काळा कागला
मेहनत की रोटी म,
मजा आव र लाडला।
जे कर दी चार सौ बिसी,
तो सब माया न ले जाय कागला।।
इयाँ तो देखा बाट बिकी,
क छत प आव कणा कागला।
अर जे बुलाना पड़े पावणा,
फेर ओजू उडावा कागला।।
जे ओल्यू आव पीव की,
तो हिवड़ा क पँख लगाव कागला।
अर जै करदे बीठ घरा म,
दुखड़ो रोव पाड़ोसी आगला।।
खीर पूड़ी को जीमण जिमावे,
जद तु ले आव संबंधी म्हारा पाछला।
कुदरत का त्यौहार बनाया सगळा,
जद काग कहाव कागला।।
जीबा म कोई जीबो है जो,
हर कदम काम आव कागला।
अर मिश्री सु मीठी बोली कोयल की,
फेर भी म्हे उड़ावा काळा कागला।।
-आनंद "आशतीत"
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