तेरा इंतजार
{विशेष- सहित्यनामा (मुम्बई)सितंबर अंक में प्रकाशित}
चित्र- स्वयं (MBM audi)
न जाने कयूँ दिल को तेरा इंतजार रहता है
पाने को तुझे ये हर पल तैयार रहता है
तुझे पाना तो ख्वाब है इस दिल का
उस ख्वाब का तो नींद में भी दीदार होता है।
वैसे तो बहुत देखी है हमने भी हुस्न-ए-मल्लिका
पर तेरा आकर मुस्कुराना तो लगता है
जैसे कातिलाना वार होता है,
न जाने कयूँ दिल को तेरा इन्तज़ार रहता है।
कयूँ ढूंढता हूँ मै तुझे हर दिन , हर चीज़ में
शायद कोशिश होती है तुझे आस - पास पाने की,
तभी तो ये दिल आजकल इतना बेकरार रहता है
न जाने कयूँ दिल को तेरा इंतज़ार रहता है।
मत पूछो कि उदासियाँ कितनी है ज़िन्दगी में,
फिर भी तेरे साथ मनाने को जश्ने-ज़िन्दगी,
सपना ये हर बार होता है।
न जाने कयूँ दिल को तेरा इंतज़ार रहता है
क्या हुआ कुछ गिले-शिकवे है भी गर ज़िन्दगी में,
लड़खड़ाकर खड़ा होना भी खुशगवार होता है
कशिश ही ऐसी है दिल की तुम्हारी खुश्बू-ए-बदन से
तुमसे खफा होके भी मिलने को तैयार रहता है।
न जाने कयूँ दिल को तेरा इंतज़ार रहता है।।
12 टिप्पणियां:
बहुत खूबसूरत लिखा है आपने
धन्यवाद कविया जी
Nive sir
सुंदर कविता
Very impressive
बहुत ही सुन्दर रचना
Intjar ki inteha ho gyi
So sweet Banna Sa
Kya baat h Banna Sa ....Fantastic
आपकी प्रत्येक कविता जीवन को नई दिशा दिखाती है
सुन्दर लेखन । बहुत-बहुत बधाई ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
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