रविवार, 10 अक्तूबर 2021

खानवा के युद्ध मे शेखावत सरदार,भाग9

             शेखावाटी का इतिहास भाग-9


#खानवा_का_युद्ध_1527

गतांक से आगे-
रायमल जी सबसे छोटे और बारवे पुत्र थे। राव शेखाजी के बाद अमरसर की गद्दी रायमल जी को दी गयी जिसमे सबसे बड़ा बलिदान दुर्गा जी का था।रायमल जी राजा बनते ही घोषणा कर दिए कि गौड़ों से प्रतिशोध किया जाएगा। उंसके साथ ही आमेर के राजा चन्द्रसेन जी ने भी भरपूर सहयोग का वादा किया।

जब इस घोषणा के समाचार गौड़ों के राव रिड़मल जी को मिले तो उसके परिणामस्वरूप होने वाले रक्तपात का अंदाजा उन्होंने लगाया।और समस्त गौड़ जाति के विनाश को देखते हुए इसे रोकने की कोशिश करने लगे।उन्होंने गौड़ों के सामन्तों और मन्त्रियो से सलाह ली ।फिर अमरसर रायमल जी के पास सन्धि प्रस्ताव भेज दिया गया। अपनी पुत्री का विवाह रिड़मल जी ने रायमल जी के साथ करने और साथ ही 51 गाँव दहेज में देने का वादा किया ताकि इस चली आ रही वैर भाव को खत्म किया जाए।

आमेर के राजा चन्दरसेन जी से सलाह मशविरा भी गौड़ों द्वारा किया गया तथा आमेर के कहने पर रायमल जी इस सन्धि प्रस्ताव को राजी हुए। इस प्रकार शेखावत व गौड़ों के मध्य सम्बन्ध वापस बन पाए।

उस समय दिल्ली का बादशाह बाबर का मुकाबला राणा सांगा से चल रहा था और खानवा में  सन 1527 में  यह जंग लड़ी गयी जिसमे पाती-पेरवन प्रथा का भी पालन किया गया।(पाती-पेरवन- इसमे एक मुख्य राजा अन्य राजाओ को युद्ध के लिए आमंत्रित करता था जिससे कि शत्रु को एक साथ मिलकर हराया जा सके।)
उस समय राणा सांगा का पूरे राजपुताना में कोई सानी नही था लेकिन फिर भी मुगलिया ताकत का सामना करना था तो सभी राजाओ को बुलाया गया। इस युद्ध मे शेखावत सिरमौर राव रायमल जी ने राणा सांगा की तरफ से मुगल सेना से युद्ध किया।  शेखावत सरदारों  ने वीरता से युद्ध किया और कई शेखावत योद्धा इस युद्ध मे हताहत हुए और  कहा जाता है कि इस युद्ध में बाबर की सेना तक भाग खड़ी हुई थी जिसे उंसके पुत्र ने वापस घेरकर लाया था जो कि अपने पिता बाबर की सहायता के लिये कुछ अफगान कबीलों को लेकर आ रहा था और खुद बाबर द्वारा इस युद्ध अपने सैनिकों को अनेक तरह के प्रलोभन दिए गए थे।अपने भारत देश की रक्षार्थ क्षत्रिय आंधी की तरह युद्ध करते हुए शौर्य प्रकट कर रहे थे जो कि उनको अपनी अंतिम लड़ाई घाटवा में नही मिल पाया था लेकिन फिर भी मुगल तोपों के भरोसे युद्ध को जीत गए थे जो पहली बार बाबर द्वारा फारस से लाई गयी थी जिसे #तुलुगमा_युद्घ_पद्धति भी कहते है।

इस युद्ध के बाद भी रायमल जी ने अपने राज्य को सुचारू रूप से चलाया और कई युद्ध मे भाग लिया। एक बार जोधपुर की सेना ने गौड़ों पर चढ़ाई की तो उनकी सहायता के लिए भी गए।इसी दौरान रायमल जी ने साम्भर पर भी अधिकार कर लिया था व रायमल जी ने अपने अंतिम समय तक कुल 555 गाँवो को अपनी राज्य शक्ति में मिला चुके थे।इस रणबांकुरे का निधन सन 1537 (वि. स.1594)में हो गया।

रायमल जी के बाद राजा बने- इनके पुत्र सुजाजी जो 1537 में अमरसर की गद्दी पर बैठे।
सुजाजी के पांच पुत्र थे-
लूणकरण
गोपाल जी
भैरू जी
चांदा जी
और रायसल जी।
राजा लूणकरण जी हुए और बाकी भाइयों को जागिर दी गयी।
इसी समय रायसल जी को खण्डेला का परगना दिया गया जहां से शेखावत वंश की उपशाखा रायसलोत का उदभव हुआ।
और राजा रायसल दरबारी बड़े योद्धा हुए जिन्होंने खण्डेला शहर बसाया और कई सालों तक इस क्षेत्र में शेखाजी की तरह इनके वंशजो ने शासन किया। 

इसके आगे खण्डेला राज प्रशासन का राज्य विवरण आएगा।
#क्रमशः-

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