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गुरुवार, 24 अगस्त 2023

एहसास

एहसास


फोटो- फाइल शिवाजी महाराज


आज नही  तो कल होगा,
गलती का एहसास मगर होगा।
लेकिन जब भी होगा,
या तो माफ़ी की भड़क उठेगी।।
या ये भी ना हो पायेगा।

खुद पर काबू होगा।
दिल मे एक आग उठेगी।
उठेगी एक ज्वाला जो,
जो जलती जाएगी तब तक,
उम्र के आखिरी पड़ाव तक।

लेकिन मानस  जिंदा रहेगा हर बार,
कचोटेगा उसी अंतर्मन को बार -बार,
क्यूकी  उसे हार नही है, स्वीकार,
फिर जब सब काबू से बहार हो जायेगा,
एक -एक मन हर बार छलता जायेगा,

बहुत बार उस पिछड़े को उठाने का मन होगा,
लेकिन अब उसके बस मे कुछ ना होगा,
होगा वो लाचार और बहुत पछताएगा।
चाहत तो बदलेगी उसकी लेकिन कुछ ना हो पायेगा

अरे ! वो तो जीवन मे कुछ न कुछ कर लेगा,
खुद को वह, ईश्वर को समर्पित कर देगा।
निकलेगा उसका भी उपाय जब,
उसकी मेहनत के कर्मो का फल आएगा।

पर क्या तुम्हारे कर्म तुम्हे बचा पाएंगे?
क्या खुद को माफ़ तुम कर पाएंगे?
आज ये लगता है तुमको,बात छोटी है,
मगर क्या इसके कर्मो का हिसाब लगा पाएंगे?

-आनंद-




शुक्रवार, 21 जुलाई 2023

गोल टेबल आलो गोधम

 गोळ टेबल आलो गोधम


                     चित्र- प्रतिकात्मक




गोल टेबल आलो गोधम , मेटो नी भरतार।
मानो बात थे म्हारा, साँवलिया सिरदार।।
दारु जेड़ा नशा इन दुनियाँ मे, कर राख्या थे हजार।
इज्जत पिसा और काया, सगळा गया बेकार।।

बाबुड़ी का ब्याव मे, मांडी थे जद गोल- गोल टेबल ।
लाग्यो सफेदपोश कपड़ो अर,खोली भांत भांत की बोतल,

पहलो प्यालो लेवता, वाह वाह सा थे करवायी।
ढोली न भी अपनी धुन,राग सब एक साथ मिलाई।

प्याला लेता लेता, एक घड़ी या भी आयी।
जद दूसर का बण्या जाम मे, बर्फ जार मिलाई।।

बर्फ बिचारी मिलती मिलती आन दुहाई फेरी।
खल खल भरता प्याळा गट गट गळा म गेरी।।

बढ़का  की बतलावता बन्ना, बढ़का की करी बढ़ाई।
रमता रमता मनवारी प्यालों,टेबल जाय गुड़ाई।।

हां सा ना सा करता हुक्म, अब भुण्डा भुण्डा बतालावे है
मान सम्मान को बेरो कोनी,आखा कपड़ा खोल घुमावे है

इनका अब मैं काई बतावा, बारात तमाशा देखे है।
इयान काई करो कवरसा, टाबरिया भी देखे है।।

आय कोई भला मानस,  बाबोसा न ले जाय जिमा दे है
अर जिम्या पाछे तक, घरी ले जाय सुवा दे है।।

अब कोई काम सरा सु, मोकलो निपट जावे है।
अर पाछे कोई जान जिमी, अर पाछी डेरे जावे है।।

मिनख तो हुला बे सगळा भी,
जो बिना दारु बरात जिमावे है।
मिलनी फिरनी सब नेच्छाई सु,
 सगळी रीत निभावे है।।

थांसु एक अर्ज करे आनंद, ई प्रथा न ओठी थे मोड़ो।
आछी आवबगत करो सगळा की, ई दारु न थे छोड़ो।।







शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023

21 वी सदी और मैं

21 वीं सदी और मैं




जैसे एक तिमिर को हटाने के लिए सूरज को आना पड़ता है,
धरती की सुगबुगाहट मिटाने मेघो को आना पड़ता है।
आना पड़ता है जैसे मयूर को, बरसाती नाच दिखाने को,
उसी तरह इस अल्हड़ मन को भी,जिम्मेदारी का बोझ उठाना पड़ता है।


