राजा उदयसिंह और जयपुर से युद्ध
गतांक से आगे-
राजा उदय सिंह जब जाट विद्रोह में सेना के पृष्ठ भाग से वापस आ गए तो जयपुर राजा सवाई जय सिंह बहुत नाराज हुए और उन्होंने वाजिद खाँ के नेतृत्व में एक टुकड़ी खण्डेला पर आक्रमण हेतु भेज दी।स्वाभिमानी उदय सिंह ने एक माह तक जयपुर की टुकड़ी का सामना किया,अंत मे किले में अनाज और पानी की कमी आ गयी। फिर भी उन्होंने न आत्मसमर्पण किया और न ही जय सिंह की अधीनता स्वीकार की और किला छोड़कर अपने ससुराल बड़ू चले गए।
उनके पुत्र कुंवर सवाई सिंह ने जयपुर की अधीनता स्वीकार कर ली,तब जय सिंह ने खण्डेला को अपने अधीन कर कुंवर सवाई सिंह को वहाँ का शासक बना दिया। कुछ समय बाद मौका देखकर उदय सिंह ने लाड़खानियो की सहायता से खण्डेला पर अधिकार कर लिया और अपने पुत्र को खण्डेला से बाहर निकाल दिया लेकिन उनका पुत्र सवाई सिंग अपने ही पिता का विद्रोही बन बैठा और जयपुर की सेना लेकर वापस खण्डेला दुर्ग पर आक्रमण कर दिया और अपने पिता को वहाँ से भगा दिया। उदयसिंह वापस अपने ससुराल गए और उनका विक्रमी 1791 में देहांत हो गया। बड़ू में उनकी स्मृति में चबूतरा बना है।
अब उदयसिंह का पुत्र सवाई सिंह राजा बन गया था लेकिन खण्डेला की राजनीति का पतन तो पिछली पीढ़ी से शुरू हो चुका था जब खण्डेला दो भागों में बंट गया था। आधे खण्डेला पर छोटे भाई और आधे पर बड़े भाई का राज था लेकिन इसी वजह से आये दिन आपस मे झगड़े होते रहते थे और जयपुर तो चाहता ही यही था।
सवाई सिंह खण्डेला का राजा तो बना लेकिन जयपुर के सवाई सिंह के अधीन होकर जिससे उसे 64000 रुपये वार्षिक कर भी देना पड़ा और कालान्तर में यह कर स्थायी हो चुका था जिससे जयपुर हर साल लेता था। कर देकर राजा बने तो फिर क्या राजा बने लेकिन गद्दी की होड़ मची हुई थी और खण्डेला का राजस्व दो भागों में बंट गया था आमद उतनी थी नही। दूसरी तरफ फतेह सिंह के पुत्र छोटा पाना के राजा बनकर खण्डेला में डटे हुए थे।धीरे-धीरे यह कर जयपुर द्वारा बढा चढ़ा कर लिया गया।विक्रमी 1784 तक खण्डेला 75000 रुपये वार्षिक देता था।
सवाई सिंह के बाद खण्डेला का राजा उनका पुत्र वृन्दावनदास बना जिसके समय कर 80000 रुपये हो चुका था और अधीनता में काम भी जयपुर के आदेश अनुसार करना पड़ता था। इसके समय छोटे पाना के राजा धीरजसिंह के पुत्र इंद्र सिंह थे उनमें भी बैर भाव बना रहा।
वृन्दावनदास ने ब्राह्मणो पर कर बढ़ा दिया जिसके विद्रोह हुए ।और ब्राह्मणों ने वृन्दावनदास की बहुत बदनामी की।और कहा जाता है कि उन्होंने अपने पाप मिटाने के लिए कई भूमि दान दिए। और अपना राज्य पुत्र गोविंद सिंह को दे दिया व खुद सन्यास धारण कर लिया।विक्रमी 1864 में जयपुर-जोधपुर की लड़ाई में काम आए।
गोविंद सिंह भी कुछ खास नही कर पाए लेकिन इनके समय मे मुगल सेनापति नजफ़ खाँ नारनोल से शेखावाटी प्रदेश में लूट मचाता हुआ पहुँच गया और थोई व श्रीमाधोपुर को लूट लिया और रींगस तक पहुँच गया। शेखावतों ने राव देवीसिंह के नेतृत्व में कस्बा खाटू श्याम के पास मुगलो से भीषण युद्ध लड़ा। इसमे खूड़ के ठाकुर बख्त सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए। ऐसे इतिहास प्रसिद्ध युद्ध मे खण्डेला के दोनों राजाओ के भाग न लेने से पता चलता है कि वो आपसी गृह क्लेश से ही बाहर न निकले थे जबकि खण्डेला बडे पाने के राजा वृन्दावन दास ने फतेहपुर के युद्ध मे सेना भेजी थी।
राजा गोविंद सिंह खण्डेला,अपने ठिकाने के गाँवो की कृषि उपज निरीक्षण हेतु वह गाँव के दौरे पर था,यात्रा में एक दिन उंसके तम्बाखू के हुक्के का चिलमपोश जो सोने का बना था वह गायब हो गया।उंसके साथ के सभी सेवकों की बिस्तरबन्धी की जांच की गई तो वह किसी खेजडोलिया शेखावत के बिस्तर में मिला। फिर गोविंद सिंह ने उसे खरी खोटी सुनाई। फिर एक दिन शिश्यूँ के दुर्ग में सोते हुए गोविंद सिंह की हत्या उस युवक द्वारा कर दी गयी। इनके छह पुत्र थे जिसमें बड़े पुत्र नरसिंह को राजा बनाया गया।
#क्रमशः
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