गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

खंडेला का इतिहास भाग -21

राजा उदय सिंह और बाघोरा हत्याकांड




गतांक से आगे-
इसके बाद का खण्डेला राज्य आपसी फूट और भाईचारे की कमी से जूझता रहा और आपसी बैर भाव मे ही लगा रहा।
उदय सिंह एक चौधरी की मदद से खण्डेला पहुँचे और पीछे से राजा केसरी के वीरगति प्राप्त होने का संकेत मिला तो उनकी रानियां उनके साथ सती हो गयी और उदय सिंह खण्डेला के राजा बनाये गए। इन वक्त भी केसरीसिंह समर का लेखक खण्डेला राजदरबार में उपस्थित था।

इसके बाद विक्रमी 1763 में औरँगबाद में औरंगजेब की मृत्यु हो गयी। उधर कासली के राव दीप सिंह खण्डेला के मृत राजा केसरीसिंह के भाई फतेह सिंह के पुत्र धीरजसिंह को राजा बनाने और उदयसिंह से उसका 2/5 भाग वापस लेने की बात कही।जयपुर के सवाई जय सिंह द्वितीय की मदद से उदय सिंह के भतीजे धीरज सिंह को उंसके पिता का 2/5 भाग खण्डेला पुनः प्राप्त हो गया और 3/5भाग पर उदय सिंह राज कर रहे थे। यह सुलह तो हो गयी थी लेकिन आपसी लड़ाइयां फिर भी चलती रही।
बाजोर की लड़ाई भी इसी खण्डेला राजगद्दी के बाबत हुई थी जिसमे उदय सिंह की सेना हार गई थी और धीरज सिंह को पहले रानोली के कई गाँवो का राजा बना दिया गया था फिर जयसिंह जयपुर की मदद से सुलह हो गयी।
इधर मुगल दरबार मे औरंगजेब के बाद बहादुर शाह और उंसके बाद जहांदार शाह व इसके बाद फरुखसियर राजा बन गए थे।जिन्होंने उदय सिंह को दक्षिण न भेजकर यही पास की चौकी पर तैनात कर दिया था तथा 1000 जात और 700 सवार के मनसब को बढ़ाकर 1500 जात और 800 सवार कर दिया था जिससे उदय सिंह थोड़ा समृद्ध हुए।

मनसब प्राप्त होने के बाद उदय सिंह ने खण्डेला के बाहर एक दुर्ग का निर्माण किया जिसे कालांतर में उदयगढ़ या उदलगड कहा गया।यह निर्माण विक्रमी 1771 में किया गया। इसके दोनो कोनों पर दो विशाल बुर्ज बनी हुई है।इसके मध्य चौक में शिवालय बनाया गया और बीच मे बड़ा सा दरवाजा बना हैं। इस किले के अवशेष आज भी खण्डेला में विद्यमान है।

इस समय मुगल दरबार मे दो गुट बन गए थे एक बादशाह का और दूसरा सैय्यद बन्धुओ का।
उदयसिंह खण्डेला और अजित सिंह जोधपुर सैय्यद बन्धु के गुट में थे अतः उनका संकेत पाकर जाट विद्रोह में गयी सेना की पृष्ठ भाग से वापस उदय सिंह खण्डेला लौट आये जिससे सवाई जय सिंह खण्डेला से रुष्ट हो गए।

बाघोरा हत्याकांड
फतेहपुर के कायमखानी नवाब के साथ मिलकर सैयद बन्धुओ के इशारे पर उदयसिंह खण्डेला ने सवाई जयसिंह के समर्थक भोजराजोत के खिलाफ 1776 विक्रमी में षड़यँत्र रचा। नवाब ने उदयपुर के पास बाघोरा में पड़ाव डाला और उदयपुर के  शेखावत सामन्तों को बुलाया। वहां पहुँचने पर एक तम्बू में उनका स्वागत किया गया।और उसी तम्बू में बिछी दरियों के नीचे काफी बारूद बिछा दिया गया था। उस बारूद को आग लगा दी गयी और जो बच निकला उसे बाहर निकलते ही मौत के घाट उतार दिया गया। उक्त कांड में उदयपुर वाटी के 12 मुख्य सरदार मारे गए। शेखावत शार्दूल सिंह जगरामोत बच निकला और अपने भाइयों के खून का बदला लेने को आतुर था।
बाघोरा में जब यह सब हो रहा था उसी समय खण्डेला में केड के ठाकुर गोपालसिंह पर हमला हो रहा था जिसे उदयसिंह खण्डेला ने भोज में शामिल होने हेतु बुलाया था। उसे शराब में विष मिलाकर पिलाया गया और उस पर हमला किया गया।लेकिन उसके साथ गए वीर योद्धा उदोजी और भुदोजी जो उसके ख़्वासवाल भाई थे लड़ते हुए रथ में डालकर गोपाल सिंह को गुहाला लाये और उनका उपचार किया गया।
#क्रमशः

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