काँटो की पथरीली सी राह है ये जीवन
कहाँ आसान होता है इसे जीना,
है ये एक मझधार फंसी नैया,
बनना पड़ता है यहाँ हर एक को खैवैया।
माना कि यह दलदल लगता है सारा,
पर हर विपदा का होता है एक किनारा,
हे मानव, जानो तुम इसका मर्म को,
और करते रहो अनवरत अपने कर्म को
निज लक्ष्य को रख मस्तक में,
तुम आगे बढ़ते जाओ,
आने वाली एक-एक विपदा को,
तुम हर बार किनारे करते जाओ।
कोहरे की धुंधली पट्टी सी है बस ये,
इसे आगे बढ़कर ही हटा सकते हो,
और दृढ़ किये अपने लक्ष्य को,
तुम पल में साध्य बना सकते हो।
सप्रेम विनती- सभी भाइयों और बहनों से मेरी मार्मिक विनती है कि देश अभी एक ऐसे ही दौर से गुजर रहा है अतः इसमें जननायक का साथ दे, स्वयं और अपने परिवार के बुजर्गों व बच्चों का ख्याल रखे। घर से बाहर केवल अत्यावश्यक कार्य हेतु ही जाए।
देश के नागरिकों के लिए यह भी एक देश सेवा ही होगी।
धन्यवाद।
-आनन्द
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