उठता हुँ जब पांच बजे तो खुद को फिट, मैं रखता हुँ,
निवर्त होकर दिनचर्या से, आजीविका के लिए जाता हुँ।
जब हो जाता है जुगाड़ इसका, तो थक हार कर आता हुँ,
आते ही खाकर दो रोटी ,बिछोने पे पसर जाता हुँ।


खो जाता हुँ पसरकर, आने वाले कल के संघर्ष मे,
बीत गया जो बात गयी वो,जैसा भी था उसके हर्ष मे ।
बस् यही सोचते -सोचते,आँख मेरी लग जाती है
कोयल देती आवाज उठो,फिर नई सुबह हो जाती है


जीवन की इस आपा- धापी मे, वक्त गुजरता जाता है
जीना हो जब खुद के लिए,तब यही प्रश्न उठ आता है
कैसे होगा इस 21 वी सदी मे जीवन यापन, 
जब हाथ ही  हाथ को निगलता जाता है।

                                            -आनंद


रविवार, 13 दिसंबर 2020

जिंदगी - एक अनहोना सफर

.                   Pic- कैमरा

गजब जुल्म ढाये जा रही है जिंदगी 
और खाये जा रहे है हम,
कितने खा लिए, कितने खाने बाकी है,
फिर भी नही होते ये कम।

गम की नैया पर सवार है ,
होते रहते हर पल ये सितम।
दिल करता है टूटकर रोने को,
पर आँखों मे अश्रु हो जाते है कम।

देखने को अच्छा लगता है ये नीला आशमाँ,
पर पीछे के अंधेरे को कोई न जानता।
पूछते है लोग सिर्फ कितना कमा लेते हो,
कैसे कमाता हूँ कोई ये नही जानता।

मुस्कुराहट ही अच्छी लगती है दुनियां को,
कोई इसके पीछे का रहस्य नही जानता।
सब मानते रिश्तों में मुझे अपना,
पर कोई दिल से मुझे अपना नही मानता।

ये जिंदगी है जनाब, राहें नही होती आसान
सिर्फ सोच कर ही रह जाता हूँ हैरान।
अब हर किसी की जी हुज़ूरी करनी पड़ती है,
हो जाये अगर गलती तो डाट भी झेलनी पड़ती है।

                     -आनन्द


गुरुवार, 19 नवंबर 2020

मन का परिंदा

मन का परिंदा

फ़ोटो- फेसबुक


क्यों नफरतों के दौर में जीता है,
क्यों बंदिशों  में बंधा रहता है।
खोल दे खुद के पंखों को, और 
देख आसमाँ में एक परिंदा भी रहता है।

माना कि नही हो सकती उसकी बराबरी,
मगर मन के परिंदे को आजाद करके तो देख।
हो न जाये चिंताओं के बादल दूर अब,
थोड़ा अपने मन के अभ्यास को करके तो देख।

मुश्किलें तो बहुत है इस अनजान सफर में,
मगर कोई हल सोच कर तो देख।
होता है इसका भी समाधान मन के किसी कोने में,
थोड़ा स्मृतियों पर जोर देकर तो देख।

हताशा भी होती है एक विकट समस्या,
जिसने न जाने कितनों के रास्तों को रोका है
बस थोड़ा उत्साहित होकर, सोच
    फिर सफलता भी आखिर एक हवा का झौका है।

                           

                                              -आनन्द

सोमवार, 20 जुलाई 2020

ग्यारवीं का इश्क़




Pic- fb

ग्यारवीं के इश्क़ की क्या कहूँ,
 लाजवाब था वो भी जमाना,
इसके बादशाह थे हम लेकिन,
रानी का दिल था शायद अनजाना।

सुबह आते थे क्लासरूम में,
हसरत थी पास बैठने की,
पर वो मोटा भी क्या अजीब था,
दो पन्ने पढ़कर, पास उसके बैठ जाता था।

अजी, बैठ भी क्या जाता था,
हमे तो हिलने तक नही देता था,
रुतबा था क्योंकि कक्षा प्रधान जो था,
लेकिन हमसे भी वो बड़ा परेशान था,

