सोमवार, 4 अक्टूबर 2021

शेखावाटी का इतिहास भाग-4

                  शेखाजी_का_राज्य_विस्तार




शेखाजी बचपन से ही वीर और साहसी थे।मिट्टी के गढ़ और किले बनाकर खेलते थे।इस दौरान शेखाजी 12 वर्ष की अल्पायु के ही थे कि उनके पिता मोकल जी का देहांत हो गया। वि. स.1502 में ही शेखाजी बरवाड़ा व नाण के स्वामी बने। 
अतः इनका संरक्षक इनके काका खींवराज को बनाया गया और उस वक्त आमेर की गद्दी पर उद्धरण जी विराजमान थे।

16 वर्ष तक कि उम्र आते-आते शेखा की भी राज्य विस्तार की भावना बल लेने लगी।
बरवाड़ा के दक्षिण में आमेर लगता था और उसके पश्चिम में हनुमान की डूंगरी लगती थी जो गौड़ों के हाथ मे था। नाण से पश्चिम में रैवासा व कासली पर चंदेलों का शासन था। उत्तर में खंडेला पर निरबान शक्तिशाली राजा काबिज थे। पूर्वोत्तर में तंवर, टाक और यादवों के ठिकाने थे। तथा ठीक पूर्व में नागरचाल प्रदेश मे सांखला स्वामी थे। इस प्रकार चारों तरफ सत्ता काबिज थी अलग-अलग राजाओ की।

शेखा का पहला अभियान-

शेखाजी न पहला आक्रमण सांखला राजपूतों पर किया और उन्हें वहां से खदेड़ दिया व इस प्रकार शेखाजी न उनके सारे गाँव जीत लिए।पर सांखला भी कहाँ हार मानने वाले थे।वर्तमान शाहपुरा के पास बसे जाँजा को भी शेखाजी न अपने अधिपत्य में ले लिया और वहा अपनी चौकी स्थापित की।
सांखलो के एक के बाद एक सारे गाँव चले गए लेकिन एक गाँव अभी भी बाकी था और वो था शेखाजी के मौसा नोपा जी का गाँव -साईवाड़। वो शेखाजी न इसलिए भी छोड़ रखा था कि घर मे बैर नही।
लेकिन बाकी सर्व सांखला इक्कठा होकर गए नोपाजी के पास जिनका असली नाम था ठाकुर नरपाल सिंह।
लेकिन नोपाजी ने भी युद्ध को इधर उधर की बात करके टालते गए।
आखिर सांखलो राजपूतो के दबाव में आकर उन्होंने शेखाजी को धमकी भरा संदेश भिजवाया-

जाँजा जाण न आजे शेखा, ओ छ साईवाड़।
ओ नोपो हरिराम जी को, देलो तन्ने बिगाड़।।

उस समय आन बान के लिए शीश कट जय करते थे फिर ये तो धमकी थी , इतना सोचकर शेखा न भी साईवाङ पर आक्रमण कर दिया। और एक भयंकर युद्ध हुआ जो पता ही था क्योंकि सांखला शक्ति भी कोई मामूली नही थे। इस युद्ध मे नोपाजी वीरगति को प्राप्त हुए और शेखा न अपने एक टुकड़ी वहा स्थायी कर दी। इसके  बाद सांखलो के बचे गाँव भी शेखाजी के राज्य में मिल गए।
धीरे-धीरे टाक और यादवो के ठिकाने भी इस राज्य में मिल गए और एक नियत कर की व्यवस्था की गई।
इस प्रकार 27 साल की उम्र में शेखाजी का 360 गावो पर अधिकार हो चुका था। 

शेखा गढ़ का निर्माण-

अनेक युद्ध अभियान के बाद शेखाजी ने छापा मार युद्ध प्रणाली के लिए एक उबड़ खाबड़ जगह जो एक पहाड़ी थी पर गढ़ बनाने का निश्चय किया और इसका नाम अमरसर रखा गया । इसका नाम "अमरा धाभाई गुर्जर" के नाम पर रख दिया गया। क्योंकि अमरा गुर्जर की माँ शेखा की धाय मां रह चुकी थी उन्ही की याद में आज भी यह अमरसर अजीतगढ़ -जयपुर हाइवे पर बसा हुआ इलाका है।
 दूसरा कारण यह बताया जाता है कि वहाँ एक अमरसर नामक बड़ा तालाब था जो बारह महीने जल से भरा रहता था जिसका जल कभी खत्म नही हुआ।
इस गढ़ में सबसे पहले कल्याण जी का मन्दिर बना है जो शेखाजी की टाक रानी न बनवाया था। इसके बनने का वक्त वि. स.1516 बताया जाता है।
#क्रमशः

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