मंगलवार, 5 अक्तूबर 2021

शेखावाटी का इतिहास भाग-5


                  पन्नी_पठानों_का_आगमन




इस समय दिल्ली का सुल्तान बहलोल लोदी था।जिसने वि. स.1508 में दिल्ली पर अधिकार कर लिया था।वह अपने राज्य में भारतीय मुसलमानों के सहयोग और सहायता की अपेक्षा नही रखता था और षडयंत्रो से पूर्णतः परिचित था।
इस कारण रोह के एक कबीले के मुख्य सरदार को पत्र लिखकर आमंत्रित किया। और आदेश भी दिया कि अगर कोई अफगान आपके पास स्वेच्छा से रहे तो उसके भरण पोषण का इंतजाम करो। खैर शेखाजी के आमेर अभियान तक लोदी की नियमावली में शिथिलता आ चुकी थी। रोह के पन्नी पठानों का एक दल ऐसे ही घुमता हुआ वापस जा रहा था तभी उन्होंने सोचा कि चलते हुए सूफी संत शेख बुरहान चिश्ती के दर्शन करते हुए ही चले और यह सोचकर वो शेख बुरहान के तकिया पर आ गए और सारा हाल फकीर को सुना डाला।

शेख बुरहान को अपने अनुयायियों की भी चिंता थी और साथ ही शेखाजी के शासन की भी। उसने एक युक्ति सोची- कि क्यों न इन पठानों के दल को शेखाजी की सेना में शामिल कर दिया जाए जिससे इनके खाने पीने रहने का प्रबंध भी हो जाएगा और शेखा को भी नई ताकत मिलेगी । शेख बुरहान चिश्ती ने शेखा से इस विषय मे बात की और शेखाजी मान गए क्योंकि उन वक्त वह निर्णय कतई गलत नही था। और उसी शक्ति के बल पर शेखाजी ने आमेर जैसी बड़ी रियासत के राजा चन्द्रसेन को छह बार पराजित किया था और उसका मतलब ये था कि जब आमेर की सेना परास्त हो सकती है तो बाकी का तो कोई मुकाबला ही नही।
शेखा ने इनके रहने खाने का बंदोबस्त किया और उनको युद्ध कला में निपुण भी लेकिन शेखा भविष्य को लेकर चिंतित भी था कि कहीं अपने ही खिलाफ इन्होंने षड़यँत्र कर दिया तो??
कुल मिलाकर शेख बुरहान की इस नीति से बहलोल लोदी भी शेखा से खुश हुआ और इधर कभी रुख नही किया और इधर शेखा भी अपनी सेना के बल पर एक के बाद एक गाँव जीतते गए।
शेखाजी की चिंता को दूर करने के लिए शेख बुरहान न शेखा और पठानों के बीच एक अहदनामे का पालन करने की भी व्यवस्था करवा दी।
उनके 12 कबीलों को कबीला खर्च हेतु 12 गाँव दिए गए, इन 12 गावो को "बारह बस्ती" के नाम से जाना जाता है। ये 12 गाँव इस प्रकार थे-
तिगरिया, निवाणा, हस्तेडा, भूतेड़ा, डूंगरी कला, डूंगरी खुर्द, तुर्कियावास,नांगल और हिंगोनिया आदि। खंडेला के पास दायरा गाँव मे आज  भी इन्ही पठानों के वंशज निवास करते है, जो राजा रायसल द्वारा खण्डेला जीतने पर उनके साथ शक्ति बनकर गए थे।
उनके अहदनामे की शर्त थी-
1.शेखाजी और इनके पुत्र, बारह बस्ती के पठानों को अपने भाई की तरह मानेंगे।दोनो में एक दूसरे के हाथ से अगर कोई मारा जाए तो उसका बदला नही लिया जाए।

2.बारह बस्ती के पठान हिन्दुओ के धार्मिक पशु गाय, बैल, और मोर को न तो मारेंगे और न खाएंगे।

3. पठानों के रसोवड़े में झटके का मांस नही आएगा और सुवर का भी नही।

4.पठानों को अब नया झंडा नही रखना है जो नीले कलर का था और शेखाजी का पीत वस्त्र का, किंतु पठानी भावना का आदर करते हुए उन्होंने अपने ध्वज के चौतरफ एक नीली पट्टी लगवाई थी जो सुरक्षा पट्टीका प्रतीक थी।

इस प्रकार दोनो ने पुराण और कुरान को साक्षी मानकर ये शपथ ली। अब शेखाजी का बल और भी बढ़ गया था इससे उनके राज्य में काफी प्रसार और धन वृद्धि भी हुई।
#क्रमशः

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