मैं हूँ मजदूर
सही कहा साब आपने,
मैं हूँ मेहनतकश मजदूर,
कहने को तो दिल का राजा,
पर करने को हर काम, हूँ मैं मजबूर।
धन-दौलत का लालच नही मुझे,
दो वक्त की रोटी को हूँ मोहताज।
देख कर न करियो अचरज,
सबको कहता मैं महाराज।
तपती दोपहरी में भी न रुकता हूँ,
दुनियां का हर काम मैं करता हूँ ।
भले न मिले मुझे पूरी मजदूरी,
फिर भी न रखता मैं किसी से दूरी।
रोज सवेरे निकलता मैं, सांझ की रोटी को,
कोई टोकता,कोई रोकता,आदत मेरी खोटी को।
पी लेता हूँ दो बीड़ी,भुलाने को पेट की प्यास
दुर्बल हूँ भले ही तन से,पर मन में रहती एक आस।
एक दिन तो आएगा अपना भी
मैं कमाल ये कर जाऊंगा।
जान लगा दांव पर खुद की
बच्चों को सम्बल मैं बनाऊंगा।
सही कहा साब आपने,
हूँ मैं मेहनतकश मजदूर।
पाने को दो वक्त की रोटी को,
पलायन करता मैं दूर-दूर।
लेकिन इसके बाद भी मैं,ना चोरी-डकैती करता हूँ
मेहनत से मिले भले ही दो पैसे,ईमानदारी से जीता हूँ।
गर्व से कहता हूं मैं मजदूरी करता हूँ,
लेकिन फिर भी स्वाभिमान से जीता हूँ।
-आनन्द
विनम्र अपील- दोस्तों, पेट तो अपना हर कोई भरता है लेकिन आपसे अनुरोध है कि अगर आपके आस- पास कोई ऐसा परिवार रहता है तो उसका साथ दे और उसे महसूस न होने दे कि वो किसी गरीब तबके से है।
मानव हित जैसी परिस्थितियां अपने देश मे अभी चल रही है , ऐसे लोगो का ध्यान रखे उन्हें सपोर्ट करे।
जय हिंद, जय भारत।
3 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर और मर्मस्पर्शी!!!!
सार्थकता लिए सशक्त लेखन
हृदय स्पर्शी सार्थक अभिव्यक्ति
सादर
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