सतनामी विद्रोह खण्डेला बही
गतांक से आगे-
सतनामी विद्रोह-
इस किस्से का जिक्र इसलिए जरूरी है क्योंकि इस विद्रोह ने पूरे मुगलिया तख्त को हिलाकर रख दिया था और कालक्रम अनुसार यह घटना भी शेखवाटी के नजदीकी क्षेत्र की होने के कारण जिक्र होना जरूरी था। इसी दरमियाँ औरंगजेब के ध्यान दूसरी रियासतों की तरफ गया नही।
इसी दौरान सतनामी विद्रोह शुरू हो गया जो 15 मार्च 1672 में हुआ।सतनामी एक धार्मिक समूह था और नारनोल के पास बिजेसर गाँव के वीरभान द्वारा 1540 में स्थापित किया हुआ था।
एक सतनामी किसान और सरकारी चौकीदार के मध्य मारपीट शुरू होने के बाद इस लड़ाई ने उग्र रूप धारण कर लिया था।सतनामियों ने संगठित होकर विद्रोह शुरू कर दिया और धीरे धीरे इसने आंदोलन का रूप ले लिया। पांच हजार से अधिक सतनामी इक्कठे होकर मार काट करने लगे।नारनोल का बादशाही फौजदार जान बचाकर भाग निकला।विद्रोहियों ने नारनोल कस्बा लूट लिया,मस्जिदें ढहा दी गयी और गाँवो में लगान लेना शुरू कर दिया।
सतनामी मुंडिया कहे जाते थे जिसमें खाती, सुनार, रेगर आदि सभी मेहनतकश हिन्दू जातियों के लोग इस सम्प्रदाय में थे। नारनोल का फौजदार करतब खान था उसने आक्रमण किया तो कई सतनामी मारे गए लेकिन फौजदार को भगाने में कामयाब रहे और 17 कोस तक सारे इलाके लूट लिए गए। इस विद्रोह का लाभ उठाकर पड़ोसी राजपूत जमीदारो ने भी कर देना बंद कर दिया जिसमे खण्डेला भी एक था।
सतनामियों के चमत्कार की खबर सुनकर बादशाही सेना भयभीत हो गयी।तब बादशाह ने अपने झंडे पर उर्दू में आयतें लिखवाकर चिपकवाई ताकि सैनिको की हौसला अफजाई हो सके। इसके बाद एक दल रन अन्दाजखां को तोपखाने के साथ और हमीद खान को 500 अश्वरोही टोली के साथ भेजा गया। यह बड़ी भीषण लड़ाई हुई ,देखने वालो ने इसे" महाभारत" की संज्ञा भी दी। सतनामी बड़ी बहादुरी से लडे और शहीद हो गये। यह विद्रोह 15 मार्च 1672 में शुरू हुआ और 7 अप्रैल 1674 में पूर्ण रूप से दबाया गया।
इस विद्रोह ने पूरी राजपूताने की जनता का हौसला बढ़ाया और औरंगजेब को हिला कर रख दिया। इसके बाद प्रत्येक जगह औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह होने लगे और वह इन विद्रोहियों को दबाने में ही लगा रहा।
#क्रमशः
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