शुक्रवार, 3 दिसंबर 2021

खण्डेला का इतिहास भाग-12

द्वारकादास रायसलोत और खण्डेला



गतांक से आगे-
अब खण्डेला की राजगद्दी पर विक्रमी 1680 में द्वारका दास बैठ गए थे जो गिरधर जी के पुत्र और राजा रायसल के पौत्र थे। द्वारकादास जी मुगलो के दो बादशाह जहाँगीर और शाहजहाँ के समकालीन थे। इनको भी नियमानुसार शाही सेवा में जाना पड़ा, अपने पिता की जगह। द्वारकादास जी का एक किस्सा बड़ा प्रसिद्ध था,जिसके बारे में चर्चा करते है-

एक दिन राजा द्वारकादास जी जब शाही दरबार मे उपस्थित थे तब बादशाह एक शेर पकड़ लाये और उस शेर से युद्ध करने के लिये उन्होंने प्रचलित रीति से सूचना निकाली। उस समय मनोहरपुर के राव जी भी वहाँ उपस्थित थे।राव जी कुभावना से प्रेरित होकर बादशाह से कहा कि - हमारी जाति के रायसलोत द्वारकादास जो प्रसिद्ध वीर नाहर सिंह जी के शिष्य रहे है,इस शेर से कुश्ती करने के पात्र, एक मात्र पूरे दरबार मे वही है। ये राव जी वही थे जो राव लूणकरण जी के वंशज थे, जो कि रायसल जी के बड़े भाई थे और उनकी प्रगति से ईर्ष्या करते थे और ऐसे ही एक किस्सा पहले रायसल जी और लूणकरण जी के बारे में पढ़ा था जिसमे प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा था।

द्वारकादास जी अपने जाति भाई की चालाकी को ताड़ गए,फिर भी प्रसन्नतापूर्वक शेर से लड़ने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। पूरा मैदान दर्शको से भर गया। द्वारकादास जी स्नान कर पूजा की सामग्री लिए शेर के सामने उपस्थित हुए और शेर को तिलक किया,गले मे माला पहनाई और स्वयं आसन पर धीर भाव से बैठकर अर्चन करने लगे। शेर बहुत देर तक द्वारकादास जी को सूंघता रहा लेकिन कुछ किया नही। दर्शक ये देखकर दंग रह गए।

तब बादशाह भी अचंभे में थे कि ये कैसे सम्भव है?लेकिन फिर द्वारकादास जी को अपने पास बुलाया। बादशाह को विश्वास हो गया था कि यह कोई दैवीशक्ति सम्पन्न पुरुष है। बादशाह ने द्वारकादास को वर मांगने को कहा।  द्वारकादास जी ने निवेदन किया कि अगर कुछ देना ही है तो ये वचन दो कि आज के बाद किसी दूसरे को ऐसी विपति में न फसाया जाए। बादशाह बोले - आपके हुक्म को अब हमेशा ध्यान में रखा जाएगा।

ऐसे किस्सों पर यकीन तो मुझे भी नही होता लेकिन जब इतिहासकारों ने लिखा है तो कुछ तो बात अवश्य हुई होगी और फिर राजा भरत का किस्सा तो सबने पढ़ा ही होगा जो कि वन में शेरों के साथ ही खेलता था।
#क्रमशः

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