रविवार, 14 मई 2023

खंडेला का इतिहास भाग -24

खंडेला राजाओं द्वारा कर अवहेलना




गतांक से आगे-

इस बार मराठो को कर देकर सामन्तों ने खण्डेला को छुड़ा लिया था लेकिन इसके बाद भी दुर्भाग्य ने खण्डेला को चैन की सांस नही लेने दी।इस समय नरसिंह दास और इंद्र सिंह के बेटे प्रताप सिंह खण्डेला के राजा थे। इस समय जयपुर में सवाई प्रताप सिंह का शासन था और उसने कर उगाने के लिए शेखावाटी की तरफ सेनाएं मोड़ दी थी। जयपुर में ख़ुसलिराम बोहरा को जेल में डालकर उसकी जगह दौलतराम हल्दिया को मंत्री बन दिया गया था। इसी दौलतराम ने अपने भाई बख्शीराम को फौजदार बनाकर खण्डेला में भेज दिया। लेकिन खण्डेला ने कभी भी आसानी से कर नही दिया था चाहे वे मुगल हो या मराठा या जयपुर शासन।


इस समय सीकर का शासक देवी सिंह का पुत्र लक्ष्मण सिंह था। जब जयपुर का कारवां खण्डेला पहुचा तो वहाँ नरसिंह दास कुछ कर देने की स्थिति में नही था।वह खण्डेला छोड़कर गोविंदगढ़ किले में चला गया। नन्दराम मंत्री जयपुर ने छोटे पाने के राजा प्रताप सिंह को प्रलोभन दिया कि अगर उसने बकाया कर दे दिया तो खण्डेला का पूरा राज्य उंसके नाम कर दिया जाएगा।उससे कुछ कर लेकर नन्दराम मंत्री जयपुर ने रैवासा कस्बे पर प्रताप सिंह का कब्जा करवा दिया। यही समाचार नरसिंह को भेज दिया गया कि अगर इसने बकाया कर नही दिया तो उसका बड़ा पाना खण्डेला का राज्य प्रताप सिंह को दे दिया जाएगा। इसके लिए समोद के रावल इंद्र सिंग को भेजा गया। इस समय समोद राजा इंद्र सिंह ने नरसिंह के प्रति  सहानुभूति  दिखाई जिसका हर्जाना समोद को भुगतना पड़ा और समोद की जागीर जब्त हो गयी।


इस समय नन्दराम को शेखावाटी से भागना पड़ा क्योंकि उसका भाई दौलतराम मंत्री कालख की गढ़ी युद्ध मे मारा गया था। और महाराजा जयपुर के पास नन्दराम के अनुचित कर उगाने की सूचना पर जयपुर राजा ने रोड़ाराम को भेजा ताकि नन्दराम को गिरफ्तार किया जा सके। इस कारण नन्दराम मेवात की ओर भाग गया। उपरोक्त कारणों से खण्डेला का कर जमा ही नही हुआ। अब जयपुर ने एक और कर्मचारी को कर हेतु खण्डेला भेजा लेकिन नन्दराम के अत्याचारो से पीड़ित जनता ने इसे भी मार-मार कर वापस जयपुर भेज दिया। उक्त कार्यवाही से नाराज होकर प्रताप सिंह जयपुर ने खण्डेला को खालसा करने और दोनों राजाओ को बन्दी बनाने आशाराम भंडारी को भेजा। उसने बिना युद्ध किये ही छल-बल से दोनों राजाओ को बन्दी बना लिया।500 अश्वरोही दल के बीच दोनो को जयपुर लालचंद काला के पास भेज दिया।मियां की चौकी में दोनों राजाओ को कैद किया गया और अंततः जयगढ़ में ले जाया गया। विक्रमी 1854 में खण्डेला को खालसा कर दिया गया और खण्डेला व रैवासा में जयपुर की सैन्य टुकड़ियां तैनात कर दी गयी। 


आशाराम भंडारी ने युक्ति से खण्डेला के जागीरदारों का कर सीधा जयपुर में जमा करने और उनकी जागिर की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेकर गया इससे यहाँ असन्तोष की भावना ही नही आई। लेकिन नरसिंह दास के भाई जो कल्याणपुराँ दादिया के ठाकुर थे, बागी बन गए।

और इसी समय मोके का फायदा उठाकर बागी भाइयो ने फतेहपुर के युद्ध में जयपुर के खिलाफ विद्रोह कर दिया।

आगे के भाग में फतेहपुर युद्ध का वर्णन किया जाएगा।

#क्रमशः

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