गुरुवार, 7 अक्तूबर 2021

शेखावाटी का इतिहास भाग-6

                      नारी रक्षा हेतु युद्ध




गौड़वाटी का झुन्थर ठिकाना सीकर जिले के गाँव दांता से 6 मील दूर उतरी पूर्वी कोण में था।वहाँ का शासक कोलराज गौड़ अत्यंत घमंडी उदण्ड और राहबोधि राजपूत था।अपनी कीर्ति सदा के लिए बनाए रखने हेतु उसने मारवाड़ से ढूंढाड़ और बांगड़ प्रदेश जाने वाले मार्ग पर तालाब खुदवाना शुरू किया।कोलराज की याद में कोलोलोव तालाब नाम से प्रसिद्ध यह तालाब दान्ता से 5 मील पूर्वोत्तरी कोण में आज भी अस्तित्व में है।
तालाब की खुदाई में प्रगति के लिए उसने नियम बना दिया कि कोई इस रास्ते से गुजरने वाला राहगीर तालाब से खोदकर एक टोकरी मिट्टी बाहर निकाले। इस नियम का सख्ती से पालन हो इसलिए वहाँ अपने पहरेदार भी नियुक्त कर दिए।तालाब का काम जोर शोर से चलता रहा।कुछ धार्मिक भावना से,कुछ भय से यह काम करते रहे ।अब सैनिक तो अपनी मन मर्जी से किसी से अधिक टोकरियां भी डलवा लेते और किसी को यू ही जाने देते।
एक दिन एक कच्छवाह राजपूत विवाह के एक वर्ष बाद गौना करके अपनी पत्नी को ढूंढाड़ लेकर लौट रहा था।वह जैसे ही उस तालाब वाले रास्ते से गुजरा तो सैनिको ने उसे भी एक एक टोकरी मिट्टी बाहर निकालने को कहा।राजपूत और उसके बहलवान (जो पत्नी की बहली उठा रखे थे) ने एक - एक टोकरी मिट्टी निकाल कर जाने लगे। गौड़ों की हठधर्मी शान ने बहली में सवार उस राजपूतानी से मिट्टी निकालने को कहा। 
इस पर उस राजपुत ने खुद उसकी जगह मिट्टी निकालने को कहा लेकिन गौड़ भी पूरे जोश में थे बोले- नही ,जो खुद उपस्थित है वही निकाले।उनकी इस दृष्टान्त से क्रोधित होकर राजपूत ने उन सबको ललकारा और एक लड़ाई शुरू हो गयी।
गौड़ सैनिको और कोलराज ने बहलावान और उस युवक को मौत के घाट उतार दिया। उस राजपूत युवक का दाह संस्कार उसी कोलोलाव तालाब के पास किया गया। फिर उस नवविवाहिता ने तालाब के पेटे से वक मुट्ठी मिट्टी की भर कर अपने ओढ़नी के पल्ले में बांध ली और अमरसर की ओर रवाना हुई जो कि कछावा वंश की शेखावत शाखा के आधिपत्य में था।
उस समय शेखावाटी के साथ साथ पूरे ढूंढाड़ में भी शेखाजी के नाम से हिरण दौड़ते थे अर्थात उनकी स्त्री, निर्बल और असहाय की रक्षा के चर्चे चारो तरफ थे। यहाँ आकर उस विधवा युवती ने सारी कहानी सुना दी।राव शेखाजी ने युवती को धैर्य रखने को कहा और उसके पति की मौत का बदला लेने का आश्वासन दिया।

अब झुन्थर के गौड़ भी शेखाजी के सम्बन्धी थे।जब शेखाजी न अपने मंत्री मण्डल से बात की तो बदला लेना नीति सम्मत निकला और कोलराज को दंड देने का निश्चित हुआ।300 घुड़सवार और 60 ऊँट लेकर शेखाजी ने गौड़ों पर चढ़ाई कर दी। तालाब पर बैठे गौड़ों ने सोचा कि कोई मारवाड़ की सेना ला काफीला है लेकिन जैसे ही नजदीक पहुँचे तो शेखाजी की सेना ने आक्रमण शुरू कर दिया।
गौड़ों को सम्भलने का मौका ही नही मिला और कुछ गौड़ कोलराज के साथ झुन्थर के गढ़ में घुस गए ।कोलराज को शेखाजी ने ललकारा- कायरों की तरह कहाँ भागकर जाता है । और एक भयंकर युद्ध हुआ।इस युद्ध मे कोलराज अपने साथियों सहित मारा गया। उसका सिर काट कर घोड़े के तोंबरे में रख लिया गया।
इस युद्ध मे शेखाजी के 60 योद्धा मारे गए। अमरसर पहुँच कर कोलराज का कटा सिर उस विधवा राजपूतानी के सामने पेश कर दिया गया और शेखाजी ने अपना प्रण पूरा किया।
अपने वीर पति के खून का बदला लेकर राजपूतानी संतुष्ट और पति ऋण से उऋण हुई और अमरसर के पास स्थित कुँए के  पास चिता तैयार करवाकर सती हो गयी।
कोलराज का कटा सिर अमरसर के शिखर गढ़ के मुख्य द्वार पर लटका दिया गया।
शेखाजी के मंत्री मण्डल ने इसके लीये मना किया था लेकिन उदण्डी को सीख भी देनी थी। इसके बाद गौड़ों ने इसे अपमान समझकर इस सिर को उतार लें जाने की बहुत कोशिश की लेकिन कुछ हाथ न लगा। अंत मे शेखाजी ने ही वह उतरवा दिया।
#क्रमशः

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