नेता जी,भई नेताजी
नेताजी भाई नेता जी
कहते इनको नेता जी,
इंसानियत मर गयी इनकी जीते जी,
जितना चाहो रोज खिलाओ,
भरता न इनका पेटा जी,
आता है जब वक्त चुनावों का,
करते ये नौटंकी जी,
जाते सारे गाँव-गाँव और,
करते झूठे कसमें-वादे जी।
जीत जाते जब ये चुनाव ,
समझते खुद को राजा जी,
आते न एक दिन भी जनता में,
करते अपने मन का सोचा जी,
देश का ये बजट बनाते,
खुद का ईमान बेच खाते जी,
बनवा लिए बंगले और मकान विदेशों में,
इनकी जनता भरती खोटे जी,
नेता जी, भई नेता जी।
जब आये बारी पुलिस के पकड़ने की,
कार्यालय में छुप जाते जी,
फिर कोशिश करते
कानून से सौदेबाजी की,
जब भी न बनती बात तो ये,
कर लेते ये विनती जी,
नेता जी, भाई नेता जी,
औलादें इनकी बैठे- बैठे,
करोड़पति कहलाती जी,
बाकी जनता चाहे तरसे एक -एक दाने को,
वो ना है इनकी कोई विपदा जी।
खुद न करते कोई काम और मेहनत,
बैठे रहते ठाले जी,
फिर भी आता पैसा और ,
करते रहते घोटाले जी,
नेता जी भाई नेताजी,
सरकार अब बदल गयी और
जनता को भी समझ आ गया
काम आपका खोटा जी,
नेता जी भाई ,नेताजी।
-आनन्द-
अपील- यह एक हास्य और व्यंग्य की एक मिली जुली कविता है इसका किसी से व्यक्तिगत भावना को ठेस पहुँचाना नही अपितु समस्त जनता को जागृत करना है।
6 टिप्पणियां:
shandaar
sarthak pehel
Mst likha h bhai
Mast
बहुत सुंदर।
वाह बना जी
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