पढ़ते हम भी थे केमिस्ट्री उसकी ही तरह,
बस हमारी में थोड़ा मीठा सोडा जो था,
वो नमक की तरह बना देता था क्लासरूम को,
प्यार की पिंगो को लवणों से बचा जो रखा था।

अजीबोगरीब हालत थी उस वक्त,
कोई भी नही बताता था इसका हल।
और बाकी तो सब ठीक था,लेकिन
मास्टर जी बस कहते थे हमें इंग्रेजी में डल।


ख्वाइश तो थी परोस दुं उसे आज,
लंचबॉक्स के साथ,सारी पिछली बातें।
पर  डर था कही कह न दे ये मास्टर जी को,
जो हमने फेंके थे उसकी ओर सत्ते पे सत्ते।

जवां उम्र थी, सपने भी बड़े हसीन थे,
क्या पता हकीकत भी कुछ और सकती थी,
डाले थे फूल तो हमने भी कॉपी में,
पर बैरन खोलेगी नही, हमे ये बात कहाँ जचती थी।

ये ग्यारवीं का इश्क़ था जनाब,
लिखे थे जी तोड़, जो शब्द उस पहले प्रेम-पत्र में,
बस वही दबे के दबे रह गए ,
और बारवीं तक आते- आते हम कही और,
और वो किसी और के हो गए।

आनन्द
इंजीनियर की कलम से



गुरुवार, 15 अगस्त 2019

आजादी की कीमत

    स्वतन्त्रता दिवस
(प्रकाशित-झांकी हिंदुस्तान की)
(प्रखरगूँज,दिल्ली)
Pic-गूगल साभार

बड़ी मुश्किल से मिली है ये आजादी हमे,
आओ मिलकर जश्न मनाये सब हम,
खोया है जिस माँ ने अपने लाल को,
उस देश के दीवाने को याद करे हम।

लाखों जाने गयी है तब जाके मिली है,
बड़ी मेहनत से ये आजादी की शमा जली है,
एक भगत सिंह था आजादी का दीवाना,
बाकी टोली का भी रुख यही था मस्ताना।

खुदीराम की जवानी भी अभी,
 पूरे रूवाब में जो थी,
जिसने बिना सोचे ही दे दी जिन्दगी,
जो सोची न कभी ख्वाब में थी।

एक आजाद था जो था अपनी ही धुन का पक्का,
कहाँ रूकने वाला था वो देशभक्त था सच्चा,
बिस्मिल ने न सोचा था कभी हिन्दू है कोई है मुसलमां,
जो सुलग जाए अंग्रेजो पे वही था असली ज़मां।

बड़ी मेहनत से मिली है ये आजादी हमें,
आओ मिलकर जश्न मनाये सब हम,
कभी गांधी तो,कभी सुभाष  बाबू थे मोर्चे पे खड़े, 
दीवाने थे वो जो आखिर सांस तक थे लड़े।

देश की शान को लड़े थे, थे सब भाई-भाई,
याद है वो लाला भी जिसने लाठी से लड़ी थी लड़ाई,
मौत के एक आह्वान पर वो चले गए,
सारी जिन्दगी की आजादी हमे दे गए।

आओ सब मिलकर देते है उन्हें श्रद्धांजलि ,
जिनकी एक जान ने दी है हमे ये जिंदगी,
करते है याद हम आज उन वीरों को ,
पिता के प्यारे और माँ के अनमोल हीरों को।

जय हिंद, जय भारत , जय माँ भारती।।

- आनन्द



मंगलवार, 13 अगस्त 2019

भारत की सुषमा

भाव भिनि श्रद्धाजंलि 


सुषमा स्वराज (पूर्व-विदेश मंत्री)


कल रात भयपूर्ण खबर मिली,
आँखे मेरी गमगीन हुई,
राजनीति की सुदृढ़ पुत्री, 
गहरी निद्रा में लीन हुई।

लोकतंत्र के आधार सी कहानी थी,
जन सेवा को आतुर,
वो लक्ष्मीबाई सी दृढ़ और संभल,
तेजपूरित और महाज्ञानी थी।

