गुरुवार, 21 अक्तूबर 2021

खण्डेला का इतिहास भाग-3

                         खैराबाद का युद्ध



गतांक से आगे-

रैवासा-कासली का अस्तित्व-


ग्यारवीं शताब्दी विक्रमबद के लगभग हर्ष पर्वत के चारो तरफ का प्रदेश अनन्त गोचर कहलाता था,उक्त प्रदेश तब साम्भर के चौहान राजाओ के सीधे नियंत्रण में था।वहां उनके भाई बांधवो की जागीरे थी। यह हर्ष के शिलालेख जो वि. स.1030 का उत्कीर्ण माना जाता  है से पता चलता है।विक्रमी1100 के पश्चात यह क्षेत्र चंदेल शासको के नियंत्रण में आया।वे साम्भर के चौहान के सामन्त थे।उस समय रैवासा व कासली "चन्देल परगना" के नाम से विख्यात थे।


चन्देल बुन्देलखण्ड पर शासन करने वाले प्रतापी चन्देलों के वंशज थे।चौहान पृथ्वी राज तृतीय के समय वि स 1243 के तीन शिलालेख रैवासा में प्राप्त हुए।जोधपुर के राव चुंडा  और मेवाड़ के महाराणा कुम्भा के आक्रमण का जिक्र भी मिलता है।


सम्राट अकबर ने रायसल शेखावत की जीवन खतरे में डाल की गई युद्ध विजय और वीरता से प्रभावित हो कासली और रैवासा दिया गया किंतु वह बादशाह की स्वीकृति मात्र थी।उन परगनों को जीतने के लिए रायसल जी को बाहुबल का प्रयोग करना पड़ा था। बड़वे और रानीमूंगों कि बहियों से पता चलता है कि वि स 1618 में रायसल से रैवासा कासली जीत लिए थे।अलग-अलग युद्ध मे 1040 चन्देल योद्धा मारे गए थे और रायसल जी के विश्वसनीय सिपाही भी शहीद हो गए थे, ऐसा शिवलाल जी की बही झुंझुनू से पता चलता है। कर्नल जेम्स टॉड ने इस विजय का समय वि स1618 में बताया है।


खैराबाद का युद्ध-


अबुल फजल लिखता है कि खैराबाद के युद्ध मे, 24 मई 1565 (वि स.1622)को अकबर ने अलिकुली खा और बहादुर खान पर चढ़ाई कर दी।बादशाही सेना खैराबाद तक बढ़ गई और मोर्चे जमाये। खैराबाद सिवाना के दुर्ग का नाम पड़ा जो अलाउदीन खिलजी ने बदल दिया था।उंसके आस-पास के क्षेत्र को खैराबाद कहते थे।

यहां भी रायसल शेखावत हरावल के पश्च कोण में अडिग स्तम्भ की तरह खड़ा था।शत्रु पक्ष को अंदर घुसने का तो दूर नजदीक तक नही आने दिया।

रायसल ने एक सिपहसालार को भाले के एक प्रहार से घोड़े से गिरा दिया और अगले ही पल तलवार के एक झटके में सर अलग कर दिया। लेकिन बहादुर खान बड़ा वीर योद्धा था उसने अपनी सेना को बहादुरी से लड़ने का पाठ सीखा कर लाया था।

उधर शाही सेना के अग्र भाग में खड़े सेनापति ने अलिकुली खान को धराशायी कर दिया जिससे उसके पीछे की सेना भाग खड़ी हुई।वहाँ शाही सेना को विजय होने का रास्ता बन्द हो गया।

हालांकि इस युद्ध मे बहादुर खान की तरफ से जो आक्रमण हुआ था उसमें शाही सेना के कुछ सिपाही भी मैदान छोड़कर भाग गए थे। लेकिन स्थिति काबू में थी।

लेकिन बहादुर खान का आक्रमण शाही सेना को भारी पड़ गया जब उसकी तरफ वाले विरोधी योद्धा जो शाही सेना से लड़ रहे थे वो प्रहार सामना झेल नही पाए।

इस तरफ से जो आक्रमण हुआ उसमे शाही सेना को दुर्भाग्यवश पराजय देखनी पड़ी फिर भी राजा टोडरमल, अलतमिश और रायसल प्रमुख थे युद्ध के मैदान में पहाड़ की तरह खड़े थे

युद्ध का विवरण सुनकर अकबर ने युद्ध से भागने वाले सिपाहियों को अपमानित किया और उनकी ड्योढ़ी बन्द कर दी किंतु वीरतापूर्ण लड़ने वालों को पारितोषिक भी दिया।

#क्रमशः-

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