कीचक वध
राजा कमल नयन के ,अपना अज्ञातवास वो बिताते है,
छाले पड़ जाते काया म,अर भीमसेन वल्लभ बन जातेहै।
विपदा आती एक दिन जब, दरबार मे
पहलवान अजितसिंह भीमसेन पर गुर्राते है।।
बात बिगड़ जाती जब दोनो की,
दोनो कुश्ती पर अड जाते है।
कंक बने युधिष्ठिर जब वल्ल्भ को समझाते है,
लेकिन भीमसेन उसे बड़ी चुनौती जो बतलाते है।।
युद्ध होता है दोनो का जब
सुनकर द्रोपदि आती है।
कहती है रानी सुलक्षणा को, कि
जोश पहलवानो मे भरकर आती है।
देखा द्रोपदी ने एकटक,एक कोने मे डोलकर,
कहती है हे पहलवान! सुन ले अपने कान खोलकर।
जे हार गया तु इस जुद्ध मे, तो चूड़ी तोड़ गिरा दूंगी,
कर दूंगी सब न्योछावर,खुद की चिता बना ल्यूंगी।।
देकर धोबी पछाड़ पहलवान को,
भीमसेन भुजा फड़काते है।
और उसे परलोक का पहुंचाने का,
पक्का विधान, वो अब चाहते है।।
देख भीमसेन की दुविधा,
द्वारकधीश मंद-मंद मुस्काते है।
लेते है हाथ एक लकड़ी की कटिका,
करके दो टुकड़े, भिन्न- भिन्न दिशा फिकवाते है।
देख कन्हैया की चालाकी,
अब भीमसेन मुस्काते है।
और योद्धा के पग पर पग रखकर,
किचक मार गिराते है ।।
थे योद्धा माता कुंती के बलशाली बेटे,
और पवन पुत्र के जो अंश कहलाते है।
जोड़ कवित महाभारत का ये अद्भुत,
कवि आंनद आपको हर्षित हो सुनाते है।
आनंद सिंह "अमन"
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