सोमवार, 26 जुलाई 2021

सुबह की स्कूल बस


                      pic - facbook

तेरे चेहरे का ये तिल, बड़ा प्यारा सा लगता था,
तेरा दिल भी बड़ा, न्यारा सा लगता था।
 करता हूँ अठखेलियां उलझी लटों से,
तो ये सपना भी आवारा सा लगता था।

कहने को तो कयामत थी तेरी ये अदाएं,
पर फिर भी न जाने क्यों झटका सा लगता था,
शायद डर यही था कि तुझे कहीं खो न दूँ,
बस इसी वजह से कुछ कह न पाता था।

चढ़ती थी जब तू बस में अगले स्टैंड पर,
धक- धक करता था दिल मेरा,
और बैठ जाये अगर तू किसी लड़के के साथ,
तो दिल बेचैन जरा हो जाता था मेरा।।

लेकिन जब भी तू मुड़कर देखती पीछे तो,
बस तुम्हें चूम लेने को जी करता था,
करती थी जब तू "हेलो" मुझे तो,
आसमान सारा मुझे मिल जाता था।

बनाती थी फाइल्स जब मेरी तो,
तुझसे ज्यादा अपना कोई न लगता था।
उन दिनों मेरी जिन्दगी का,
यही तो  एक हसीन फ़लसफा था।।

पिटते हुए देख मुझे,जब हंसी तुझे जो आयी थी,
टीचर ने तुमको भी, छड़ी जो लगाई थी,
मन किया जल्लाद कर दूं घोषित टीचर को,
मगर टीचर भी तो आखिर नई- नई आयी थी

बस वाली यादें आज भी जब आती है,
तुम्हारी शक्ल वही घूमती नजर आती है,
कहाँ हो तुम ?और कैसी हो ?,ये तो नही पता,
मगर जहाँ भी होगी, रोशन होगा समाँ सारा।

आज भी जब गाँव को जाता हूँ,
स्कूल बस को बड़ा मिस करता हूँ,
लगता है जैसे अभी चढ़ने वाली हो तुम ,
लेकिन फिर...फिर मैं ही हो जाता हूँ कही गुम।


अतीत में खोया एक लम्हा-आनन्द 










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