बुधवार, 13 अक्तूबर 2021

हल्दीघाटी में शेखावत सरदार भाग-11

             हल्दीघाटी में शेखावत लूणकरण

                 (शेखवाटी इतिहास भाग-11)


गतांक से आगे-
सुजाजी की बसई में मृत्यु होने के बाद उनके पुत्र लूणकरण अमरसर की गद्दी पर बैठे।सुजाजी के अन्य पुत्रो में गोपाल जी को करड़, जवानीपुरा,नवरंगपुरा आदि गाँवो की ज़मीदारी मिली। चांदा जी को अलवर बानसूर बस्सी के पास कैथल आदि गांव व सबसे छोटे पुत्र रायसल जी को 12 गाँवो सहित लाम्या गाँव मिला ।
अब सभी भाई अपनी अपनी जागीर की देख रेख करते हुए उन्ही गावों में निवासरत थे।

इस समय की सिर्फ एक ही मुख्य घटना थी जो कि हल्दीघाटी के युद्ध के रूप में थी।राणा प्रताप के विरुद्ध जब दूसरा अभियान आमेर राजा मान सिंह के नेतृत्व में भेजा गया था।
राणा ने 21 जून 1576 को हल्दीघाटी के पास खमनोर गाँव मे शाही सेना का डटकर मुकाबला किया।इस समय लूणकरण छोटे सेनापति की हैसियत से मान सिंह के नेतृत्व में हल्दीघाटी के युद्ध मे खड़े थे। मान सिंह की व्यूह रचना में बाई तरफ गाजी खान, राव लूणकरण आदि हरावल में थे।प्रताप का बाई तरफ का लश्कर बादशाही सेना के दायीं तरफ के लश्कर पर टूट पड़ा।लूणकरण दायीं तरफ घुसे और बाकी शेखसादे भाग गए।

हल्दीघाटी युद्ध मे बादशाही सेना से लड़ने वाले अब्दुल कादिर बदायुनी "मुंतखबूतवारिख"में लिखता है- राणा कीका(भील अपनी भाषा में राणा को कीका के उपनाम से पुकारते थे-प्रताप)ने दर्रे के पीछे से सेना के दो भाग कर रखे थे। एक भाग का सेनापति हाकिम खान सूरी अफगान कर रहा था, पहाड़ो से निकलकर हमारी हरावल पर आक्रमण किया।भूमि ऊंची -नीची ,टेड़ी मेड़ी होने के कारण हरावल में हड़बड़ी मच गई,जिससे हमारी हार हो गयी।वरना दुश्मन का सर धड़ से अलग करने में हम कामयाब थे और रहे भी। उसी दौरान चेतक भी घायल अवस्था मे आ गया जिससे उनका मुकुट झाला बिदा को देकर उन्हें किसी सुरक्षित स्थान पर भेजा गया ताकि विद्रोह बना रहे आगे भी। इसमें राणा के 1500 के लगभग सैनिक हताहत हुए और मुगल सेना में 500-600 बताई जाती है ऐसा इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि मानसिंह की सेना राणा के सैनिक बल से चार गुना थी। फिर भी मुगलो के दो मुख्य सेनापतियो को मौत के घाट उतार दिया गया था। रॉव लूणकरण ने अपनी सेना को संगठित करके एक झुंड पर आक्रमण करने की ओर ले गए जिसमे वीरतापूर्वक युद्ध किया लेकिन लूणकरण के पठान सरदार काफी मारे गए।

राव लूणकरण डुंगरपुर अभियान में भी बीरबल के साथ थे और गुजरात के दूसरे अभियान में भी, इसी गुजरात अभियान में राव लूणकरण काम आए।यह अभियान 15 जनवरी 1584 को हुआ। अपनी मृत्यु के पूर्व लूणकरण अकबर के दो हजारी मनसब थे।
इनके बाद इनके पुत्र मनोहर को अमरसर की गद्दी पर बैठाया गया जिन्होंने  मिर्जा मनोहर के नाम से ख्याति प्राप्त की।
कहा जाता है कि बादशाह अकबर अजमेर शरीफ की जियारत के लिए आये तो उन्होंने एक खण्डहर गाँव देखा जिसका नाम मुलाथन था ,बादशाह इस गाँव को वापस बसाना चाहते थे अतः इस गाँव का शिलान्यास अकबर ने खुद किया और मनोहर के नाम से इसका नाम मूल मनोहरपुर रखा जो वर्तमान का मनोहरपुर है जो आज भी विद्यमान है जो शाहपुरा(सीकर) के पास है।
शेखावाटी प्रसिद्ध "धोळी का युद्ध"भी आमेर से हुआ जो कि सीमा विवाद को लेकर था जिसमे मान सिंह की एक छोटी टुकड़ी आयी जिसे राव मनोहर ने आमेर तक खदेड़ दिया था जिसके बाद सुलहनामा हुआ और ढूंढाड़ व शेखावाटी की सीमा का निर्धारण फिर से हुआ।
अमरसर और आस पास के गाँवो में लूणकरण के वंशज राज करते रहे लेकिन खण्डेला और आस पास में रायसल के राज रहा जो कालान्तर में उसी के वंशजो के पास रहा। अब एक और शाखा जो रायसलोत कहलाई उसका वर्णन "खण्डेला का इतिहास" के नाम से उद्धृत है जो आगे के भागों में होगा।
#क्रमशः

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