फ़ोटो- गूगल साभार
उठा मस्तक बादलों की तरफ,करता अर्जी एक किसान।कुछ दो या न दो ,पर दे दो,बस बारिश रूपी वरदान।।सूर्योदय में निकलता हूँ घर से,लिये हाथ मे हल और बैलों की जोड़ी।मेहनत में न है कोई कमी बस,मौसम और कालाबाज़ारी ने कमर है तोड़ी।।सोचो तो मैं सबके लिए अन्न उगाता हूँ,उसी चक्र में जीता और मरता हूँ।लोगों को भले न हो फिक्र मेरी,लेकिन फिर भी मैं लाख कोशिशें करता हूँ।धोती- अंगौछे में निकला पूरा जीवन,न मुझे कोई पेंट- कमीज की आस है।दो रोटी लाता मैं , दो कांदे संग,झेवन होता यही हमेशा, एक केतली छाछ है।चिंता सताती हर -पल, साहूकारी ब्याज की,फसल खराब हो जाए भले ही गेहूं और प्याज़ की।खरीददार कोई न मिलता,खाद्यान सड़ता जाता है,आखिर कम कीमत में, सारा बेचना पड़ जाता है।बच्चें पल -पल मन मसोसकर रह जाते है।लेकिन फिर मुझसे कुछ न कह पाते है।।जीवन को सुंदर बनाने की कोशिश में,जीवन सारा बीत गया।मैं जीतूं या न जीतूं, भाग्य मेरा जीत गया।।
- आनन्द
2 टिप्पणियां:
सराहनीय
बेहतरीन रचना
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