शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2021

शेखावाटी का इतिहास भाग -7

                शेखाजी का अंतिम युद्ध



                गौड़ बुलावे घाटवे, चढ़ आवो शेखा।
           लश्कर थारा मारना, देखण का अभिलेखा।।

इस प्रकार कछावा और गौड़ों के बीच ये रक्तरंजित संघर्ष पाँच वर्षों तक चलता रहा।ऐसा प्रसिद्ध है कि शेखाजी और गौड़ों के मध्य नो लड़ाईयां हुई।जिनमे हर बार गौड़ों को मुंह की खानी पड़ी।जातीय अपमान से क्षुब्ध गौड़ अंतिम बार घाटवा नामक स्थान पर इक्कठे हुए।उन्होंने सयुंक्त गौड़ शक्ति को  शेखाजी के साथ लड़ने हेतु तैयार किया, गौड़ों के पाटवी मारोठ के राव रिड़मल जी के नेतृत्व में युद्ध का आह्वान किया।

इस युद्ध मे भाग लेने गौड़वाटी के प्रत्येक गांव व घर से योद्धा पहुँचे।प्रथम मुठभेड़ के लिए घाटवा के पास खूटियां तालाब को चुना।खूंटियां तालाब घाटवा के पास तीन मील  की दूरी पे खारडे की भूमि थी।घाटवा में एकत्रित गौड़ अपने दमामी को अमरसर भेजकर शेखाजी को रण निमंत्रण दिया।

रण निमंत्रण पाकर भी चुप रहने वाला कायर होता है, शेखा ने सेना तैयार कर ली और चढ़ाई कर दी।शेखाजी ने एक भूल यह भी की, कि अपनी सीमाओं में फैली सेना को एकत्रित किया बिना ही ,जितनी सेना थी उसी से युद्ध लड़ने निकल पड़े।अपने सबसे छोटे पुत्र रायमल को सेना लेकर पीछे से आने को कहा।घाटवा से कुछ उत्तर की ओर गौड़ सेना के एक दल ने शेखाजी का रास्ता रोका और साधारण झड़प के बाद दल भाग खड़ा हुआ। शायद वे शेखाजी की सेना की टोह लेने आये थे।उन्हें लगा कि मामूली सेना के साथ आये शेखाजी अब क्या करेंगे।खूंटियां तालाब के पास पहुचकर गौड़ सरदारों  ने युद्ध आरम्भ कर दिया।उस दिन गौड़ और शेखावतो की सेना जमकर लड़ी आखिर छोटे -छोटे युद्ध बहुत हो चुके थे और दोनों तरफ से मारने मरने का संकल्प था।

मारोठ के राव रिड़मल जी ने शेखा पर तीरों की बारिश कर दी और रिड़मल जी को नायक देख शेखाजी ने भाले के एक  ही वार से रिड़मल जी के घोड़े को ऊपर पहुचा दिया और रिड़मल जी पैदल हो गए।शेखाजी की आंखों के सामने उनके बड़े पुत्र दुर्गा जी अपने पिता के सामने, कोलराज के पुत्र मूलराज के हाथों मारे गए। यह वही कोलराज का पुत्र था जिस कोलराज को पिछली लड़ाई में शेखाजी ने मौत के घाट उतार दिया था, मूलराज ने सम्भवतः उसी का बदला लिया था।

इस पर शेखाजी ने अत्यंत क्रोधित होकर रिड़मल से लड़ना छोड़ मूलराज की तरफ लपके और एक ही भाले को मूलराज के शरीर के आर-पार कर दिया। गौड़ योद्धाओ का भी साहस कम नही था आखिर वो भी सारी कसर इसी युद्ध से निकालने के लिए आये थे।ऐसा कहा जाता है कि गौड़ों की नियोजित योजना थी कि, शेखाजी की सेना को खारड़ा की लड़ाई में थका कर वे घाटवा गाँव मे जा घुसे और वहाँ मोर्चा बांध कर लड़े।गौड़ों की चाल सफल नही हुई क्योंकि शेखाजी के एक पुत्र पूरण जी सेना लेकर घाटवा पर अधिकार करने निकल गए थे। इस तरह पूरण जी घाटवा पहुँचे और थके हुए गौडो को पुरण जी सेना ने खूब पीटा और पूरे गाँव को आग लगा दी।

खूंटियां के युद्ध से भगकर घाटवा में मोर्चा लेने वाले गौड़ों ने घाटवा से उठता हुआ धुंआ देखा तो उनके हौसले परास्त हो गए और वहा से भगकर घाटवा के दक्षिण में पहाड़ की ढाल में जा घुसे। इधर खूंटियां के मैदान में गौड़ों को साफ करके शेखाजी घाटवा पहुँचे और अपने विजयी पुत्र पूरण जी से मिले।किन्तु पिता पुत्र का मिलन क्षणिक था ।पूरण जी घाटवा मे गौड़ों से लड़कर इतने घायल हो चुके थे कि कुछ ही देर बाद उनके प्राण पखेरू उड़ गए।शेखाजी खुद भी घावों से सने हुए थे ,इतिहासकार बताते है कि उनके शरीर पर सोलह घाव थे और खून रिस रहा था। उनके सैनिक भी घायल हो चुके थे जिनकी मरहम पट्टी करना भी जरूरी था लेकिन पहाड़ की तलहटी में रुक जाना भी निति सम्मत नही था। 

इन सब बातों को सोचकर शेखाजी ने अपनी सेना को जीण माता के ओरण की तरफ ले गए। उसी समय शेखाजी के सबसे छोटे पुत्र रायमल जी वहाँ अपनी सैन्य टुकड़ी के साथ पहुँचे । वहाँ कुछ आराम करके सेना सहित गौड़ों की टोह लेने रायमल जी निकले और अपने विजयी पिता शेखाजी से मिले। इस प्रकार एक और उत्साहित सेना को आया देखकर गौड़ों का साहस ही नही हुआ फिर से आक्रमण करने का।
शेखाजी ने वहीं अपने पुत्र दुर्गाजी और पूरण  जी समेत सभी वीरगति प्राप्त योद्धाओ का अंतिम संस्कार करवाया। राव शेखाजी का शरीर भी रलावता तक पहुचते पहुचते घावों से रिस्ते हुए खून से शिथिल हो गया। आज भी शेखाजी की छतरी वहां बनी हुई है। वहीं शेखाजी ने अपने अंत समय को नजदीक आया जान , अपने सामन्तों सरदारों के सामने,पुत्र रायमल को शासन सौप दिया  और सभी पठानों को रायमल के प्रति वफादार रहने की शपथ दिलाई। फिर एक बार सभी योद्धाओ ,सामन्तों सेनापति और सेना की तरफ देखकर शेखाजी ने अपनी पलकें सदा के लिए बन्द कर ली।
घाटवा का युद्ध वि. स.1545 वैशाख शुक्ल तृतीया को लड़ा गया।
#क्रमशः

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