शनिवार, 25 दिसंबर 2021

खण्डेला का इतिहास भाग-15

राजा बहादुर सिंह खण्डेला




गतांक से आगे-
वरसिंहदेव के बाद खण्डेला की राजगद्दी पर आसीन हुए उनके बड़े पुत्र बहादुर सिंह ।इसी समय दिल्ली का सुल्तान औरंगजेब आलमगीर के नाम से बादशाह जबरदस्ती बन चुका था। जी हां, जबरदस्ती इसलिए कि ,उसने अपने पिता शाहजहाँ की बीमारी का सुनते ही छोटे भाई मुराद को साथ लेकर विद्रोह कर दिया। उसी विद्रोह को लड़ता छोड़ वरसिंहदेव खण्डेला आ गए थे।जिससे औरंगजेब को तो उल्टा फायदा ही हुआ और  वह आसानी से राजा बन गया। अपनी क्रूर नीति के अनुसार औरंगजेब धीरे-धीरे सबको अपने रंग दिखाने लगा था।

उसने खण्डेला जैसी छोटी रियासत के नए राजा बहादुर सिंह को दक्षिण में अपने पूर्ववर्ती पुरखों की तरह किलेदार बना दिया। अब बहादुर सिंह दक्षिण में किलेदार थे। उधर महाराष्ट्र में शिवाजी मुगलई सेना को छापामार युद्ध मे शिकस्त दे रहे थे। उसमे बहादुर सिंह को भी कई कष्ट वहाँ झेलने पड़े और कुल मिलाकर बहादुर सिंह भी अपने पिता की तरह मुगलिया पद और किलेदारी छोड़कर खण्डेला आने का मन बना ही रहे थे। उसी दौरान उनके समकक्ष सेनापति जो औरंगजेब का चहेता था उसका नाम बहादुर खान था।

वह बहुत सारे छोटे-मोटे विद्रोह और लड़ाइयां जीत कर अपने प्रदर्शन को दिखा चुका था उसका असली नाम मलीक हुसैन था लेकिन बहादुर खान के नाम से प्रसिद्ध ही चुका था। नवाब बहादुर खान और बहादुर शाह की जब एक ही जगह नियुक्ति हुई तो नवाब को बहादुर सिंह से ईर्ष्या होने लगी। "केसरीसिंह समर"में कहा गया है कि- बहादुर खान ने राजा बहादुर सिंह से कहा-अपना नाम बदल लो वरना अपने घर जाओ।

"सिंघ बहादुर सिंह सूं, बदतु बहादुर खान।
फेरि देहु निज नाम को,कह तुम जावहु थान।।"

शायद नवाब को डर हो कि कही उसकी उपलब्धियों को इतिहास बहादुर सिंह के नाम से जाने इस वजह से ऐसा कहा गया हो?लेकिन असली मत क्या था किसी को नही पता।
इसी रचना में आगे लिखा है कि -बहादुर सिंह नगाड़ो पर डंका दिलवाता है और खण्डेला की तरफ रुख कर लेता है।

"चढ़यो नृपति रिसकर, बाजत सुने निसान।
बाट घाट रोकन निमित, लिखे खान फुरमान।।"

नवाब बहादुर खान ने फरमान जारी किया कि- यह बचकर अपने राज्य को नही जाना चाइये और उसने उसके पीछे एक टुकड़ी भेजी लेकिन बहादुर सिंह जितना जंगल को समझते थे उतना कोई नही ।उन्होंने नर्मदा नदी के तट पार कर किनारे से अपनी सेना को खण्डेला तक कब पहुँचा दिया,टुकड़ी को पता भी नही चला। इस प्रकार जोधपुर जैसी बड़ी रियासत की तरह खण्डेला जैसी छोटी रियासत ने भी अहंकारी और हिन्दू विरोधी औरंगजेब के साथ छोड़ दिया था और ये दूसरी बार था जिससे दिल्ली में बैठा औरंगजेब बोखला उठा और बोखलाए भी क्यों न आखिर दक्षिण में शिवाजी और बुंदेलखंड में छत्रसाल उंसके दिल का नासूर बन गया था और अब तो राजस्थान के राजाओं ने भी कुटिल औरंगजेब के साथ छोड़ दिया था।

ऐसा बताया जाता है कि दक्षिण के एक पंडित औरंगजेब के पास अकूत सोने चांदी के खजाने की जानकारी लेकर आया था लेकिन दक्षिण जाने के रास्ते मे महाराष्ट्र की सीमा और मध्य प्रदेश के मालवा की सीमा उसे पार कैसे जाने देती और अब दक्षिण के प्रवेश द्वार वाले बुरहान पुर पर कोई राजा औरंगजेब की तरफ नही था। उसी सोने चांदी के लालच में औरंगजेब अंधा हो चूका था वह यह भी मानता था कि उसके पिता ने सारा दिल्ली खजाना स्थापत्य कला  और अय्याशियों में खत्म कर दिया था।

राजा बहादुर सिंह के खण्डेला आना अब औरंगजेब को अच्छा नही लगा वह खण्डेला को सबक सिखाने की जुगत में लग गया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि  औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीतियों और राजा बहादुर सिंह की शिवाजी की हिन्दू धर्म रक्षार्थ मुगलो से लड़ाई के कारण उनकी ,शिवाजी के प्रति सहानुभूति रही है।इनका कहना है कि जब राजा बहादुर शिवाजी से मिले तो उनकी बातों ने औरंगजेब के प्रति नफरत और बढ़ा दी जिसके बाद राजा बहादुर सिंह खण्डेला लौट आये। इसी दरमियाँ  विक्रमी 1724 में मिर्जा राजा जयसिंह जयपुर के स्वर्गवास हो गया जिससे औरंगजेब की नीतियां और खुलकर सामने आने लगी।

मन्दिरो में पूजा आरती बन्द करवा दी गयी और तभी औरंगजेब ने नारनोल के फौजदार को खण्डेला के राजा बहादुर सिंह को दंड देने हेतु भेजा गया।
अगले भाग में खण्डेला पर हुए आक्रमण के वृतांत आएंगे।
#क्रमशः

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