संविधान की ज्ञाता औऱ 
एक महान उपासक थी,
कूटनीति में माहिर, और 
लोकतंत्र की आराध्या थी।

शुरुआत की उस दौर से,
जहाँ राजनीति अपराधों का गढ़ थी,
करती थी प्रयास रोज और
वो बड़ी साहसी और निश्चयी दृढ़ थी।

अब कौन इस पीढ़ी को सींचेगा,
और कौन ऊँच-नीच को मिटाएगा,
कौन करेगा जय घोष संसद में,
कौन अब भेदभाव मिटाएगा।

करता हूँ मै प्रार्थना प्रभू से,
उस आत्मा को शांति देना,
देना उसको फिर कोई अमिट पृष्ठभूमि,
और अपने श्री चरणों मे जगह देना।

टिप्पणी- मेरी यह रचना आदरणीया सुषमा जी को समर्पित है, जो एक महान राजनीतिज्ञ और प्रबल व्यक्तित्व की धनी थी। 
- आनन्द





मंगलवार, 6 अगस्त 2019

जम्मू- कश्मीर और 370

लोकतंत्र की शक्ति

Pic- गूगल साभार

लोकतंत्र का स्वाभिमानी,
भारत देश महान है,
छोड़ दी जीत में मिली जमीन भी,
वाकिफ इससे सारा जहान है।

फिर भी न माने दुश्मन,
नोच लिया जिस टुकड़े को,
अभिन्न अंग है ये जिसका, 
वो प्यारा-सा हिंदुस्तान है।

लेकिन कुछ सियासी पिल्लों ने ,
मचाया संसद में घमासान है,
और फिर से अलग कर दिया उसे
 मस्तक है जिसका, वो हिंदुस्तान है।

मेरे देश में यह धरती की जन्नत कहलाता था,
स्वर्ग भी इसके सामने फीका पड़ जाता था,
केसर की क्यारी और देवों की नगरी था,
भारत के हर मानव -दिल का यह जिगरी था।

लेकिन उन पिल्लों को क्या पता था
 एक दिन ऐसा मोदी-शाह का तूफान जो आएगा,
बना के रखा था जिन्होंने स्वर्ग को जहन्नुम,
उनका अलग देश और संविधान का,
अटूट सपना भी चोपट कर जाएगा ।

कहता था जो सीना है छपन इंच का,
उसकी अग्नि परीक्षा का दिन आएगा,
और 370 में लिपटा हुआ कश्मीर भी,
अब भारत का अभिन्न अंग हो जाएगा।

लहराओ तिरंगा खुले दिल से अब,
भारत सारा एक है,
देख रहा है सयुंक्त राष्ट्र संघ भी,
भारत के लोकतंत्र की शक्ति को,
भले ही इसमे राज्य अनेक है।

आजाद हुआ भारत ,
आज सही मायने में,
खिला है केसर का फूल
और महक दिलों के आईने में,

कहता है ये आनन्द का विवेक है,
कश्मीर से कन्याकुमारी तक,
अब भारत सारा एक है।।


जय भारत , जय माँ भारती, जय लोकतंत्र,

लेखन- आनन्द

सारांश- यह वास्तव में लोकतंत्र की असली जीत है, इसका जश्न अवश्य मनाये क्योंकि कश्मीर अब भारत का पूर्णतः अंग है, जो हमेशा भारत का था, और हमेशा भारत का ही मस्तक रहेगा।




शनिवार, 13 जुलाई 2019

प्रतिस्पर्धी युग और छात्र


 छात्र-जीवन की परीक्षा

pic-google


आओ सुनाता हूं तुम्हे हालात ए बेरोजगारी,
किस्सा है उनका जो छात्र करते है कम्पीटिशन की तैयारी,
हालातों ने इन्हें भी बहुत हिला के रखा है,
पर इसके हौसलों ने  पाँव अब भी जमा के रखा है,

ना कोई खाने का ठिकाना है, ना कहीं सोने का,
डर जो हर वक्त लगा रहता है रिजल्ट के आने का,
ऐसा नही है कि मेहनत में कोई कमी है,
पर फिर भी भय है सिलेक्शन के ना होने का

