रविवार, 17 अक्तूबर 2021

खण्डेला का इतिहास भाग-2

               राजा रायसल का पीतल का कच्छा




गतांक से आगे-
रायसल जी को यह सब करने की जरूरत तो नही थी लेकिन बादशाह अकबर का वरदहस्त पाना उस समय इसलिए जरूरी था क्योंकि उनकी 12 गाँवो की जागीर का प्रसार भी उसी तरह हो सकता था और अपने राज्य की जनता की सुख-सुविधाओं को पूरा करना राजा रायसल का कर्तव्य था। और वह धन अपने राज्य प्रसार से ही मिल सकता था और अनेक युद्ध अभियानों में विजय से मिल सकता था।

राजा रायसल को जब 1250 का मनसब और दरबारी की उपाधि मिल चुकी थी लूणकरण को यह अच्छा नही लगा कि उसका छोटा भाई उससे ज्यादा प्रसिद्धि पा गया और उसे खुद पर भी तरस आने लगा कि काश !देविदास को न निकाला होता। देविदास की सम्मति के बिना अब रायसल एक कदम भी न आगे बढ़ाते थे।सब जानकर बादशाह ने राजा रायसल को जनानी ड्योढ़ी का प्रभार सौंप दिया जो वाकई कठिन काम था।

जनानी ड्योढ़ी का प्रभार ग्रहण करने के बाद मंत्री देविदास ने रायसल के लिए नियम बना दिया कि धोती के नीचे पीतल के कच्छा पहनकर सरकारी काम पर जाया करे। तदनुसार रायसल जी कच्छा पहनकर डेरे से बाहर निकलते थे।कच्छे का ताला बन्दकर उसकी चाबी मंत्री देविदास खुद रख लेते थे।एक दिन स्नान करते समय धोती के नींचे पीतल के कच्छा देखकर बादशाह ने कारण पूछा?
तब रायसल जी ने सरलता से उत्तर दिया,इस पर बादशाह ने कौशल से देविदास  से इसकी चाबी लेने दूत को भेजा।किंतु चतुर चूड़ामणि देविदास ने किसी तरह बहाना बनाकर चाबी नही दी। इस पर बादशाह प्रसन्न हुए। वास्तव में जनानी ड्योढ़ी के कठिन काम को देखते हुए ही देविदास ने कच्छे की व्यवस्था की थी।इस प्रकार बादशाह की कृपा रायसल पर बढ़ती ही गयी और उनके मनसब में वृद्धि कर दी गयी और 10 और गाँवो के साथ खण्डेला, रैवासा व कासली के परगने का पट्टा दिया गया।इस प्रकार रायसल का उन गाँवो पर भी अधिकार हो गया जो कभी चंदेल और निर्वाण शासको के थे।
अवसर पाकर लूणकरण अपने भाई रायसल और देविदास से गले मिले।अपने समय में रायसल जी वीरता के लिए प्रसिद्ध थे उन्होंने  बहुत सारे युद्ध अभियान भी किये। ऐसा बताया जाता कि उन्होंने कुल 52 लड़ाइयों में विजय प्राप्त की।
#क्रमशः_

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