रविवार, 2 अगस्त 2020

एक मजबूत किसान

                  फ़ोटो- गूगल साभार


उठा मस्तक बादलों की तरफ, 
करता अर्जी एक किसान।
कुछ दो या न दो ,पर दे दो, 
बस बारिश रूपी वरदान।।

सूर्योदय में निकलता हूँ घर से,
लिये हाथ मे हल और बैलों की जोड़ी।
मेहनत में न है कोई कमी बस,
मौसम और कालाबाज़ारी ने कमर है तोड़ी।।

सोचो तो मैं सबके लिए अन्न उगाता हूँ,
उसी चक्र में जीता और मरता हूँ।
लोगों को भले न हो फिक्र मेरी,
लेकिन फिर भी मैं लाख कोशिशें करता हूँ।

धोती- अंगौछे में निकला पूरा जीवन,
न मुझे कोई पेंट- कमीज की आस है।
दो रोटी लाता मैं , दो कांदे संग,
झेवन होता यही हमेशा, एक केतली छाछ है।

चिंता सताती हर -पल, साहूकारी ब्याज की,
फसल खराब हो जाए भले ही गेहूं और प्याज़ की।
खरीददार कोई न मिलता,खाद्यान सड़ता जाता है,
आखिर कम कीमत में, सारा बेचना पड़ जाता है।

बच्चें पल -पल मन मसोसकर रह जाते है।
लेकिन फिर मुझसे कुछ न कह पाते है।।
जीवन को सुंदर बनाने की कोशिश में, 
जीवन सारा बीत गया।
मैं जीतूं या न जीतूं, भाग्य मेरा जीत गया।।

                  - आनन्द



2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

सराहनीय

Anuradha chauhan ने कहा…

बेहतरीन रचना

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