रोज जगते ही पहाड़ सा जो दिन लगता है,
शाम तक पढ़ते पढ़ते वो भी निकल जाता है,
पहुँचते ही लाइब्रेरी में किताबों का ढेर नजर आता है,
पढ़ने वाला वहाँ हर कोई अपना ही प्रतिद्वंदी नजर आता है,

जैसे तैसे करके तैयारी को पार लगाता है,
अब तो बस कम मार्क्स के आने का भय सताता है,
जब न हो सिलेक्शन किसी एक परीक्षा में,
तो ये पूरा जमाना ही दुश्मन नजर आता है,

(खुद के बारे में कहता है-)

साहस तो देखो मेरा, मैं उठ खड़ा हो गया हूं,
कल फिर से परीक्षा देने को तैयार जो हो गया हूं,
यूँ ही नही कहते छात्र जीवन को कठिन,
इसी से तो गिर के खड़ा होने का हूनर जो सीख गया हूं,

खा लेता हूं खाना अब मैं बिना किसी ना- नुकर के,
हर सब्जी अब तो अच्छी लगती है,
कहाँ गया मेरा रूठ जाना? जब मेरे पसन्द की
तरकारी घर मे न बनती थी,

माँ भी अब तो मुझे बहुत मिस करती होगी,
जब मेरे पसन्द का खाना बनाती होगी,
कोई क्यों न यकीन दिला देता उसको,
कि तेरा बेटा अब समझदार जो हो गया है,
वो हालातों से लड़ना भी तो सीख गया है।

मैं भी अडिग हूँ अपने पथ पर 
देखे किस्मत कब तक परखती है,
जब ठान चुका हूं मैं सफल होने की,
देखे कौनसी मुश्किल रोकती है,

इस जिन्दगी की परीक्षा भी बड़ी निराली है,
पहले परखती है और फिर बड़ा पाठ सिखलाती है,

                 - प्रतिस्पर्धी युग के युवाओं को समर्पित

                        लेखन-  आनन्द





सोमवार, 1 जुलाई 2019

सूरत अग्नि कांड-एक प्रतिक्रिया

आँखों के तारे

    {विशेष- ब्लॉग बुलेटिन सम्मान रत्न-2019 में नॉमिनेटेड}

                   Pic- सूरत कोचिंग सेन्टर भवन
                             Pic- google

रोज की तरह आज की सुबह भी बड़ी निराली थी,
अब तो सूरज ने भी करवट बदल डाली थी,
और हमेशा की तरह उनकी भी यही तैयारी थी,
कि अगले ही कुछ सालों में जिन्दगी बदलने की बारी थी।

दिलों में जोश और अथक जुनून उनमे भरा पड़ा था,
और अगले ही पल उनमें से हर कोई कोचिंग में खड़ा था,
उस अनभिज्ञ बाल मन को क्या पता था,
कि अगले ही पल तूफान भी उनके द्वार पर खड़ा था ।

लेकिन जैसे-तैसे क्लास की हो गयी तैयारी थी,
उन्हें क्या पता उनकी किस्मत यहाँ आके हारी थी,
वो तो बस धुन के पक्के लगे थे भविष्य बनाने मे,
उनका भी तो लक्ष्य था हर सीढ़ी पर आगे आने में।

जैसे ही मिली सूचना,उस अनहोनी के होने की,
मच गया था कोहराम,पूरे भवन और जीने में,
ना कोई फरिश्ता था आगे,अब उनको बचाने में,
लेकिन फिर जद्दोजहद थी,उनकी जान बचाने में।

कॉपी पेन और भविष्य,अब पीछे छूट चुके थे,
सब लोगों के पैर फूल गये औऱ पसीने छूट चुके थे,
अब तो बस एक ही ख्याल,दिल और दिमागों में था,
विश्वास अब  बन चुका था,जो खग औऱ विहगों में था।

यही सोचकर सबने ऊपर से छलांग लगा दी थी,
लेकिन प्रशासन की तैयारी में बड़ी खराबी थीं,
न कोई तन्त्र अब तैयार था नोजवानों को बचाने में,
अब तो बस खुद की कोशिश थी बच जाने में।

पूरी भीड़ में बस,वो ही एक माँ का लाल निराला था,
जो आठ जानें बचा के भी,न रूकने वाला था,
वो सिँह स्वरूप केतन ही, मानो बच्चों का रखवाला था,
रक्त रंजित शर्ट थीं उसकी, जैसे वही सबका चाहने वाला था।

