाय का गर्म प्याला था।
आनन्द
(इंजीनियर की कलम से)
और मैं चाय का गर्म प्याला था।
आनन्द
(इंजीनियर की कलम से)
5 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 06 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह !बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति अनुज .
सुन्दर सृजन
Very nice bro
Sabdo ka imtaha le rahe ho
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