अपमान का बदला
कई बार छोटी छोटी बातों के कारण व स्वाभिमान को ठोस लगने के कारण छोटी बड़ी मार काट मच जाती थी।यह बात एक ही जाति और धर्म के लोगो मे भी देखने को मिलती थी।
बादशाह की सेना में अनेकों धर्मों और जातियों के लोग थे।वीरता का जमाना था अतः आन बान की रक्षा के लिये प्राणों की बलि कर देना साधारण बात थी। जातीय अभिमान की रक्षा सबसे बड़ा धर्म माना जाता था।
बादशाह की सेना में इंद्रभान जोधा नामक एक राठौड़ सरदार था। उसने शेखावाटी के सरदार माधो सिंह के वीर पुत्र सूरजि जी को मार डाला। तब से लाड़खनियो व राठौरों में बैर भाव चलने लगा। इन्द्रभान सूरजी की घोड़ी भी साथ ले गया और उसका नाम शेखावति रख लिया। यह सब बैर को और बढ़ाने वाली बातें थी। लोगों को ये बातें खलती थी मगर बादशाह का सरदार होने के कारण किसी का वश नही चलता था।
एक दिन बादशाही सेना का डेरा परबतसर नामक नागौर के स्थान पर रुका हुआ था। इसमे इंद्रभान भी शामिल था और दूजोद के कुँवर जसवंत सिंह भी अपने 50 आदमियों के साथ शिविर में थे।उस समय जसवंत सिंह की वीरता के बहुत किस्से प्रचलित थे।
एक दिन देवराज नामक चारण राजपूतों के डेरे से भेंट पूजा ग्रहण करते हुए इंद्रभान के डेरे पहुँच गया। उस समय जोधा ने चारण की किसी बात पर नाराज होकर उसके सामने ही अपने नौकरों से शेखावटी घोड़ी पर जीन कसने को कहा। चारण ने जोधा को बहुत समझाया कि ऐसी बाते न करे एक सेना में होकर, इससे बैर बढ़ता है। जोधा चारण की बात पर नाराज हुए और बोला कि -जावो, शेखावतों को मुझ चढ़ाई करने का बोल दो।
चारण डेरे- डेरे फिरता रहा पर किसी ने उसकी बात नही सुनी। इसी क्रम में वह जसवंत सिंह के डेरे गया और उसने अपने अपमान की बात कही। उसने यह भी कहा कि जोधा को जब तक दंड नही दिया जाएगा वह अन्न जल ग्रहण नही करेगा।
जसवंत सिंह उसी समय अपने वीरों ले साथ जोधा के डेरे गए और हमला किया। थोड़ी सी लड़ाई के बाद ही इंद्रभान मारा गया। घोड़ी लेकर जसवंत सिंग लाड़खानियों के डेरे गए। इस समय तक रात हो गयी थी।उनकी आवाज सुनकर सारे लाडखानी भयभीत हो गए। लेकिन जब द्वार खोला तो घोड़ी सहित जसवंत सिंह को देखा।
सारी बाते सुनकर वे बड़े प्रसन्न हुए। अब उनके बैर का बदला ले लिया गया था। जसवंत सिंह से भी बैर भाव था अब वह भी मिट गया था।
उधर बादशाह भी अपने आदमी की मौत से नाराज तो हुआ पर सारी परिस्थिति पर विचार कर चुप रह गया।