सोमवार, 11 अक्तूबर 2021

शेखावाटी पर हुमायूं का आक्रमण,भाग-10

                  शेखावाटी का इतिहास भाग-10




गतांक से आगे-
रायमल जी के बाद उनके पुत्र सुजाजी अमरसर की गद्दी पर वि. स.1594 में बैठे।इसी समय काकड़बेग का आक्रमण शेखा गढ़ पर हुआ। रायमल जी की मौत का समाचार जैसे ही बादशाह हुमायूं के पास पहुँचा तो हुमायूं ने अलवर के सूबेदार काकड़बेग को शेखावाटी प्रदेश अपने कब्जे में करने का फरमान दिया।काकड़बेग आदेश पाकर अलवर से निकल पड़ा शेखावाटी जीतने।

यह समाचार जब सुजाजी को मिला तो उन्होंने अपने सभी भाई बन्धुओ का इक्कठा किया तथा मीणाओ को भी बुलाया और कहा कि मुकाबला अमरसर से दूर जाकर करेंगे वरना पूरा गांव तबाह हो जाएगा और भारी नुकसान होगा।
यह सोचकर शहर से डेढ़ कोस दूर चिन्तालाई पहाड़ के पास पहुँच गए।पहाड़ की ओट से युद्ध करना निश्चित हुआ।पहाड़ी की तलहटी में मीणों को घोड़े संभलाकर कुछ विशेष 2 व्यक्ति पहाड़ पर चढ़कर देखने लगे कि सेना कितनी है और कितने भाग में बांटा गया है? उन्होंने देखा कि फौजें दो भाग में आ रही है और एक भाग वर्तमान मनोहरपुर की तरफ से आ रहा है।

इसी दौरान मीणों ने सोचा कि शेखावत अपने को दुख देते है अपने घोड़ो को लेकर निकल जाओ और वे निकल गए। इतने में शाही फ़ौज आ धमकी और शेखावतों को बिना घोड़ों के युद्ध करना पड़ा। रायमल के अन्य पुत्र सहसमल जी समेत 400 योद्धा इस युद्ध मे काम आए। सुजाजी अन्य आदमियों के साथ मुश्किल से बचे। मीणा विद्रोही हो गए थे और शक्ति टूट गयी थी।
सुजाजी को दूसरी जगह शरण लेनी पड़ी और काकड़बेग का शेखावाटी परअधिकार हो गया।
सुजाजी ,जगमाल जी अलवर जिले में आश्रय लेकर रह रहे थे,इन्ही दिनों कोहरी की पहाड़ी जो आज के बानसूर के पास है पर भीखन खा डाकू अपने 750 डाकुओं के साथ रहता था और अजमेर से दिल्ली जाने वाली सेना को लूट लेता था। बादशाह ने हाजी खान के नेतृत्व में सेना भेजी लेकिन भीखन खा को पकड़ने में असफल रही। जब सुजाजी ने लाडा नामक गुजरी को बिलखते देखा तो पता चला कि डाकू उसकी युवा पुत्री को उठा ले गए। सुजाजी ने उससे कहा कि मैं पूरी कोशिश करूंगा तेरी बेटी को वापस लाने की।

एक दिन गुजरी के 18 पुत्रों और साथियों को लेकर सुजाजी ने खोहरी की पहाड़ी पर चढ़ाई कर दी और भीखन खा डाकू को छापामार युद्ध प्रणाली से मार डाला और उनके घरों को आग लगा दी जिसे देखकर अन्य लुटेरे भाग गए।जब यह बात हाजी खाँ को पता लगी तो हाजी खां ने यह बात बादशाह सलामत हुमायु तक पहुँचाई। फिर बादशाह ने सुजाजी को दिल्ली बुलाया और सुजाजी को वापस 42 गाँव दिए व जगमाल जी को 12 गाँव दिए और स्वतंत्र राजा बनाया। सुजाजी ने बसई गाँव बसाया जिसमे में शिखरबद्ध मन्दिर बनवाये और तालाब निर्माण किया। सुजाजी ने वहाँ पहले से काबिज चौहानो की कमजोरी का फायदा उठाकर सेना एकत्रित की जो चौहान शासक से परेशान थी और फिर अमरसर वापस काकड़बेग से लिया जिसकी सामान्य टुकड़ी शासन कर रही थी।। बसई में वि. स. 1606  में सुजाजी का देहांत हुआ । सुजाजी की छतरी आज भी बसई में बनी हुई है।
सुजाजी के बाद अमरसर की गद्दी पर आसीन हुए राव लूणकरण जी और रायसल जी व बाकी भाइयों को मिली जागिर के कुछ गाँव।
अगले भाग में लूणकरण का शासन काल आएगा फिर एक महान योद्धा जिसने केवल 12 गाँवो की जागीर को एक बड़े राज्य में बदला उस महान शासक का कालक्रम पढेंगे।
#क्रमशः

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