बचपन का जमाना
पूरे दिन खेलना और खिलाना,
न फिक्र थी कुछ करने की
बस सोचते थे सिर्फ खेल खिलौनों की
बारिश आते ही नहाने जाते थे,
गीली मिट्टी के घर जो बनाते थे,
क्या पता था एक दिन ये
हकीकत बन जाएगी,
वही घर असलियत में अब
बनाने की बारी आएगी।
आज भी याद है
वो साथ मे सबके मेले जाना
और जिद्द करके वहाँ से लाया गया खिलौना
अब तो बस यही एक दुनियां थी
जिसमे मैं और मेरी मस्तियां थी,
सुबह उठते ही आंगन में
जो शोर-गुल जो करते थे।
आज खामोश हूँ, सोचता हूँ ,कहाँ गया मेरा
प्यारा सा बचपन,
जिसमे खूब मस्तियां करते थे।
अब तो थोड़े बड़े हुए क्या
स्कूल भी जाना पड़ता था,
समय की पाबंदी फिर भी नही,
लेकिन पढ़ना भी तो पड़ता था,
बेसब्री से रहता है अब तो इंतजार,
की कब आये प्यारा-सा रविवार,
यह टेलीविज़न का जो था अनुपम त्यौहार,
सुबह होते ही नहा धोकर बैठे जाते थे,
क्योंकि रंगोली और चित्रहार जो आते थे।
अब तो खुश थे हम सब,
क्योंकि जूनियर जी, जो आने वाला था,
उसके बाद तो शक्तिमान भी बड़ा निराला था,
क्योंकि खत्म होते ही इसके,
कुछ छोटी मगर मोटी बातें
आती थी,
जो रोजमर्रा की अच्छी
बाते सिखलाती थी,
आइसक्रीम की भी
अपनी ही एक कहानी थी
बजती थी दोपहर में जब भी बेल,
आवाज़ बड़ी जानी पहचानी थी,
सुनते ही घर से दौड़े आते थे
पचास पैसे भी जिद करके
लाते थे,
और वो बर्फ का गोला खाकर
भी खुश हो जाते थे,
याद है मुझे वो बचपन का जमाना,
जहाँ न कोई फूटबाल
और न कोई क्रिकेट का
था दीवाना,
रोज शाम को आइस-पाइस खेलते थे,
साथ ही पापा की डांट भी झेलते थे,
शाम होते ही खाना खाकर,
दादी के पास सोना,
और उनकी सुनाई कहानी
का कभी खत्म न होना,
छुट्टियां होते ही हम नानी के घर जाते थे,
सुना है अब तो बचपन मे,
बच्चे दादी के घर भी जाते है।
ये दुर्भाग्य ही तो है इस बचपन का,
जिसमे न कोई नानी और न कोई दादी है,
बचपन गया जिसमें न कोई आजादी है,
जिसमे सतोलिया और कंचे बिना खेल कहाँ पूरा है,
तभी तो आज का बचपन अभी अधूरा है।
अपील- बच्चों को अपने बालपन को अच्छे से जीने दे और एक बच्चे के सर्वांगीण विकास में भागीदार बनें और उन्हें अपना बचपन जीने दे, कलात्मक शैली का विकास करते हुए।
7 टिप्पणियां:
मुस्कराहट ला गयी कविता, स्मृतियों में जो खो गए💐
वाह।।
मन प्रफुल्लित हो उठा।।
दिल खुश हो गया बन्ना जी😊💐
बेहतरीन बचपंन की बेहतरीन यादें
बहुत खूब... बचपन के सुनहरे दिन याद आ गए. बहुत बहुत शुक्रिया आपका.
बहुत सुंदर रचना
वाह!
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