रविवार, 24 अक्तूबर 2021

खण्डेला का इतिहास भाग-4

                           भटनेर का युद्ध




गतांक से आगे-
खैराबाद युद्ध के बाद रायसल का एक और युद्ध मे भाग लिया गया जिसे भटनेर का युद्ध कहा गया।
भटनेर बीकानेर भाग के श्रीगंगानगर जिले के हनुमानगढ़ कस्बे  का पुराना नाम है।भटनेर गढ़ 52 बीगा के फैलाव में मजबूत पकी हुई ईंटों से निर्मित है।मुगल काल मे हिसार के परगने के अन्तर्गत आता था।जनश्रुति अनुसार भाटी राजपूतो ने भटनेर गढ़ का निर्माण करवाया था और उनके नाम पर ही भटनेर कहलाया। फिर बीकानेर के शासक सूरत सिंह ने 1862 विक्रमी में जीतकर इसमे मंगलवार के दिन हनुमान जी के मंदिर का निर्माण करवाया और भटनेर का नाम हनुमान गढ़ कर दिया गया।

दिल्ली पर शासन विक्रमी1624 में सलीम शाह सूर कर रहा था, बीकानेर के शासक कल्याणमल के छोटे भाई ठाकुर सी ने अहमद चायल से भटनेर छीन लिया और 20 वर्ष तक उंसके कब्जे में रहा।एक बार अकबर का खजाना इसी भटनेर क्षेत्र में मछली गाँव मे लूट लिया गया,उसकी सूचना मिलते ही अकबर ने सेना को भेजा लेकिन कोई असर नही हुआ, उस वक्त फौजदार निजमुमुल्क था। कई दिनों के घेरे के बाद भी जब गढ़ नही जीता जा सका तो और सेनाएं भेजी गई जिसमे रायसल शेखावत की सैनिक टुकड़ी भी थी।तब ठाकुर सी ने अपने अन्तःपुर को बाहर भेज दिया और स्वयं 1000 मारका योद्धाओ के साथ गढ़ का द्वार खोलकर शाही सेना पर टूट पड़ा और लड़कर मारा गया।

रायसल जी के समय गोपाल भांड इस क्षेत्र का प्रसिद्ध कवि हो चुका था जिसके द्वारा रचित छंद से पता चलता है कि भटनेर आक्रमण के समय वह रायसल की सेना में मौजूद था।भटनेर विजय के बाद ही गोपाल को नोसल गाँव का उदकी पट्टा दिया गया।आज का लोसल कस्बा उस वक्त का नोसल कहलाता था।कर्नल टॉड के इतिहास में भी इसका नाम नोसल मिला है।
शिखर वंशोतप्ति में लिखा गया है कि-भटनेर विजय के बाद रायसल ने कई दिनों तक ब्राह्मणों को भूमिदान और बकसीस दी और लिखा कि- भटनेर से लाये गए दुर्ग द्वार के कपाट,खण्डेला दुर्ग के बाहरी द्वार (आज का -काला दरवाजा, बड़ा पाना गढ़,) पर चढ़ाये गए थे।
कर्नल टॉड के अनुसार खण्डेला और उदयपुर (उदयपुरवाटी) के परगने बादशाह द्वारा रायसल को इनायत कर दिए गए थे किंतु बिना युद्ध उन पर अधिकार करना मुश्किल था । वहां के निर्वाण शासक बहुत ही उदण्ड और लूट मार करने वाले लोग थे।
रायसल ने खण्डेला पर आक्रमण तो किया किंतु निर्बान बिना लड़े ही भाग खड़े हुए और पहाड़ो में छिप गए। फिर रायसल ने उन्हें उदयपुर तक खदेड़ दिया था लेकिन उनकी लुट-मार  की गतिविधियां फिर भी नही रुक रही थी।
फिर रायसल ने अपने पुत्र भोजराज को उदयपुर सौप दिया था जिसने निर्वाणो के विद्रोह को दबाया।
अंत मे निर्बान आमेर प्रसाशन में सहायता हेतु गए और उन्हें नांगल भरड़ा गाँव रहने को दिया गया।

शेखवाटी प्रकाश से यह भी पता चलता है कि जब रायसल ने निर्वाणो पर आक्रमण किया तो निर्बान शासक ने अपनी पुत्री का विवाह रायसल से किया।
खण्डेला पर अधिकार के बाद रायसल का प्रताप बढ़ता गया।
निर्वाण शासको से रायसल का युद्ध का वर्णन मिलता है वो आगे की कड़ी में आएगा।
#क्रमशः

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