शनिवार, 23 जुलाई 2022

मन की हस्ती

मन की हस्ती

खुश हुँ  मैं अब मेरी हस्ती मे,

गैरों से न कोई मतलब  मेरा।

बहते बहते समय की धारा में,

यहां तक पहुँचा है कारवाँ मेरा।।


हर हाल में खुश रहता हूं क्योंकि

दूसरों के हालात, बखूबी समझता हूं।

करने वाले वादे ऊंचे-ऊंचे, कब के गुजर गए,

मेरी हस्ती जिंदा है क्यूकी आज में जीता मरता हूँ।।


कहने वाले लोग है कहाँ जो,

हर चीज को अपनी बतलाते थे।

जीते जी कर न सके वक्त को अपना,

जो बस आगे की डींगे हांका करतें थे।।


कल का फिक्र करे वो जो,

आज में मेहनत न करता हो।

करता भी आखिर क्या जब,

अनहोनी से जो डरता हो।।


भाग्य भरोसे बैठा न कभी,

शायद भाग्य खुद मेरे भरोसे रहता हो।

मिलता तो है सुकून उन्हे,

जो मेहनत मे भरोसा करतें हो।।

                                         - आनंद "आशतीत"

3 टिप्‍पणियां:

रंजू भाटिया ने कहा…

मेहनत में ही सफलता है सुंदर रचना

मन की वीणा ने कहा…

बहुत सुंदर सृजन।
सकारात्मकता और उद्देश्य से पूर्ण।

आनन्द शेखावत ने कहा…

सभी महानुभावी लोगों का आभार।
धन्यवाद अनिता दी।

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