मंगलवार, 26 अक्तूबर 2021

खण्डेला का इतिहास भाग-5

     रायसल की खण्डेला विजय और राजधानी




गतांक से आगे-
खण्डेला विजय के अनेक मतों में एक मत 
जोधपुर रियासत के फ़ौजचन्द भंडारी की ख्यात से पता चलता है और दूसरा मत केशरी सिंह समर महाकाव्य से चलता है पहले जोधपुर की इस प्रसिद्ध ख्यात में जो मत लिखा है वह देखते है-एक बार गुजरात का पठान व्यापारी बीजण दिल्ली जा रहा था।मार्ग में खण्डेला के निर्वाणो ने उसका माल सारा लूट लिया और उसके 50 आदमी मौत के घाट उतार दिए। पठान ने बादशाह के पास फरियाद की।बादशाह को भी निर्बानो का कोई तोड़ नजर नही आ रहा था।अकबर ने रायसल शेखावत को खण्डेला इजाफे में देकर उसे अपने अधिकार में लेने को कहा।
रायसल ने सेना इक्कठी करके खण्डेला पर आक्रमण कर दिया। युद्ध मे रायसल विजयी हुए।निर्वाण भागकर किरोड़ी लोहागर्ल की पहाड़ी में छुप गए जो आज के उदयपुर के आगे सीकर रॉड पर बाई तरफ गिरती है। पहाड़ो की ओट से कई दिनों तक घात लगाकर वे हमला करते रहे किंतु अपने मनोरथ में सफल न हो सके।तब वे आमेर शासन के पास गए और उनको नांगल भरड़ा नामक गाँव बसने को  दिया गया।

केशरी सिंह समर के अनुसार-खण्डेला के निर्बान बादशाही खजानो को लूट कर पहाड़ी में छिप जाते थे। एक बार उन्होंने बादशाह के खास चिराखान का सारा माल लूट लिया और उसके आदमियों को भी मार दिया व निडर होकर लाहौर तक के मार्गो पर लूट खसोट करने लगे।
उनकी उदण्डता का समाचार सुनकर बादशाह ने उन्हें दण्ड देने के लिए कई सिपहसालार भेजे जैसे रुस्तमख़ाँ, मीर मोहम्मद खान आदि लेकिन कोई भी सफल नही हो पाया।तब रायसल शेखावत ने यह बीड़ा उठाया।समय पाकर खण्डेला पर आक्रमण किया।वहां की निर्बान पीपा और जैता सज -धज कर मुकाबले पर आए।

जुद्ध करन पीपा जैत सूं।
जे जुरत एक अनेक सूं।।
दल धंसे पुर जहँ खण्डये।
चहुं और दुर्ग सूं मण्डये।।

इस प्रकार रायसल ने गढ़ घेर लिया और निर्वाण योद्धा युद्ध करते हुए मारे गए। इस प्रकार रायसल की विजय हुई। तत्पश्चात उदयपुर का परगना का भी जीत लिया गया।इससे पूर्व उदयपुर शाहकुली खान के कब्जे में था।निर्वाण शासको से अंतिम युद्ध "पचलंगी का युद्ध" था।
इस प्रकार भाई बंट की लाम्या जागिर के मालिक रायसल ने कई गांव अपने कौशल से जीत लिए थे जैसे खण्डेला, रैवासा, कासली, उदयपुर आदि।खण्डेलवाल देविदास अभी भी उनके मंत्री सलाहकार थे तथा मथुरादास बंगाली उनका मुंशी था। नारायणदास टकनेत फ़ौज बक्शी मुख्य सेनापति था, यह वही नारायणदास थे जो शेखाजी के पुत्र दुर्गा जी के प्रपौत्र थे जिन्होंने रायसल की सेना के लिए अनेक सफल युद्ध अभियान किये थे।
अमरसर परगने के बारहबस्ती क्षेत्र के गाँवो के पन्नी पठानों में अनेक पठान योद्धा सेना के अनेक पदों  पर थे।उनके कबीलो के रहने के लिए रायसल शेखावत ने उन्हें दायरा गाँव सौंप दिया था जिसमे आज भी पन्नी पठानों के वंशज रहते है।बाद में और भी कबीले पठानों के यहाँ आकर बस गए और आज के समय भी ये यही निवास करते है।चार परगनों के विजेता रायसल शेखावत  ने खण्डेला को अपनी राजधानी बनाया और वहीं अन्तः पुर में निवास करने लगे।

एक बार फिर शेखाजी के वंशज ने पूरे शेखावाटी पर अधिकार कर लिया और ताउम्र उसे सुचारू रूप से चलाया जितना राज्य प्रसार राव लूणकरण का नही हुआ उससे कई गुना ज्यादा रायसल ने अपने साहस और  पराक्रम से बना दिया, जिसमें मंत्री देविदास जैसे सूझ-बूझ वाले विद्वान हो उस राज्य को भला क्या समस्या हो सकती थी।
अगले भाग में रायसल शेखावत के अन्य युद्ध और उनके और अकबर के समय की कुछ घटनाओं का जिक्र किया जाएगा।
#क्रमशः-

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