औरंगजेब का खण्डेला पर आक्रमण
गतांक से आगे-
जब बहादुर सिंह खण्डेला, बादशाह की अवज्ञा करके खण्डेला आ गए तो बादशाह औरंगजेब नाराज हो गया था।बादशाह ने सारी व्यस्तता और दक्षिण में उलझे रहने के बावजूद एक टुकड़ी सेना की विशेष सिपहसालार के नेतृत्व में खण्डेला भेजी।
खण्डेला पर जब आक्रमण हुआ तो यह सेना फौलाद खाँ के नेतृत्व में भेजी गई। इस फौलाद खां के पास तो नारनोल के सतनामी लोगो से निपटने की ही फुर्सत नही थी और उसने अपने भाई सिद्धि विरहाम खाँ को खण्डेला पर कब्जा करने हेतु भेजा।शाही सेना ने खण्डेला दुर्ग को घेर लिया। उस समय राजा बहादुर सिंह के सेनापति थे-इंद्रभान जो कि हरिराम जी(शेखावत हरीरमोत,जो रायसल के पुत्र हरिराम जी वंशज थे)के वंशज थे।
शाही सेना ने बड़े जोर-शोर से आक्रमण किया लेकिन उसके अन्य सेनापति ने खण्डेला के सेनापति इंद्रभान को द्वंद युद्ध(अस्त्र के साथ सामने वाले से युद्ध,एक को एक) के लिए ललकारा। इधर इंद्रभान तो बस जैसे इंतजार ही कर रहे थे। थोड़े देर मुगलिया सिपाही के साथ अठखेलियां करने के बाद अर्थात उंसके सारे दाव पेच और तलवारबाजी देखने के बाद इंद्रभान ने मुगलिया सेनापति मीर मन्नू सूर को द्वंद में पछाड़कर लोहे की जंजीरों से बांध दिया। यह सब दृश्य देखकर खण्डेला की सेना में जोश आ गया और देखते ही देखते पूरी मुगलिया सेना के अंग-भंग कर दिया खण्डेला के शूरवीरो ने। बहुत ही विहंगम दृश्य था जिसमे अकेले सेनापति खण्डेला इंद्रभान ने शेखावतों की और खण्डेला की जीत तय कर दी थी। मुगलो की टुकड़ी का मुख्य सेनापति सिद्धि विरहाम खाँ यह देखकर जान बचाकर भाग गया लेकिन खण्डेला की सेना ने उसका 7 कोस तक पीछा किया लेकिन वह तो हवा हो चुका था। इसके सन्दर्भ में "केसरी सिंह समर" में कहा गया है-
"यते भार इंद्रभान भुज,उत्त सीदी विरहाम।
सार धार जूझन लगे, मच्यो भोत संग्राम।।"
इसी दौरान औरंगजेब अपनी धार्मिक कट्टरता के चलते उन विद्रोहों में ही उलझ कर रह गया और खण्डेला पर खुद आक्रमण नही कर सका यद्यपि मथुरा और काशी विश्वनाथ के विशाल और भव्य मन्दिरो को उसने ध्वस्त करवा दिया था। परंतु अभी राजस्थान तक नही बढ़ पाया था क्योंकि मेवाड़ में राजसिंह,आमेर में मिर्जा राजा जयसिंह और जोधपुर में जसवंत सिंह तीन प्रमुख राजा थे। इसी दौरान जय सिंह आमेर की मृत्यु हो गयी और जसवंत सिंह नेदुखी होकर उनकी असामयिक मृत्यु पर फिर इसके बारे में कहा-
"घँट न बाजै देवराँ,संक न माने साह।
येकरसाँ फिर आवज्यो, माहरा जयसाह।।"
इसके बाद औरंगजेब राजस्थान की तरफ रुख कर चुका था। जब विक्रमी 1735 में जमरूद काबुल में जसवंत सिंह का निधन हो गए तो औरंगजेब ने कहा- आज कुफ्र का गढ़ इस्लाम का घर हो गया। परन्तु मरुधरा के लोगो के मन मे जसवंत सिंह के प्रति खूब प्रेम था, जनता कहती है-
"जत्ते जसो पहु जीवियों, थिर रहिया सुरताण।
आँगल ही औरँग सूं, पड़ियो नही पखाण।।"
इसके बाद तो औरंगजेब राजपूताने के पीछे ही पड़ गया था लेकिन दक्षिण के उस खजाने ने उसे घायल कर रखा था।उसने बहुत सारे मन्दिर और देवरे तुड़वा दिए थे। इसी मुहिम में खण्डेला पर दूसरा शाही आक्रमण भी हुआ उसका व्रतांत अगले हिस्से में जानेंगे।
#क्रमशः
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