यादें है साहब, यूँ ही नही मिटती
वैष्णों देवी की यात्रा वाली थकान कहाँ है
बिहारी जी का वो, किराये का मकान कहाँ है
जन्मदिन का वो पहला केक कहाँ है
और उसकी नई लिपिस्टिक का वो शेड कहाँ है
tuv की लोंग ड्राइव का वो स्वाद कहाँ है।
अजंता के बुद्ध और एलोरा के वो शिव कहाँ है।
यादें है साहब , ये कोई मजाक नही जो मिट जाए,
पहले प्यार का वो ,अब एहसास कहाँ है।
काली जुल्फों का घना अंधेरा अब कहाँ है ।
तेरे बनाये उस ,खाने का अब स्वाद कहाँ है ।
बनारस के लौंगलते की मिठास,अब कहाँ है।
ट्रेन मे निकले वो १२ घंटे का साथ, अब कहाँ है।
हांशु को डाटने वाला ,वो गुस्सा अब कहाँ है।
पैसे खत्म होने पर,वो माँगने का साहस कहाँ है।
ये यादे है साब, गीली स्याही नही,जो मिट जाए
भाग-दौड़ भरी जिंदगी मे भूल जाऊ,वो बात कहाँ है।
टिफिन मे डाली गयी बड़ी चपाती और साग कहाँ है।
तेरे साथ बिताये पल और सावन की बरसात कहाँ है।
ये यादें है साब, समंदर की रेत पर लिखा नाम नही,
जो लहरें आये और मीटा जाए।
- इंजीनियर की कलम से-