बाकी खड़ी भीड़ की,आत्मा मानो मर चुकी थी,
उनको देख के तो मानो,धरती माँ भी अब रो चुकी थीं,
कुछ निहायती तो बस वीडियो बना रहे थे,
और एक-एक करके सारे बच्चे नीचे गिरे जा रहे थे।

फिर भी उनमें से किसी की मानवता ने ना धिक्कारा था,
गिरने वाला एक - एक बच्चा अब घायल और बिचारा था,
कुछ हो गए घायल और कुछ ने जान गँवाई थी,
ऐसे निर्भयी बच्चों पर तो भारत माँ भी गर्व से भर आयी थी।

लेकिन फिर भी न बच पाए थे वो लाल,
और प्रशासन भी ना कर पाया वहाँ कोई कमाल,
उज्ज्वल भविष्य के सपने संजोये वो अब चले गए,
कल को बेहतर करने की कोशिश में आज ही अस्त हो गए।

उन मात- पिता के दिल पर अब क्या गुजरी होगी,
उनकी ममता भी अब फुट- फूटकर रोई होगी,
क्या गारंटी है किसी और के साथ आगे न होगा ऐसा,
इसलिए प्रण करो कि सुधारे व्यवस्था के इस ढांचे को,
ताकि न हो आहत कोई आगे किसी के खोने को,

क्योंकि जो गए वो भी किसी की आँखों के तारे थे,
किसी को तो वो भी जान से ज्यादा कहीं प्यारे थे।

-टिप्पणी-

धन्यवाद ज्ञापित करना चाहूंगा श्री केतन जोरवाड़िया जी का जिन्होंने ने जान पर खेल कर कुल आठ जानें बचाई,और निवेदन करना चाहूंगा समस्त मानव जाति से कि ऐसा कहीं होते हुए देखे तो मानव सेवा में योगदान दें न कि खड़े- खड़े वीडियो बनाएं।

         -सभी स्वर्गीय बच्चों को भावभिनी श्रद्धाजंली।

                                               लेखन- आनन्द



शुक्रवार, 17 मई 2019

जल हूँ मैं

                             जल हूँ मैं


जल हूँ मैं
अथाह लोगों का बल हूँ मैं,
यूँ व्यर्थं बहाने से थोड़ा तो कतराओ,
नही मिलूंगा मैं कुछ बरसों में,
व्यर्थ करते वक्त थोड़ा तो शरमाओ।

जल हूँ मै,
मुझसे ही है चलता जीवन सबका,
पेड़ पौधे, वनस्पति और मानव तन का,
करते करते उपभोग मेरा,कोशिश करो बचाने की,
वरना रोक न सकेगा कोई, स्थिति आपदा के आने की,
वर्तमान भी मेरा है, और आने वाला कल भी मेरा होगा,
लेकिन तब तक थल में, मेरा ना कोई अवशेष बचेगा,

जल हूँ मैं,
आपकी सभ्यता का कल हूँ मै,
मुझे सोच समझकर बरतो,
वरना इतिहास मुझे ही दोष देगा,
और एक सभ्यता का मुझसे ही नाश होगा,
लांछन लगना तय है मुझपे,
पर ,हे मानव !
निर्भर है यह सब तुझपे,

जल हूँ मैं,
बचा सको तो बचा लो मुझे,
मुझसे ही चलता सब है,
नुकसान मुझे है सबसे ज्यादा इस शैतान से,
जो विद्यमान है हर उस अहितार्थ इंसान में,

जल हूँ मै,
यूँ तो सबको जीवन मैं देता हूँ,
पर कोई मेरे जीवन की भी तो सोचे,
और आने वाली पीढ़ियों के कल की भी सोचे,
चाहे लाख साधन जुटा लो तुम जीने के,
पर मेरे बिना तुम न रह पाओगे,
आज अगर मैं बचा तो कल,
हर पल मुझे अपने अस्तितव में पाओगे,

इसीलिए कहता हूँ जल हूँ मैं,
आपकी जरूरतों का कल हूँ मैं,

                                                -आनन्द -




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