राजा गिरधर दास खण्डेला
गतांक से आगे-
राजा रायसल के बाद खण्डेला की गद्दी पर उनके छोटे पुत्र गिरधर दास जी बैठे।
गिरधर जी और राव तिरमल जी सहोदर भाई थे। इनको राजगद्दी मिलने के कई कारण रहे है।राजा रायसल के ज्येष्ठ पुत्र लाडख़ान के माधोदास आदि पुत्रो ने अपने पितामह रायसल के जीवन काल मे उंसके विरुद्ध विद्रोह करके उनके मन को खिन्न कर दिया था।तभी से राजा रायसल अपने राज्य हेतु किसी सुयोग्य और आज्ञाकारी पुत्र को राजा बनाने की मनः स्थिति बना चुके थे।
राजा गिरदर के अभियानों में अमरचम्पू के विरुद्ध लड़े गए युद्ध मे हरावल में थे और वीरता से युद्ध किया और विजयी हुए। तब रायसल ने अपने मन को पक्का करते हुए निर्णय ले लिया था। ऐसा सम्भव हो कि रायसल ने जहाँगीर को अपनी मनः स्थिति बतायी हो तभी जहाँगीर ने खण्डेला का राजा उसे घोषित कर दिया था। दक्षिण के अन्य अभियानों में भी गिरधर थे उनको 800 जात और 800 सवारों का मनसब प्राप्त था।
बिलोचो के विद्रोह को राजा गिरदर द्वारा दबाया गया और अंत में बादशाह ने उन्हें दक्षिण में सूबेदार बनाकर रायसल की जगह भेज दिया था।
अमरसर के पाटवी राव जी ने आकर गिरधर को टीका दिया।किंतु राजा गिरधर अपनी उच्च स्थिति का आनन्द ज्यादा समय तक नही भोग सके।
जहाँगीरनामा में लिखा है कि-जब राजा गिरधर दक्षिण में नियुक्त थे तब,
शहजादा परवेज के नोकर बारह गाँव के सय्यद कबीर के एक सय्यद ने अपनी तलवार उजली करने के लिए सिकलीगर को दी थी।उसकी दुकान राजा गिरधर की हवेली के पास थी। सय्यद दूसरे दिन तलवार लेने आया, तो मजदूरी की बात पर झगड़ा हो गया। अब सय्यद के नोकरों ने सिकलीगर की पिटाई कर दी।
इसलिए गिरधर जी के लोगो ने सिकलीगर का पक्ष लेकर सय्यद के लोगो को पीटा। दो -तीन बारह गाँव के सय्यद उधर रहते थे, वे हल्ला सुनकर सय्यद की सहायता को दौड़े आये और बड़ी लड़ाई छिड़ गयीं।तीर व तलवार चलाने की नोबत आ गयी। सय्यद कबीर खबर पाकर 40 घुड़सवारों के साथ वहाँ पहुचा। राजा गिरदर और उनके भाई बन्द हिन्दू अचारनुसार वस्त्र (युद्ध वस्त्र)उतार कर भोजन कर रहे थे।
राजाजी ने कबीर को आया देखकर कर अपने आदमियों को अंदर बुलाकर किवाड़ बन्द कर लिए ताकि झगड़ा बढ़े नही। सय्यद कबीर किवाड़ जलाकर अंदर घुस गया और लड़ाई हो गयी। राजाजी अपने 26 नोकरों सहित मारे गए, 40 आदमी घायल हुए और 4 सय्यद मारे गए।
फिर सय्यद राजाजी की घुड़साल के घोड़े लेकर अपने घर चला गया।राजा गिरधर की इस प्रकार मारे जाने की खबर सुनकर राजपूतो का खून खोल उठा।उन्होंने अपने डेरो से सेना लेकर निकल पड़े और सय्यद पर चढ़ाई कर दी।उधर तमाम सय्यद किले के निचले मैदान में आ गए। खबर पाकर महावत खान वहां पहुँच गया उसे मामला समझते देर न लगी। वह तसल्ली देकर सय्यद को किले में छोड़ आया और राजपूतों को तस्सली देकर घर भेजा। दूसरे दिन महावत खान राजा गिरधर के पुत्रों को आश्वासन दिया कि सय्यद कबीर को पकड़ लिया जाएगा । और अगले ही दिन कबीर को पकड़ लिया गया और कैद कर दिया गया लेकिन राजपूतो को उनकी कैद पर भरोसा नही था क्योंकि दोनो के मिले होने का डर था । कुछ दिनों बाद गिरधरदास के 5 विश्वस्त लोगों ने मौका पाकर कबीर सय्यद को मौत की नींद सुला दी जिसका महावत खान को पहले से डर था। यह घटना पोष मास की विक्रमी 1680 की है।
इस प्रकार खण्डेला का अगला राजा उनके बड़े पुत्र द्वारकादास को बनाया गया तथा बाकी भाइयो को जागीरों में निवास करना पड़ा।
भाइयो में -
1.द्वारकादास
2.किशन सिंह
3.हरिसिंह
4.गोकल
5.गोरधन
6.सूरसिंह
किशन सिंह जी बादशाही सेवा में अपने भाई के साथ चले गए और उनके भी तीन पुत्र हुए जो- जय सिंह ,अखै सिंह और महासिंह थे जिनके वंशज बावड़ी, केरपुरा और पलसाना में आज भी भूमिधारक होकर निवास करते है और लेखक खुद भी गिरधरदासोत रायसलोत शेखावत है जो गाँव केरपुरा मे निवास करते है।
बाकी खण्डेला के आस पड़ोस के गांव जैसे - दान्ता, रलावता, खुङ, ठिकरिया, बावड़ी, डूकिया, केरपुरा, गुरारा,दुदवा, राजपुरा आदि अनेक गाँवो में गिरधर जी के शेखावत निवास करते है।
#क्रमशः
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