खुशनसीब
उस वक्त मैं कितना,
खुशनसीब था,
जो तेरा दिख जाना,
भी कितना हसीन था।
मोहब्बत तो करते थे,
बादशाहों वाली,
पर इजहार भी करना,
कहाँ नसीब था।
मैं कितना खुशनसीब था,
तेरा हाथ मेरे हाथों के,
इतना जो करीब था,
इतना जो करीब था,
सामने से निहारना तुम्हारा,
मुझे कहाँ इतना यकीं था,
मैं कितना ख़ुशनसीब था,
जब तुझे सोच के,
आंखों को नींद का कतरा,
भी नसीब न था।
मैं कितना खुश नसीब था,
जब इस कंधे पे रखा सर,
और तेरा मीठा-सा स्पर्श,
जो दिल के इतना करीब था।
जो दिल के इतना करीब था।
मैं कितना खुशनसीब था,
जब हर पल में बसा तू,
और तेरे लब्जों का,
मैं मुरीद था।
मैं कितना खुशनसीब था,
जब मैं तेरे और,
तू मेरे सबसे करीब था।
7 टिप्पणियां:
Soooo romantic...
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 19 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 20 नवंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बेहद शानदार....
बहुत सुंदर रचना
वाह!!बहुत खूब!!
सभी महान अनुभूतियों की प्रतिक्रिया का सादर आभार
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