शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

खण्डेला का इतिहास भाग-18

औरंगजेब का खण्डेला पर दूसरा आक्रमण




गतांक से आगे-
8 मार्च 1679 को बादशाह औरंगजेब की आज्ञा से एक विशाल मुग़लवाहिनी इस बार दिल्ली से खण्डेला के लिए निकल पड़ी जिसमे तोपखाना तथा हस्तिसेना भी शामिल थे। सेनापति दराब खां के नेतृत्व में इस बार खण्डेला के विरुद्ध औरंगजेब की सेना आयी।उनका मुख्य मकसद हिन्दू और उदण्ड राजपूतो को दंड के साथ-साथ इनकी धार्मिक आस्था के टुकड़े-टुकड़े करना भी था। नवाब कारतलब खान और सिद्धि बिहराम खाँ जैसे अनुभवी सेनापति खण्डेला के पहले युद्ध मे पराजित होकर भाग गए थे।

"कारतलब-बिहरामखा, अरु दराब खाँ नाम।
चढ़े खण्डेला ऊपरे, ढाहन को हरिधाम।।"
(केसरीसिंह समर)

इस तोपखाने वाली सेना का सामना करना खण्डेला के लिए दुष्कर कार्य था।अपने सलाहकारों की सलाह से राजा बहादुर सिंह दुर्गम पर्वतों से आवृत कोटसकराय के गिरी दुर्ग में चले गए और मुगल सेना को छापामार युद्ध मे शिकस्त देने की योजना बनाई।चार वर्ष पूर्व उदयपुर के ठाकुर टोडरमल भोजराजोत के पुत्र जुझार सिंह ने भी इसी कारतलब खाँ को इसी पहाड़ी में उलझाकर हराया था।

नारनोल के शाही सेना की आने की खबर सुनकर खण्डेला की जनता भी अपने घर-बार छोड़कर आस पास के गाँवो में शरण लेने चले गए। एक बार तो खण्डेला जनविहीन हो गया था परन्तु शीघ्र ही देव मन्दिरो की रक्षा हेतु रायसलोत शेखावतों का हुजूम खण्डेला पहुचने लगा था। हरिराम जी का, परसराम जी का, लाडानी, भोजाणी, गिरधर का,आदि शाखाओं के योद्धा खण्डेला में डेरा जमाने लगे।

कासली कस्बे से कुछ कोस दूर सायपुरा गाँव स्थित है वहां पर उस वक्त ठाकुर टोडरमल जी भोजराजोत का द्वितीय पुत्र श्याम सिंह अपने नवयुवा वीर पुत्र सुजान सिंह के साथ रहता था। सुजान सिंह मारवाड़ से विवाह करके लौटा तो खण्डेला पर बादशाही आक्रमण की खबर सुनी।कासली के स्वामी बलराम पुरणमलोत (ख़्वासवाल) ने उसे बताया कि तुम्हारी दादीजी द्वारा निर्मित श्री मोहन जी के मंदिर को तोड़ा जा रहा है। खण्डेला के राजाजी बहादुर सिंह भी कोट सकराय के गढ़ में चले गए है।कुछ कर दिखाओ तो मौका है अभी।वीर श्रेष्ठ सुजान सुनकर घोड़े को खण्डेला की तरफ दौड़ाया और पहले अपने पैतृक स्थान उदयपुर(उदयपुरवाटी) पहुँचा। वहाँ पहुचकर भाई बांधवो को साथ लिया और खण्डेला पहुँच गए। वहां मोहन जी के मन्दिर के सामने प्रतिज्ञा ली कि शरीर के रक्त की अंतिम बून्द तक लड़ेंगे, उंसके प्राणांत ही तुर्क उस मंदिर को ढहा सकेंगे।

खण्डेला में देव मन्दिर की रक्षा हेतु बलि देने बाले योद्धाओ की संख्या मुगल इतिहास में 300 से ज्यादा बतायी गयी है और बताया गया है कि उन बहादुर योद्धाओ ने जान झोंककर ऐसा युद्ध लड़ा कि उनमें से एक भी जीवित नही बचा।मासिरवालमगिरी में बताया है कि वो सब मर गए लेकिन किसी ने पीठ नही दिखाई।यह सुजान सिंह महान दानवीर टोडरमल का पौत्र था जिसने अपने दादा की तरह सदा के लिए अपना नाम खण्डेला के इतिहास में लिखा गया। उनके साथ हरिराम रायसलोत का पुत्र हरभान भी था बाकी योद्धाओ के नाम असम्भव है। खण्डेला के राजा तक शाही सेना पहुँची ही नही ,वीर सुजान सिंह ने खण्डेला में ही उस वाहिनी का डटकर सामना किया और लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गए।

"झिरमिर झिरमिर मेहा बरसे,मौराँ छतरी छाई।
कुल में छ तो आव सुजाणा,फौज देवरे आयी।।
सुणता पाण आवियो सुजो, पलभर देर न ल्याई।
देवाला पर लड्यो सुरमो, सागे सारा भाई।।
हीर गुजराँ कमरां बांधी,फौजां लूट मचाई।
कोई कूदे कोट खांगरा,कोई कुदया खाई।।
कूद पड्या गुजर का बेटा,नो सौ गाय छुड़ाई।
पाणी की तिसाई गायां, नाड़ा जाय ढुकायी।।
 
यह गीत सुजान सिंह के छावली है जिसमे गाया जाता है। खण्डेला के अलावा खाटू श्याम जी का मंदिर तथा परगने के अन्य मन्दिर भी तोड़े गए थे। सानुला शब्द सांवला का ही बिगड़ा रूप है जिसे पहले खाटू सांवला कहा जाता था, वहां भी युद्ध हुआ था।इसके बाद खण्डेला के राजा हमेशा मुगलो के बिरोधी रहे।यह खण्डेला का युद्ध विक्रमी 1736 में लड़ा गया था। शेखावाटी शिलालेख में खाटू का नाम खटकूप लिखा मिलता है। और विक्रमी 1740 में राजा बहादुर सिंह का देहांत हो गया।उसने अनेक योद्धाओ को गाँव जागिर में भी दिए थे ऐसा उल्लेख मिलता है। और कहा जाता है कि जब औरंगजेब की सेना जीण माता मंदिर को तोड़ने बढ़ी तो उसके मुख्य द्वार के पास पेड़ की सारी मधुमक्खियाँ एक शाही सेना पर धावा बोल देती है और पूरी सेना को छीन-भिन्न कर देती है। औरंगजेब के सेनापति जान छुड़ाकर भाग में जाते है।

राजा बहादुर सिंह की तीन रानिया थी जिसमे एक रानी गौड़ जो शिवराम गौड़ की पुत्री थी उसने खण्डेला में एक बावड़ी का निर्माण भी करवाया।
#क्रमशः

1 टिप्पणी:

soul of rajasthan ने कहा…

हरभान जी हरीरामोत के भाई इंद्रभान जी हरिरामोत भी इस युद्ध मे वीरगति को प्राप्त हुये

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